Thursday, August 7, 2025
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4, 5 और 6 अगस्त को भूख हड़ताल पर रहूंगी, 42% आरक्षण पर के कविता का बड़ा ऐलान

भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की एमएलसी कलवकुंतला कविता ने सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और स्थानीय निकाय चुनावों में पिछड़े वर्गों (बीसी) के लिए 42 प्रतिशत राजनीतिक आरक्षण की मांग को लेकर 4, 5 और 6 अगस्त को 72 घंटे की भूख हड़ताल की घोषणा की है। कविता ने कहा कि तेलंगाना जागृति के बैनर तले आयोजित इस विरोध प्रदर्शन का उद्देश्य राज्य और केंद्र दोनों सरकारों पर पिछड़ा वर्ग विधेयक पारित करने के लिए दबाव बनाना है। उन्होंने कहा कि पिछड़ों के लिए 42 प्रतिशत आरक्षण की लड़ाई में हमारा एजेंडा यह सुनिश्चित करना है कि पिछड़ों को राजनीतिक शक्ति मिले।” अतीत में तेलंगाना जागृति की भूमिका का हवाला देते हुए, उन्होंने याद किया कि तेलंगाना जागृति द्वारा 2018 के पंचायती राज अधिनियम में संशोधन की मांग के कारण ही राज्य सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया था। 

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कविता ने राज्यपाल से जुड़े लंबित विधेयकों और मुद्दों को लेकर अदालत जाने में तेलंगाना सरकार की अनिच्छा पर भी सवाल उठाया। उन्होंने पूछा कि तमिलनाडु में जब राज्यपाल किसी फैसले में देरी करते थे, तो वे अदालत जाते थे और फैसला हासिल करते थे। तेलंगाना सरकार राज्यपाल के पास लंबित मामलों को लेकर अदालत क्यों नहीं जा रही है? उन्होंने कांग्रेस और भाजपा पर एक गुप्त समझौते का आरोप लगाते हुए दावा किया कि यह गठबंधन तेलंगाना में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार को कानूनी कदम उठाने से रोक रहा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और भाजपा के बीच एक गुप्त समझौते के कारण, मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी की सरकार इस मामले को अदालत में नहीं ले जा रही है। 

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तेलंगाना के आरक्षण विधेयक में पिछड़ी जातियों के लिए 42 प्रतिशत, अनुसूचित जातियों के लिए 18 प्रतिशत और अनुसूचित जनजातियों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव है, जो मौजूदा क्रमशः 29 प्रतिशत, 15 प्रतिशत और 6 प्रतिशत से अधिक है। इसके साथ, तेलंगाना का लक्ष्य सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 70 प्रतिशत करना है, जिसके लिए केंद्र की मंज़ूरी आवश्यक है। कविता ने ज़ोर देकर कहा कि अगर केंद्र सरकार पर दबाव डालना ज़रूरी है, तो राज्य सरकार को सर्वोच्च न्यायालय में मामला दायर करना चाहिए। समानताएँ बताते हुए उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में जब कुछ विधेयक राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास लंबित थे, तो सरकार सर्वोच्च न्यायालय गई और उसे अनुकूल फ़ैसला मिला।
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