Monday, July 14, 2025
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Kashmir Martyrs’ Day: नजरबंदी और प्रतिबंध पर राजनीतिक दलों में उबाल, नेताओं का केंद्र सरकार पर तीखा वार

जम्मू-कश्मीर में 13 जुलाई को मनाए जाने वाले कश्मीर शहीद दिवस पर इस साल भी विवाद गहरा गया है। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के प्रशासन ने इस दिन किसी भी तरह के कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी, जिसके चलते उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली जम्मू-कश्मीर सरकार के कई मंत्रियों, विधायकों और विभिन्न राजनीतिक दलों के शीर्ष नेताओं को या तो नजरबंद कर दिया गया या हिरासत में ले लिया गया।
यह दिन 1931 में हुए नरसंहार की बरसी के तौर पर मनाया जाता है, जब ब्रिटिश शासन के अधीन तत्कालीन जम्मू-कश्मीर रियासत के शासक हरि सिंह के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान कई लोग मारे गए थे। केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन ने श्रीनगर के कई इलाकों में कडे प्रतिबंध लगाए और शहीदों के कब्रिस्तान की ओर जाने की कोशिश करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी।
 

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राजनीतिक नेताओं की तीखी प्रतिक्रिया
उमर अब्दुल्ला ने इन प्रतिबंधों की कडी निंदा करते हुए ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में लिखा, ’13 जुलाई का नरसंहार हमारा जलियांवाला बाग है। जिन लोगों ने अपनी जान कुर्बान की, उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ ऐसा किया। कश्मीर पर ब्रिटिश हुकूमत का शासन था। यह कितनी शर्म की बात है कि ब्रिटिश शासन के हर रूप के खिलाफ लडने वाले सच्चे नायकों को आज सिर्फ इसलिए खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा है क्योंकि वे मुसलमान थे। आज हमें उनकी कब्रों पर जाने का मौका भले ही न मिले, लेकिन हम उनके बलिदान को नहीं भूलेंगे।’
पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस कार्रवाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘दिल की दूरी’ वाले बयान से जोडा। उन्होंने कहा, ‘जब आप शहीदों के कब्रिस्तान की घेराबंदी करते हैं, लोगों को मजार-ए-शुहादा जाने से रोकने के लिए उनके घरों में बंद कर देते हैं, तो यह बहुत कुछ कहता है। 13 जुलाई हमारे उन शहीदों को याद करता है जो देश भर के अनगिनत अन्य लोगों की तरह, अत्याचार के खिलाफ उठ खडे हुए। वे हमेशा हमारे नायक रहेंगे।’
जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख सज्जाद लोन ने भी अपनी नजरबंदी की जानकारी देते हुए ‘एक्स’ पर लिखा, ‘मुझे नहीं पता कि केंद्र सरकार कश्मीर के लोगों के लिए पवित्र चीजों को फिर से परिभाषित करने पर इतनी उत्सुक क्यों है। 13 जुलाई को दिए गए बलिदान हम सभी के लिए पवित्र हैं।’ उन्होंने जोर देते हुए कहा कि खून से सने इतिहास कभी मिटते नहीं।
 

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सार्वजनिक अवकाश बहाल करने की मांग खारिज
इससे पहले, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने उपराज्यपाल को पत्र लिखकर 1931 के विरोध प्रदर्शन में मारे गए लोगों की याद में 13 जुलाई को सार्वजनिक अवकाश बहाल करने का आग्रह किया था। हालांकि, इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया और जिला मजिस्ट्रेट ने किसी भी कार्यक्रम के आयोजन की अनुमति देने से इनकार कर दिया, जिससे इस ऐतिहासिक दिन पर फिर से तनाव बढ गया है।
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