Saturday, July 19, 2025
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Prabhasakshi NewsRoom: रक्षा क्षेत्र में धमाल मचा रहा भारत, चीन सीमा पर नई ढाल बनेगी ‘आकाश प्राइम’, नौसेना को मिला ‘निस्तार’ पोत, पृथ्वी-2 और अग्नि-1 का भी सफल परीक्षण

भारत की सैन्य तैयारियों को बढ़ाने और स्वदेशी रक्षा प्रणालियों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल करने की दिशा में देश ने एक कदम और आगे बढ़ाया है। हम आपको बता दें कि भारतीय सेना जल्द ही ‘आकाश प्राइम’ (Akash Prime) मिसाइल प्रणाली की दो रेजीमेंट्स को अपनी सेवा में शामिल करने जा रही है। यह प्रणाली खासतौर पर चीन से सटी लद्दाख जैसी उच्च हिमालयी सीमाओं पर वायु रक्षा के लिए विकसित की गई है।
बीते बुधवार को लद्दाख में सेना ने दो बार इस प्रणाली का परीक्षण किया। इस दौरान 15,000 फीट की ऊँचाई पर तेज रफ्तार ड्रोन जैसे लक्ष्यों को सफलतापूर्वक नष्ट किया गया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस उपलब्धि को भारत की वायु रक्षा क्षमता के लिए “महत्वपूर्ण मील का पत्थर और मजबूती” बताया।

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हम आपको बता दें कि ‘आकाश प्राइम’ दरअसल ‘आकाश’ मिसाइल सिस्टम का उन्नत संस्करण है। जहां मूल आकाश प्रणाली का उपयोग भारतीय थलसेना और वायुसेना पहले से कर रही हैं, वहीं ‘प्राइम’ संस्करण को विशेष रूप से 4,500 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है। इसमें आधुनिक ग्राउंड सिस्टम और रडार, नई पीढ़ी के रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर लगे मिसाइल, दुश्मन के विमान, हेलीकॉप्टर और ड्रोन को 360° कोण से भेदने की क्षमता और दुश्मन के लक्ष्य पर 25 किलोमीटर तक सटीक निशाना लगाने जैसे अपग्रेडेशन किये गये हैं। यह प्रणाली रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित और भारत डायनामिक्स लिमिटेड (BDL) द्वारा निर्मित है। सेना के ऑपरेशनल फीडबैक के आधार पर इसमें सुधार किए गए हैं।
हम आपको याद दिला दें कि मार्च 2023 में ₹8,160 करोड़ के करार के तहत भारतीय सेना की वायु रक्षा कोर में इस प्रणाली की दो रेजीमेंट स्थापित की जा रही हैं। इससे पहले सेना के पास दो रेजीमेंट और वायुसेना के पास 15 स्क्वाड्रन पहले ही ‘आकाश’ सिस्टम के तहत मौजूद हैं।
भविष्य की तैयारी के तहत डीआरडीओ ने ‘आकाश’ के नए संस्करण ‘आकाश-NG’ (New Generation) पर भी कार्य किया है, जिसकी रेंज 30 किलोमीटर है और यह कैनिस्टर आधारित प्रणाली है, यानी एक लांचर में 6 मिसाइल रखी जा सकती हैं। यह प्रणाली भारत की वायु रक्षा को और अधिक लचीला और सशक्त बनाएगी। साथ ही, सेना के लिए तीन रेजीमेंट ‘क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल’ (QRSAM) भी तैयार हो रही हैं, जिनकी अनुमानित लागत ₹36,000 करोड़ होगी। इनकी विशेषता तेजी से तैनाती और मोबाइल प्लेटफॉर्म है। यह भी 30 किमी तक दुश्मन के ड्रोन या मिसाइल को गिराने में सक्षम होगी।
हम आपको याद दिला दें कि हाल ही में पाकिस्तान द्वारा शुरू की गई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान भारतीय सेना और वायुसेना ने आकाश प्रणाली का प्रभावशाली उपयोग किया था। पाकिस्तानी ड्रोन और ‘लॉयटर म्यूनिशन्स’ (भटकने वाले बम) को सफलतापूर्वक नष्ट कर भारत की रक्षा क्षमताओं को प्रमाणित किया गया।
हम आपको यह भी बता दें कि आर्मेनिया ‘आकाश’ प्रणाली का पहला विदेशी ग्राहक बन चुका है। भारत ने यह प्रणाली संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) को भी प्रस्तावित की है। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि भारत की मिसाइल तकनीक अब वैश्विक रक्षा बाजार में अपनी पहचान बना रही है।
इसके अलावा, ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड द्वारा तैयार ‘निस्तार’ पोत को आज विशाखापत्तनम में नौसेना में शामिल किया गया। यह पोत गहरे समुद्र में डाइविंग ऑपरेशन और डूबती पनडुब्बियों के बचाव कार्य के लिए बना है। इसमें अत्याधुनिक उपकरण और सैचुरेशन डाइविंग सिस्टम लगे हैं। इसमें 120 MSMEs की भागीदारी और 80% स्वदेशी सामग्री का उपयोग हुआ है।
इसके अलावा, चांदीपुर रेंज, ओडिशा में पृथ्वी-II और अग्नि-I मिसाइलों का सफल परीक्षण भी इसी सप्ताह हुआ। दोनों परीक्षण रणनीतिक बल कमान (SFC) के तहत किए गए और सभी तकनीकी मानकों पर खरे उतरे।
हम आपको यह भी बता दें कि इंडो-रशियन राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड (आईआरआरपीएल) ने उत्तर प्रदेश के कोरवा में निर्मित एके-203 असॉल्ट राइफल की सभी 6.01 लाख इकाइयों की आपूर्ति निर्धारित समय से करीब 22 महीने पहले ही कर लेने की योजना बनाई है। आईआरआरपीएल के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) और प्रबंध निदेशक मेजर जनरल एसके शर्मा ने कहा कि इन राइफल की आपूर्ति दिसंबर, 2030 तक ही पूरी करने का लक्ष्य रखा गया है।
बहरहाल, भारत की तीनों सेनाओं के लिए यह घटनाक्रम इस ओर संकेत है कि हिमालयी सीमाओं से लेकर समुद्री गहराइयों तक भारत अब स्वदेशी प्रणालियों के साथ और अधिक सशक्त हो रहा है। रक्षा तकनीक के क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता और निर्यात क्षमताओं में लगातार वृद्धि हो रही है। यह न केवल सैन्य सुरक्षा बल्कि वैश्विक कूटनीतिक हैसियत के लिए भी महत्वपूर्ण है।
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