भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका ने विवादित कच्चतीव् द्वीप को लेकर बड़ा बयान दिया है, जिससे भारत की टेंशन बड़ सकती है। कच्चतीव् द्वीप को लेकर श्रीलंका के विदेश मंत्री विजिता बाहेराथ ने कहा कि यह श्रीलंका की जमीन है और हम किसी कीमत पर इसे नहीं छोड़ेंगे। हम किसी तरह की संप्रभुता छोड़ने के पक्ष में नहीं है। हेराथ ने भारत के भीतर कच्चतीवू को लेकर हो रही चर्चा को आंतरिक राजनीति का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा केंद्र में भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के बीच की खींचतान का हिस्सा है। हेराथ ने कहा कि कच्चतीवू श्रीलंका का हिस्सा है और इसे अंतरराष्ट्रीय कानून से मान्यता मिली हुई है। गौरतलब है कि भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1974 में एक समुद्री संधि के तहत कच्चतीव को श्रीलंका को सौंपा था। इसके बाद 1976 के समझौते में दोनों देशों के मछुआरों को एक-दूसरे के विशेष आर्थिक क्षेत्रों में मछली पकड़ने से प्रतिबंधित किया गया।
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कच्चाथीवू द्वीप कहाँ है?
कच्चाथीवू द्वीप पाक जलडमरूमध्य में एक छोटा सा निर्जन द्वीप है, जो बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। यह श्रीलंका और भारत के बीच एक विवादित क्षेत्र है, जिस पर 1976 तक भारत दावा करता था और वर्तमान में इसका प्रबंधन श्रीलंका द्वारा किया जाता है।
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द्वीप का इतिहास
कच्चाथीवू द्वीप का निर्माण 14वीं शताब्दी में ज्वालामुखी विस्फोट के कारण हुआ था। रामनाड (वर्तमान रामनाथपुरम, तमिलनाडु) के राजा के पास कच्चातिवु द्वीप था और यह बाद में मद्रास प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गया। 1921 में श्रीलंका और भारत दोनों ने मछली पकड़ने के लिए भूमि के इस टुकड़े पर दावा किया और विवाद अनसुलझा रहा। ब्रिटिश शासन के दौरान 285 एकड़ भूमि का प्रशासन भारत और श्रीलंका द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता था।