Monday, July 21, 2025
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Yes Milord: दूसरों को न्याय देने वाले HC जज खुद न्याय के लिए पहुंचे अदालत, याचिका में क्या 10 तर्क दिए?

दूसरों को न्याय देने वाले हाई कोर्ट के जज खुद के न्याय के लिए देश की सर्वोच्च अदालत के समक्ष पहुंचे हैं। सुनने में आपको पहुंच अजीब लग रहा होगा कि जो व्यक्ति कुर्सी पर बैठकर लोगों के मामले में फैसला सुनाया करता था। न्याय करता था और लोगों को इंसाफ देता था। वही शख्स अब खुद के न्याय के लिए अदालत पहुंचा है। वो भी देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट के सामने। आखिर क्या हुआ उस जज के साथ, किस मामले में उन्हें न्याय चाहिए। दरअसल, दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व और मौजूदा इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपों पर शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में उनके खिलाफ महाभियोग लाया जा रहा है। ये मामला तब शुरू हुआ जब मार्च 2025 में उनकी दिल्ली स्थित सरकारी आवास में आग लगने के बाद भारी मात्रा में नगदी बरामद हुई। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति ने जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया था। इसके बाद तत्कालीन मुख्य न्यायधीश संजीव खन्ना ने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी। जस्टिस यशवंत वर्मा ने इस जांच समिति की रिपोर्ट और महाभियोग की सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। 

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समिति पर लगाए अनदेखी के आरोप

जस्टिस वर्मा ने इन-हाउस समिति की रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह निष्कर्ष किसी ठोस साक्ष्य के आधार पर कुछ अनुमान और अटकलों के आधार पर निकाले गए, जो उनके अनुसार अवैध हैं। उनका यह भी कहना है कि समिति ने एक पूर्व निर्धारित नतीजे हासिल करने के लिए जल्दबाजी में कार्यवाही की, और उन्हें पूरा मौका नहीं दिया गया। आउट हाउस में नकदी की बरामदगी हुई थी। 14 मार्च की रात 11:35 बजे जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आवास पर लगी आग में नोटो के बंडल कथित तौर पर जले थे और उसे बरामद किया गया था। जस्टिस वर्मा ने अपनी याचिका में कहा कि 3 मई 2025 को जारी अंतिम रिपोर्ट अहम सवालों के जवाब नहीं देती। इन-हाउस पैनल द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को चुनौती देते हुए, जस्टिस वर्मा ने यह तर्क दिया कि समिति ने याचिकाकर्ता (जस्टिस वर्मा) को न तो अपनी निर्धारित प्रक्रिया की सूचना दी, न ही उन्हे सबूत पेश करने या उस पर प्रतिक्रिया देने का कोई मौका दिया। व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।

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याचिका में 10 तर्क दिए

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई महाभियोग सिफारिश अनुच्छेद 124 और 218 का उल्लंघन है।
1999 की फुल कोर्ट बैठक में बनी इन-हाउस प्रक्रिया सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था है, न कि संवैधानिक या वैधानिक। इसे न्यायाधीश को पद से हटाने जैसे गंभीर निर्णय का आधार नहीं बनाया जा सकता।
जांच समिति का गठन बिना औपचारिक शिकायत के सिर्फ अनुमानों और अप्रमाणित जानकारियों से किया। यह इन-हाउस प्रक्रिया के मूल उद्देश्य के ही खिलाफ है।
22 मार्च 2025 को प्रेस विज्ञप्ति में आरोपों का सार्वजनिक उल्लेख किया। इससे मीडिया ट्रायल शुरू हो गया और उनकी प्रतिष्ठा को गहरा नुकसान पहुंचा।
न साक्ष्य दिखाए, न आरोपों के खंडन करने का मौका दिया। मुख्य गवाहों से मेरी अनुपस्थिति में पूछताछ हुई। सीसीटीवी फुटेज को सबूत के तौर पर नहीं लिया गया।
समिति ने नकदी किसने रखी, वह असली थी या आग कैसे लगी जैसे मूल प्रश्नों को अनदेखा कर समिति की रिपोर्ट अनुमानों और पूर्वधारणाओं थी, न कि किसी ठोस सबूत पर। यह गंभीर कदाचा करने के लिए अपर्याप्त है।
जांच रिपोर्ट मिलने के कुछ ही घंटों में तत्कालीन चीफ जस्टिस ने इस्तीफा देने या महाभियोग का सामना करने की चेतावनी दी। पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया।
पिछले मामलों में न्यायाधीशों को व्यक्तिगत सुनवाई का मौका मिला था। इस मामले में परंपरा की अनदेखी हुई।
रिपोर्ट गोपनीय बनाए रखने के बजाय उसके अंश मीडिया में लीक और तोड़-मरोड़ कर दिए गए, जिससे छवि खराब हुई जिसकी कभी भरपाई नहीं हो सकेगी।

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संसद में आएगा महाभियोग प्रस्ताव

इस बीच, कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की पूरी तैयारी है। सभी पार्टियों से बात हो चुकी है और संसद की राय एकजुट है। उन्होंने कहा, ‘लगभग सभी बड़े राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं से चर्चा की है। जिन पार्टियों के सिर्फ एक-एक सांसद हैं, उनसे भी बात करूंगा, ताकि संसद का यह रुख सर्वसम्मति वाला हो। वहीं, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि यह फैसला सरकार का नहीं, बल्कि सांसदों का है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि उनकी पार्टी के सांसद भी महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करेंगे। यानी विपक्ष और सत्ता पक्ष दोनों संवैधानिक कार्रवाई के पक्ष में हैं।
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