उच्चतम न्यायालय ने घुसपैठियों के खिलाफ बेहद कड़ा रुख अख्तियार कर रखा है। हाल ही में रोहिंग्या मुस्लिमों के निर्वासन पर रोक लगाने की मांग को ठुकराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि भारत सिर्फ भारतीयों के लिए है। अब श्रीलंका के एक नागरिक की ओर से शरणार्थी दर्जा हासिल करने के लिए दाखिल की गयी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि भारत कोई धर्मशाला नहीं है। हम आपको बता दें कि न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता श्रीलंकाई नागरिक को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के मामले में सात साल की सजा पूरी करने के बाद देश छोड़ने का निर्देश दिया गया था।
दरअसल याचिकाकर्ता को यूएपीए की धारा 10 (गैरकानूनी संगठन का सदस्य होने के लिए दंड) के तहत सजा सुनाई गई थी। लेकिन मद्रास उच्च न्यायालय ने उसकी सजा को 10 साल से घटाकर सात साल कर दिया और उसे तुरंत देश छोड़ने का निर्देश दिया था। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से कहा कि उनके मुवक्किल को अपने देश में गिरफ्तारी और यातना की धमकियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि वह ‘लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम’ (एलटीटीई) का पूर्व सदस्य रहा है और उसकी पत्नी तथा बच्चे भारत में बस गए हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ‘‘क्या भारत दुनिया भर से आए शरणार्थियों की मेजबानी करेगा? हम 140 करोड़ लोगों को लेकर जूझ रहे हैं… यह कोई धर्मशाला नहीं है, जहां हम दुनिया भर से आए विदेशी नागरिकों का स्वागत कर सकते हैं।’’ अदालत की पीठ ने कहा कि भारत में बसने का मौलिक अधिकार केवल इसके नागरिकों को ही उपलब्ध है। अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत याचिकाकर्ता के अधिकारों का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। पीठ ने कहा, ‘‘यहां बसने का आपका क्या अधिकार है, किसी दूसरे देश में चले जाइए।’’
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हम आपको यह भी बता दें कि अवैध घुसपैठियों के चलते देश के समक्ष खड़ी हो रहीं तमाम समस्याओं और चुनौतियों को लेकर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय लगातार देश का ध्यान आकर्षित करते रहे हैं। उन्होंने इस संबंध में जनहित याचिका भी दाखिल की हुई हैं साथ ही वह विभिन्न मंचों से भी इस मुद्दे को बड़ी प्रखरता से उठाते रहे हैं। अब जब उच्चतम न्यायालय का फैसला आया तो अश्विनी उपाध्याय ने इस समस्या की गंभीरता और इसके निदान को लेकर कई बड़ी बातें कही हैं।
अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि मैंने 2017 में दाखिल अपनी जनहित याचिका में कहा था कि भारत में पांच करोड़ पाकिस्तानी, बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुस्लिम घुसपैठिये रह रहे हैं जोकि कानून व्यवस्था के लिए चुनौतियां खड़ी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह घुसपैठिये 2000 रुपए देकर भारत में घुसपैठ करते हैं, फिर 2000 देकर अपना राशन कार्ड बनवा लेते हैं और फिर कुछ और पैसे देकर कहीं रिहायिश हासिल कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि इस समस्या के खिलाफ सरकार को एक बड़ी स्ट्राइक करनी होगी।