एक चौंकाने वाली घटना ने वैश्विक राजनीति और साइबर सुरक्षा जगत को झकझोर कर रख दिया है। हम आपको बता दें कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की मदद से अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो की आवाज की हूबहू नकल कर कई लोगों से बातचीत की गई। इस नकली संवाद के माध्यम से संवेदनशील सूचनाएं जुटाने और गलत दिशा में संवाद स्थापित करने की कोशिश की गई। इस घटना ने न केवल अमेरिका, बल्कि दुनिया भर की सरकारों और सुरक्षा एजेंसियों के समक्ष एआई से जुड़ी एक नई और गंभीर चुनौती पेश कर दी है।
प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार, एआई आधारित वॉयस क्लोनिंग तकनीक की सहायता से किसी अज्ञात समूह ने मार्को रुबियो की आवाज की नकल तैयार की और विभिन्न सरकारी अधिकारियों, थिंक टैंक सदस्यों और अंतरराष्ट्रीय संवादकर्ताओं से बातचीत की। इस दौरान उन व्यक्तियों को यह भ्रम रहा कि वे वास्तव में अमेरिकी विदेश मंत्री से बात कर रहे हैं। यह धोखाधड़ी न केवल अमेरिकी कूटनीति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश थी, बल्कि यह भी दिखाता है कि आवाज आधारित पहचान अब भरोसेमंद नहीं रही।
हम आपको बता दें कि वॉयस क्लोनिंग तकनीक पहले केवल प्रयोगशालाओं तक सीमित थी, लेकिन अब यह सुलभ हो चुकी है। ओपन-सोर्स टूल्स और डीपफेक एआई मॉडल्स की मदद से किसी की भी आवाज की हूबहू नकल करना संभव हो गया है। इससे जुड़ा बड़ा खतरा तब उत्पन्न होता है जब यह तकनीक राजनेताओं, सैन्य अधिकारियों या बड़ी कंपनियों के सीईओ जैसे हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों के खिलाफ प्रयोग की जाती है।
देखा जाये तो इस घटना का उद्देश्य दोतरफा हो सकता है। एक तो नकली बातचीत के माध्यम से जानकारी इकट्ठा करना और दूसरा किसी देश या संस्था की छवि खराब करना या नीतिगत भ्रम उत्पन्न करना। यह घटना यह संकेत देती है कि वैश्विक स्तर पर ‘इन्फॉर्मेशन वॉरफेयर’ अब केवल टेक्स्ट या वीडियो तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अब ‘वॉयस डिप्लोमेसी हेजैकिंग’ का युग भी शुरू हो चुका है।
हम आपको यह भी बता दें कि इस घटना के बाद एफबीआई, एनएसए और यूएस साइबर कमांड जैसी एजेंसियों ने इसकी जांच शुरू कर दी है। सवाल यह भी है कि इस तरह की तकनीक का स्रोत क्या था– क्या यह किसी दुश्मन राष्ट्र की करतूत थी या कोई निजी साइबर गिरोह इस प्रयोग में शामिल था?
उधर, इस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया में रुबियो ने कहा कि वे अपने सभी विदेशी समकक्षों से संवाद करते समय हमेशा अधिकृत और आधिकारिक चैनलों का उपयोग करते हैं ताकि किसी भी तरह के धोखेबाज़ संपर्क से बचा जा सके। उन्होंने कहा कि यह 21वीं सदी की रियलिटी है, जहाँ एआई के ज़रिये नकली चीज़ें बनना आम बात हो गई हैं।” रुबियो ने चेतावनी दी कि यह केवल एक घटना नहीं है— “ऐसी घटनाएँ भविष्य में और होंगी क्योंकि किसी भी व्यक्ति की आवाज़ का सिर्फ़ रिकॉर्डिंग ही पर्याप्त है।” उनका मानना है कि इस तरह का लक्ष्य “लोगों को ट्रिक करने” के लिए चुना जाता है ताकि उनकी जानकारी हासिल की जा सके। हम आपको बता दें कि इस घटना के बाद अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने अपने कर्मचारियों को फर्जी आवाज़ों के प्रति सजग रहने और किसी भी संदिग्ध संपर्क सहित साइबर हमलों की रिपोर्ट करने के निर्देश दिए हैं। बताया जा रहा है कि मई महीने में ही FBI ने आवाज़ और टेक्स्ट पर आधारित “vishing” और “smishing” हमलों पर चेतावनी जारी की थी, जिसमें वरिष्ठ अधिकारियों की पहचान की नकल कर धोखाधड़ी की घटनाओं की संभावना जताई गयी थी।
दूसरी ओर, इस घटना को यदि भारत के संदर्भ में देखें तो हमारे जैसे लोकतांत्रिक और तेजी से डिजिटल होते देश के लिए यह एक गंभीर चेतावनी है। चुनावी प्रक्रिया, सैन्य रणनीति या सार्वजनिक संवाद में अगर इस तरह की नकली आवाजें प्रवेश करती हैं तो ग़लतफहमियों और सामाजिक विघटन का खतरा बढ़ सकता है।
इस तरह के खतरों के संभावित समाधान की बात करें तो आपको बता दें कि इसके लिए वॉयस ऑथेंटिकेशन प्रोटोकॉल बनाना होगा। किसी भी संवाद में वॉइस वेरिफिकेशन के नए डिजिटल हस्ताक्षर विकसित किए जाने चाहिए। साथ ही वॉयस क्लोनिंग और डीपफेक के खिलाफ स्पष्ट और सख्त कानून बनने चाहिए। इसके अलावा, आम नागरिकों को एआई से उत्पन्न संभावित धोखाधड़ी के प्रति सजग किया जाना चाहिए।
बहरहाल, मार्को रुबियो की आवाज की एआई से नकल और उसका दुरुपयोग केवल एक तकनीकी समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक सुरक्षा चुनौती है। यह घटना एक चेतावनी है कि अब पहचान केवल चेहरे या आवाज से नहीं हो सकती। आने वाले समय में हमें तकनीक को चुनौती देने वाले जवाब देने होंगे, तभी हम डिजिटल युग में सुरक्षित रह सकते हैं।