वामपंथी दल किस तरह दीमक बनकर भारत और दुनिया के लोकतंत्र को खोखला करते रहे हैं इसका खुलासा लेखक अभिजीत जोग ने अपनी पुस्तक में किया है। दो वर्षों तक रिसर्च के बाद अभिजीत जोग ने अपनी पुस्तक में विस्तार से और तथ्यों के साथ बताया है कि कैसे वामपंथी आंदोलनों ने देश को भारी क्षति पहुँचाई है। हम आपको बता दें कि मूल रूप से मराठी में प्रकाशित इस पुस्तक का नाम है “दुनिया को खोखला कर रही वामपंथी दीमक”। हम आपको बता दें कि पुस्तक के मराठी संस्करण का विमोचन स्वयं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने किया था और इसके हिंदी तथा अंग्रेजी संस्करण का विमोचन दिल्ली के न्यू महाराष्ट्र सदन में भाजपा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी, भाजपा के वरिष्ठ नेता सुनील देवधर, सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली और पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर तथा अन्य गणमान्य हस्तियों ने किया।
मराठी में पहले से ही बेस्टसेलर रही ये पुस्तकें सुरुचि प्रकाशन द्वारा हिंदी और अंग्रेजी में प्रकाशित की गई हैं। पुस्तक विमोचन समारोह में सुरुचि प्रकाशन के अध्यक्ष राजीव तुली का कहना था कि वामपंथी अक्सर दावा करते हैं कि सरकार भले किसी की हो लेकिन सिस्टम तो हमारा है, इस बात की गंभीरता को समझने की जरूरत है। वहीं पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि जहां भी वामपंथी विचारधारा फैली है, उसने मेजबान देश को दीमक की तरह खा लिया है। वहीं भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय सचिव और माय होम इंडिया के संस्थापक सुनील देवधर ने भारत में वामपंथी विचारधाराओं के लंबे प्रभाव को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वामपंथ की विरासत अराजकता, शोषण और दमन की रही है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल जैसे राज्य वामपंथी शासन के विनाशकारी प्रभावों की ज्वलंत मिसाल हैं। सुनील देवधर ने कहा कि सामाजिक कल्याण और समानता के बड़े-बड़े दावों के बावजूद वामपंथी शासन हमेशा अव्यवस्था, भ्रष्टाचार और मानवाधिकार हनन का कारण बना है। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने त्रिपुरा से वामपंथियों के दशकों पुराने शासन को उखाड़ने के दौरान के अपने अनुभव भी बताये।
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हम आपको बता दें कि अभिजीत जोग की पुस्तक में वाम विचारधारा की तुलना उन “दीमकों” से की गई है जो भारतीय संस्कृति और समाज को खोखला कर रहे हैं। लेखक ने वामपंथ को लेकर कई सामयिक सवालों के जरिये तीखे कटाक्ष भी किये। वहीं पुस्तक विमोचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि वामपंथ केवल दीमक के समान ही नहीं है, बल्कि यह एक नशे की भांति है, जो तीन पीढ़ियों को एक भ्रमपूर्ण दृष्टिकोण में जकड़ लेता है। उन्होंने कहा, “यह अपनी वैचारिक खोल में ही सीमित रहता है और वास्तविकता से संवाद करने से इंकार करता है।” उन्होंने कहा कि हमारी लड़ाई केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सभ्यतागत है।”
त्रिवेदी ने यह भी जोड़ा कि वामपंथ ने 1970 के दशक से ही एक छलपूर्ण बौद्धिक आवरण ओढ़ रखा है— जिसकी शुरुआत आत्म-घृणा से हुई, फिर असंतोष को भड़काया और अंततः विद्रोह की ओर ले गया। उन्होंने कहा, “लेकिन यह भ्रम अब टूट रहा है।” उन्होंने उदाहरण स्वरूप राम मंदिर और राम सेतु आंदोलनों का उल्लेख किया। साथ ही उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और अन्य आधुनिक तकनीकें इस वैचारिक संघर्ष में महत्वपूर्ण हथियार सिद्ध होंगी।
पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर ने इस अवसर पर कहा कि जहां भी वामपंथी विचारधारा ने जड़ें जमाईं, वहां उसने उस राष्ट्र को दीमक की तरह खोखला कर दिया। उन्होंने कहा, “यह एक ऐसी विचारधारा है जो लोकतंत्र का गुणगान करती है, लेकिन तानाशाही से उसे कुचल देती है। यह रक्तरंजित क्रांतियों को महिमामंडित करती है और ‘प्रगति’ के नाम पर असहमति को कुचलती है।”
कार्यक्रम में माय होम इंडिया के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और इंडिया हैबिटेट सेंटर के निदेशक तथा पत्रकारिता शिक्षा क्षेत्र में देश की बड़ी हस्तियों में शुमार प्रो. केजी सुरेश तथा अन्य लोगों को सम्मानित कर उनके योगदान को सराहा भी गया। कार्यक्रम का समापन एक आह्वान के साथ हुआ, जिसमें उपस्थित लोगों से “वैचारिक युद्ध” में सक्रिय रूप से भाग लेने और भारत की सांस्कृतिक अखंडता की रक्षा करने का आग्रह किया गया।