Friday, October 3, 2025
spot_img
Homeराष्ट्रीय900 साल पुरानी 'परम्परा' पर चला योगी का 'बुलडोजर', Gorakhpur में Bale...

900 साल पुरानी ‘परम्परा’ पर चला योगी का ‘बुलडोजर’, Gorakhpur में Bale Miyan Ka Mela के आयोजन को इस बार अनुमति ही नहीं मिली

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश विभिन्न क्षेत्रों में नये कीर्तिमान तो गढ़ ही रहा है साथ ही सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही कई गलत परम्पराओं को समाप्त भी कर रहा है। उत्तर प्रदेश के कई भागों में सैंकड़ों वर्षों से विदेशी आक्रांताओं की याद में लगते रहे मेलों के आयोजन की अनुमति नहीं देकर योगी सरकार ने साफ कर दिया है कि नये उत्तर प्रदेश में आक्रांताओं के लिए कोई स्थान नहीं है। हम आपको बता दें कि योगी सरकार का ताजा फैसला गोरखपुर में आयोजित होने वाले ऐतिहासिक बाले मियां मेला के आयोजन से जुड़ा है। इस वार्षिक मेले के आयोजन को प्रशासन की स्वीकृति नहीं मिली है। हम आपको बता दें कि लगभग 900 साल से इस मेले का आयोजन होता रहा है। यह महीना भर चलने वाला मेला सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी (स्थानीय रूप से बाले मियां कहे जाने वाले) की स्मृति में आयोजित किया जाता है। इस साल मेले की शुरुआत 18 मई को होने वाली थी। लेकिन दरगाह के मुतवल्ली (प्रबंधक) के अनुसार, जिला प्रशासन ने आवश्यक सुरक्षा स्वीकृति नहीं दी, जिससे मेले का आयोजन अटक गया है। हालांकि, जिला प्रशासन ने 19 मई को बाले मियां के उर्स के अवसर पर स्थानीय अवकाश घोषित किया है।
हम आपको यह भी याद दिला दें कि इसी महीने, बहराइच जिला प्रशासन ने भी सैयद सालार मसूद ग़ाज़ी की दरगाह पर आयोजित होने वाले वार्षिक जेठ मेले की अनुमति नहीं दी थी। प्रशासन ने एलआईयू रिपोर्ट का हवाला देते हुए कानून-व्यवस्था को लेकर चिंता जताई थी। इससे पहले राज्य सरकार ने संभल में सालार मसूद के नाम पर आयोजित नेजा मेले की भी अनुमति नहीं दी थी। इसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बयान दिया था कि “आक्रांताओं का महिमामंडन देशद्रोह के समान है और स्वतंत्र भारत इसे बर्दाश्त नहीं करेगा।”

इसे भी पढ़ें: अब रामगोपाल यादव ने गिना दी विंग कमांडर व्योमिका सिंह की जाति, मचा बवाल, योगी का पलटवार

हम आपको बता दें कि बाले मियां मेला आमतौर पर राप्ती नदी के किनारे बहारमपुर के विशाल मैदान में आयोजित होता है। दरगाह के मुतवल्ली मोहम्मद इस्लाम हाशमी ने इस महीने की शुरुआत में मेला आयोजित करने की घोषणा की थी, लेकिन स्थल पर किसी भी प्रकार की तैयारी नहीं देखी गई। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कमेटी ने औपचारिक रूप से सुरक्षा व्यवस्था हेतु पत्र लिखा था, लेकिन अधिकारियों ने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया है। वहीं, हर्बर्ट डैम के चौड़ीकरण कार्य के कारण मेले के मैदान में भारी मात्रा में निर्माण सामग्री जमा हो गई है, जिससे आयोजन को लेकर अनिश्चितता और बढ़ गई है।
मुतवल्ली ने बताया, “पिछले वर्षों में स्थानीय प्रशासन स्वयं मेले की तैयारियाँ शुरू करता था, लेकिन इस बार स्थिति अलग रही। जब हमें प्रशासन से कोई जवाब नहीं मिला, तो हमने मंडलायुक्त को 18 मार्च को सुरक्षा व्यवस्था की माँग को लेकर पत्र दिया। लेकिन हमें कोई उत्तर नहीं मिला।” मोहम्मद इस्लाम हाशमी के अनुसार, यह मेला 16 जून तक चलने वाला था। उन्होंने कहा कि अब ऐसा लगता है कि कुछ श्रद्धालु ही प्रार्थना के लिए पहुँचेंगे, वह भी बिना मेले के पारंपरिक आयोजन के। हम आपको बता दें कि पारंपरिक रूप से बाले मियां के मेले में मनोरंजन की सवारी और खाने-पीने के स्टॉल होते हैं, जो बड़ी संख्या में विशेष रूप से बच्चों को आकर्षित करते हैं। विशालकाय पहिए, ड्रैगन की सवारी और अन्य मनोरंजन मेले के मुख्य आकर्षण होते हैं और मैदान आमतौर पर देर रात तक जीवंत रहता है। 
उधर, नगर एडीएम अंजनी कुमार ने कहा, “अब तक मुझे बाले मियां मेले के आयोजन के लिए कोई पत्र नहीं मिला है। हमें सिर्फ यह सूचना दी गई थी कि वे कुछ धार्मिक अनुष्ठान करेंगे, प्रसाद वितरित करेंगे और दरगाह पर चादर चढ़ाएंगे। साथ ही उन्होंने बताया कि वे परिसर के अंदर 15 दुकानें लगाएंगे, जिसकी कोई अनुमति नहीं चाहिए क्योंकि वह उनके परिसर के भीतर है।”
कौन था सालार मसूद ग़ाज़ी? अगर इसकी बात करें तो आपको बता दें कि सालार मसूद को महमूद ग़ज़नवी का भतीजा और सैन्य कमांडर माना जाता है। उसके बारे में मुख्य जानकारी फ़ारसी भाषा में लिखी गई हज़रत अब्दुर्रहमान चिश्ती की जीवनी ‘मीरात-ए-मसूदी’ से मिलती है, जो जहाँगीर के शासनकाल में लिखी गई थी। मीरात-ए-मसूदी के अनुसार, सालार मसूद ग़ाज़ी की मृत्यु 1034 ईस्वीं में श्रावस्ती के महाराजा सुहेलदेव के साथ युद्ध में हो गई थी। माना जाता है कि उसे बहराइच में दफनाया गया, जहाँ आज दरगाह शरीफ स्थित है। हालाँकि 11वीं सदी के ग़ज़नवी वंश के समकालीन इतिहासकारों के लेखों में सालार मसूद का कोई उल्लेख नहीं है, लेकिन 12वीं सदी तक दिल्ली सल्तनत के समय वह एक प्रसिद्ध धार्मिक व्यक्तित्व बन चुका था और उसकी दरगाह पर वार्षिक यात्रा शुरू हो चुकी थी। हम आपको यह भी बता दें कि मसूद गाजी वही आक्रांता है जिसने सोमनाथ मंदिर को लूटा था। 
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments