Friday, July 18, 2025
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Trump चले Pakistan ! India हैरान, भारत-अमेरिका संबंधों के बीच पाकिस्तान की एंट्री ‘प्रेम त्रिकोण’ जैसी लग रही

भारत में इस साल क्वॉड शिखर सम्मेलन होना है जिसमें भाग लेने के लिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के आने की पूरी पूरी संभावना है लेकिन अब खबर आई है कि ट्रंप भारत आने से पहले पाकिस्तान का दौरा करेंगे। ट्रंप के पाकिस्तान दौरे की अटकलों ने भारतीय विदेश नीति हलकों में हलचल मचा दी है। यदि यह दौरा होता है, तो इसका भारत पर गहरा राजनीतिक और रणनीतिक प्रभाव पड़ सकता है।
हम आपको बता दें कि पाकिस्तान इस समय अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहा है। इसी कड़ी में पिछले महीने पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ एक विशेष लंच मीटिंग भी की थी। इस मुलाकात में मुनीर ने ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए समर्थन देने जैसी बातें कहकर उनका दिल जीतने की कोशिश की थी। पाकिस्तान अब ट्रंप को व्यापार और अन्य सम्मान का लालच देकर अपने यहां आमंत्रित करने में जुटा है, जबकि इसी के साथ ही वह अपनी आर्थिक रक्षा के लिए चीन के सामने भी आत्मसमर्पण कर चुका है।

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हालांकि व्हाइट हाउस ने अभी तक ट्रंप के क्वॉड सम्मेलन में शामिल होने की आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, क्योंकि जापान और ऑस्ट्रेलिया के नेताओं के कार्यक्रम पर भी अभी अंतिम मुहर नहीं लगी है। लेकिन पाकिस्तान की मीडिया ने जल्दबाजी में यह खबर उड़ा दी है कि ट्रंप 18 सितंबर को पाकिस्तान आ सकते हैं। हालांकि बाद में पाकिस्तानी मीडिया को इस खबर का खंडन भी करना पड़ा क्योंकि ट्रंप उस समय ब्रिटेन के राजकीय दौरे पर रहेंगे। फिर भी यह संकेत मिल रहे हैं कि ट्रंप क्वॉड यात्रा के दौरान रास्ते में पाकिस्तान में रुक सकते हैं, भले ही वह नवंबर में क्यों न हो।
हम आपको बता दें कि ट्रंप का झुकाव हमेशा से रणनीतिक गठजोड़ के बजाय व्यापार सौदों पर रहा है। हाल ही में उन्होंने जापान को टैरिफ (आयात शुल्क) का झटका दिया और ऑस्ट्रेलिया को भी नाराज़ कर दिया। भारत के साथ व्यापार समझौते को लेकर भी ट्रंप के अधिकारी असंतुष्ट हैं, क्योंकि भारत ने कभी भी जल्दबाज़ी में समझौते के लिए झुकने का संकेत नहीं दिया। ऐसे में क्वॉड जैसे रणनीतिक समूह की उपयोगिता पर सवाल उठना लाजिमी है।
ट्रंप के इसी व्यवहार ने भारत को भी अपने अमेरिका-केंद्रित कूटनीतिक नजरिए पर पुनर्विचार के लिए मजबूर कर दिया है। भारतीय राजनयिक यह मानते हैं कि पाकिस्तान की तरफ ट्रंप का यह रुझान केवल अवसरवादिता है, कोई दीर्घकालिक रणनीति नहीं। फिर भी यह भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि इससे पाकिस्तान और भारत को एक ही तराजू में तोलने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा, जिससे भारत सदैव असहज रहता है।
इसके अलावा, यदि ट्रंप पाकिस्तान जाते हैं, तो यह लगभग दो दशक में किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का पहला दौरा होगा। पिछली बार 2006 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश भारत यात्रा के बाद चंद घंटों के लिए इस्लामाबाद में रुके थे। उन्होंने उस समय पाकिस्तान के साथ परमाणु समझौते करने से इंकार कर आतंकवाद के खिलाफ सहयोग पर ही बात की थी। ओबामा और बाइडेन ने पाकिस्तान यात्रा से परहेज रखा था। स्वयं ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में पाकिस्तान को “झूठ और धोखे का देश” और “आतंकियों का सुरक्षित अड्डा” कहा था। लेकिन अब वही पाकिस्तान ट्रंप को लुभाने के लिए वादा कर रहा है कि वह इस्लामाबाद को साउथ एशिया का “क्रिप्टो कैपिटल” और “डिजिटल फाइनेंस में वैश्विक अगुवा” बनाएगा।
देखा जाये तो यदि ट्रंप पाकिस्तान जाते हैं, तो इसके भारत पर नकारात्मक असर पड़ सकते हैं। जैसे- भारत की अब तक की नीति अमेरिका के साथ विशेष रणनीतिक संबंधों पर आधारित रही है। ट्रंप का पाकिस्तान दौरा इस संतुलन को बिगाड़ सकता है और भारत को दोबारा अमेरिका और पाकिस्तान के बीच तुलनात्मक स्थिति में धकेल सकता है। इसके अलावा, पाकिस्तान इस मौके का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए कर सकता है कि अमेरिका उसके साथ है। इससे आतंकवाद और कश्मीर जैसे मुद्दों पर भारत की स्थिति कमजोर हो सकती है। साथ ही यदि ट्रंप पाकिस्तान के साथ कोई व्यापार या निवेश समझौता करते हैं, तो भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता में भारत के लिए और भी कठिनाई आ सकती है। इसके अलावा, ट्रंप की संभावित पाकिस्तान यात्रा से भारत को यह संकेत जाएगा कि ट्रंप जैसे नेता अवसरवादी और अप्रत्याशित हैं। इससे भारत को अपनी विदेश नीति में विविधीकरण करना पड़ेगा और केवल अमेरिका पर भरोसा छोड़कर अन्य साझेदारों (जैसे यूरोपीय संघ, फ्रांस, जापान) के साथ संबंध गहराने होंगे।
बहरहाल, डोनाल्ड ट्रंप का पाकिस्तान दौरा यदि होता है तो यह केवल एक सामान्य कूटनीतिक यात्रा नहीं होगी, बल्कि भारत के लिए कई मोर्चों पर चुनौती खड़ी करेगा। भारत को इस परिस्थिति के लिए अपने विकल्प तैयार रखने होंगे और यह समझना होगा कि वैश्विक राजनीति में स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होते, केवल हित होते हैं।
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