Sunday, July 13, 2025
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Jan Gan Man: राजनीति के वोट बैंक में जमा हो गये हैं लाखों घुसपैठिए, लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए जरूरी है Special Intensive Revision

भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला है– स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव प्रणाली। इस व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है– मतदाता सूची। लेकिन जब मतदाता सूची में गड़बड़ियाँ होती हैं या अवैध रूप से विदेशी नागरिकों को मतदाता बना लिया जाता है, तब यह पूरे चुनावी तंत्र की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है। बिहार में ऐसी ही एक ज्वलंत समस्या सामने आ रही है– बांग्लादेशी मुसलमानों के अवैध रूप से मतदाता सूची में शामिल हो जाने की। ऐसे हालात में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (विशेष गहन पुनरीक्षण) की आवश्यकता स्पष्ट रूप से महसूस की जा रही है।
हम आपको बता दें कि बिहार विशेषकर सीमावर्ती जिलों जैसे किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया में लंबे समय से अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की घुसपैठ की सूचनाएं सामने आती रही हैं। ये घुसपैठिए न केवल आर्थिक उद्देश्यों से भारत आते हैं, बल्कि समय के साथ स्थानीय पहचान पत्र (आधार, राशन कार्ड आदि) प्राप्त कर लेते हैं और अंततः मतदाता सूची में भी शामिल हो जाते हैं। इनमें से कई राजनीतिक दलों द्वारा ‘वोट बैंक’ की राजनीति के तहत संरक्षण प्राप्त करते हैं। यह स्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक संतुलन और लोकतंत्र– तीनों के लिए खतरा बनती जा रही है।

इसे भी पढ़ें: बिहार चुनाव तक विशेष गहन पुनरीक्षण पर रोक लगाई जाए: तेजस्वी यादव

मतदाता सूची में गड़बड़ियों के साथ चुनाव कराना लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है क्योंकि जब अवैध नागरिक वोट डालते हैं, तो इससे चुनाव परिणाम प्रभावित होते हैं। इसके साथ ही अवैध नागरिक मतदाता बनने के बाद सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते हैं, जिससे वास्तविक लाभार्थियों को वंचित होना पड़ता है। साथ ही इन मामलों से धर्म और जाति आधारित राजनीति को बल मिलता है, जो सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ता है।
अब सवाल उठता है कि स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन क्यों आवश्यक है? इसके जवाब में हम आपको बता दें कि भारत का चुनाव आयोग समय-समय पर मतदाता सूची का संशोधन करता है। लेकिन बिहार जैसे संवेदनशील राज्यों में जहां घुसपैठ का जोखिम अधिक है, वहाँ विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया आवश्यक हो जाती है। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर विवाद के बीच मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) ज्ञानेश कुमार ने कहा भी है कि इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित होगा कि सभी पात्र लोगों के नाम मतदाता सूची में शामिल हों। उन्होंने यह भी कहा कि 22 वर्ष के अंतराल के बाद किया जा रहा पुनरीक्षण सभी राजनीतिक दलों की सक्रिय भागीदारी के साथ तय कार्यक्रम के अनुसार जारी है। चुनाव आयोग का कहना है कि वह इस साल बिहार की तरह छह राज्यों में मतदाता सूचियों की गहन समीक्षा करेगा ताकि जन्म स्थान की जांच करके विदेशी अवैध प्रवासियों को बाहर निकाला जा सके। हम आपको बता दें कि बिहार में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं, जबकि पांच राज्यों- असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव 2026 में होने हैं। बांग्लादेश और म्यांमा से आने वाले अवैध प्रवासियों के खिलाफ विभिन्न राज्यों में की जा रही कार्रवाई के मद्देनजर निर्वाचन आयोग की यह कवायद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
उधर, विभिन्न विपक्षी दलों ने दावा किया है कि इस प्रक्रिया से कई लोग मताधिकार से वंचित हो जाएंगे। हम आपको बता दें कि 10 विपक्षी दलों ने इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है जिस पर 10 जुलाई को सुनवाई होगी। देखना होगा कि अदालत का इस मुद्दे पर क्या रुख रहता है। लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार जैसे राज्य में जहाँ जनसंख्या घनत्व अधिक है और आर्थिक विषमता के चलते बाहरी लोगों का दबाव पहले से अधिक है, वहाँ मतदाता सूची की पवित्रता को बनाए रखना लोकतंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है। यदि बांग्लादेशी घुसपैठियों को मतदाता बनने से नहीं रोका गया, तो यह न केवल चुनाव प्रणाली को अपवित्र करेगा, बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा को भी खतरे में डाल देगा। अब समय आ गया है कि चुनाव आयोग, सरकार और जनता– तीनों मिलकर इस दिशा में ठोस और पारदर्शी कदम उठाएं। स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन की प्रक्रिया बिहार में एक अनिवार्य सुधार बन चुकी है, जिससे लोकतंत्र की नींव मजबूत की जा सके।
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