Wednesday, February 12, 2025
spot_img
Homeराष्ट्रीयVanakkam Poorvottar: N. Biren Singh को कौन-सी गलतियां ले डूबीं? मणिपुर में...

Vanakkam Poorvottar: N. Biren Singh को कौन-सी गलतियां ले डूबीं? मणिपुर में CM बनेगा या राष्ट्रपति शासन लगेगा?

मणिपुर में भाजपा ने मुख्यमंत्री पद से एन. बीरेन सिंह का इस्तीफा तो ले लिया लेकिन नया मुख्यमंत्री बनाने में उसे कड़ी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि कहीं मणिपुर राष्ट्रपति शासन की ओर तो नहीं बढ़ रहा? जहां तक बीरेन सिंह की बात है तो इसमें कोई दो राय नहीं कि मणिपुर के मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल मुख्य रूप से जातीय हिंसा से निपटने, संघर्ष भड़काने के आरोपों समेत कई विवादों से घिरा रहा। हम आपको बता दें कि फुटबॉल खिलाड़ी रहे बीरेन सिंह राजनीति में प्रवेश करने से पहले पत्रकार थे। वह पहली बार 2017 में मुख्यमंत्री बने। उनका दूसरा कार्यकाल 2022 में शुरू हुआ। वह इंफाल ईस्ट जिले में हीनगांग विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। नोंगथोम्बम बीरेन सिंह ने 2002 में राजनीति में प्रवेश किया था जब वह डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशनरी पीपुल्स पार्टी में शामिल हुए और विधानसभा चुनाव जीते। वह 2003 में कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते हुए 2007 में सीट बरकरार रखी।
कुछ ही समय में सिंह तत्कालीन मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के भरोसेमंद सहयोगियों में से एक बन गए और उन्हें सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण, युवा मामले एवं खेल, तथा उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री बनाया गया। नोंगथोम्बम बीरेन सिंह ने 2012 में लगातार तीसरी बार अपनी सीट बरकरार रखी, लेकिन उनका इबोबी सिंह के साथ मतभेद हो गया। आखिरकार, पद पर बने रहना मुश्किल होने पर उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और अक्टूबर 2016 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए। मार्च 2017 के चुनावों में, कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन उसके पास पर्याप्त संख्याबल नहीं था जिसके कारण भाजपा ने गठबंधन सरकार बनाई और बीरेन सिंह नए मुख्यमंत्री बने। वह 2022 में मुख्यमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल पाने के लिए अपनी पार्टी का भरोसा जीतने में कामयाब रहे। तब से अब तक उनका सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा है। बीरेन सिंह के कार्यकाल का सबसे बड़ा विवाद मई 2023 में शुरू हुआ जब राज्य में जातीय हिंसा भड़क उठी थी।

इसे भी पढ़ें: महाकुंभ में लगाई डुबकी और फिर दे दिया इस्तीफा, अमित शाह संग नगा-कुकी-मैतेई विधायकों की शपथ, बीरेन की विदाई की कहानी कैसे शुरू हुई?

जातीय संघर्ष में इंफाल घाटी में बहुसंख्यक मेइती समुदाय और आसपास के पर्वतीय क्षेत्रों में बसे कुकी-जो आदिवासी समूहों के बीच गंभीर झड़पें हुईं। इन झड़पों के परिणामस्वरूप 250 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग विस्थापित हो गए। हिंसा को रोकने में सरकार की नाकामी ने सिंह के नेतृत्व को लेकर गंभीर चिंताएं पैदा कर दीं। हिंसा को लेकर बीरेन सिंह ने दिसंबर 2023 में सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। उन्होंने राज्य में अशांति के कारण हुई मौतों और विस्थापन के लिए अफसोस जताया। बीरेन सिंह ने विभिन्न समुदायों के बीच मेल-मिलाप का आह्वान किया तथा अतीत की गलतियों को माफ करने तथा शांतिपूर्ण मणिपुर के पुनर्निर्माण के लिए काम करने का आग्रह किया।
हम आपको याद दिला दें कि फरवरी में, एक नया विवाद तब खड़ा हो गया जब बीरेन सिंह से संबंधित ऑडियो टेप लीक हो गए, जिसमें उन्हें कथित तौर पर यह चर्चा करते हुए सुना गया कि किस प्रकार कथित रूप से उनकी मंजूरी से जातीय हिंसा भड़काई गई। जातीय संघर्ष से निपटने में बीरेन सिंह के रवैये की मुखर आलोचक ‘कुकी ऑर्गेनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स ट्रस्ट’ (कोहूर) ने ऑडियो टेप की प्रामाणिकता की जांच अदालत की निगरानी में कराने की मांग की। मामले में उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) को टेप की प्रामाणिकता की पुष्टि करने और एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया था।
जहां तक राज्य में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम की बात है तो आपको बता दें कि भाजपा के वरिष्ठ नेता संबित पात्रा ने राजभवन में राज्यपाल अजय कुमार भल्ला से मुलाकात की लेकिन अब तक कुछ सार्थक नहीं हो सका है। हम आपको बता दें कि अब तक किसी के द्वारा सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किए जाने के कारण विशेषज्ञों ने भाजपा शासित मणिपुर के संवैधानिक संकट की ओर बढ़ने की चेतावनी दी है। विशेषज्ञों के अनुसार, अगर ऐसी स्थिति बनी रही तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लग सकता है। देखा जाये तो मणिपुर में विधानसभा सक्रिय है… यह निलंबित अवस्था या राष्ट्रपति शासन के अधीन नहीं है। उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसार विधानसभा सत्र आयोजित करना अनिवार्य है।
हम आपको बता दें कि अनुच्छेद 174 में कहा गया है कि राज्यपाल समय-समय पर राज्य विधानमंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर अधिवेशन के लिए बुलाएंगे, जिसे वह ठीक समझें। लेकिन एक सत्र में इसकी अंतिम बैठक और अगले सत्र में इसकी पहली बैठक के लिए नियत तिथि के बीच छह महीने का अंतर नहीं होगा। छह महीने तक बैठक नहीं होती तो इससे संवैधानिक गतिरोध पैदा हो जाएगा और अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन ही एकमात्र विकल्प है। मणिपुर में विधानसभा का अंतिम सत्र 12 अगस्त 2024 को संपन्न हुआ था। हम आपको बता दें कि संविधान का अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर किसी राज्य पर यह नियम लागू करने की शक्ति देता है। देखना होगा कि राज्य में नयी सरकार का गठन कब तक होता है या फिर राष्ट्रपति शासन लगता है।
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments