मालेगांव विस्फोट मामले का फैसला: मुंबई की एक विशेष अदालत ने मालेगांव विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया है। यह फैसला लगभग 17 साल बाद आया है जब 2008 में रमजान के महीने में मुंबई के मुस्लिम बहुल इलाके मालेगांव में यह हमला हुआ था। पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित और सेवानिवृत्त मेजर रमेश उपाध्याय उन सात आरोपियों में शामिल थे जिन्हें एनआईए ने इस मामले में नामजद किया था।
मालेगांव विस्फोट मामला 29 सितंबर 2008 का है, जब मालेगांव शहर के भिक्कू चौक स्थित एक मस्जिद के पास एक मोटरसाइकिल पर बंधे विस्फोटक उपकरण में विस्फोट होने से छह लोगों की मौत हो गई थी और 95 अन्य घायल हो गए थे। इस मामले में मूल रूप से 11 लोग आरोपी थे; हालाँकि, अदालत ने अंततः पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सहित 7 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए। इस मामले में कुल 7 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, सुधाकर चतुर्वेदी, अजय राहिरकर, सुधांकर धर द्विवेदी (शंकराचार्य) और समीर कुलकर्णी शामिल थे।
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मालेगांव में 2008 के विस्फोट मामले का घटनाक्रम
मालेगांव में 2008 के विस्फोट मामले का घटनाक्रम इस प्रकार है, जिसमें बृहस्पतिवार को राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की एक विशेष अदालत ने सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया।
29 सितंबर 2008: महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में एक मोटरसाइकिल पर लगाए गए बम में विस्फोट हो गया। छह लोग मारे गए और 101 घायल हुए। 30 सितंबर 2008: मालेगांव के आज़ाद नगर पुलिस थाने में एक प्राथमिकी दर्ज की गई।
21 अक्टूबर 2008: महाराष्ट्र के आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने मामले की जांच अपने हाथ में ली।
23 अक्टूबर 2008: एटीएस ने मामले में पहली गिरफ़्तारी की। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और तीन अन्य को गिरफ़्तार किया गया। एटीएस ने दावा किया कि विस्फोट दक्षिणपंथी चरमपंथियों ने किया था।
नवंबर 2008: लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित को विस्फोट की साजिश में कथित संलिप्तता के आरोप में एटीएस ने गिरफ्तार किया।
20 जनवरी 2009: एटीएस ने प्रज्ञा ठाकुर और पुरोहित सहित 11 गिरफ्तार आरोपियों के खिलाफ विशेष अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया। आरोपियों पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका), गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की कठोर धाराओं के तहत आरोप लगाए गए।
दो व्यक्तियों- रामजी उर्फ रामचंद्र कलसांगरा और संदीप डांगे को वांछित अभियुक्त बताया गया।
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जुलाई 2009: विशेष अदालत ने कहा कि इस मामले में मकोका के प्रावधान लागू नहीं होते और अभियुक्तों पर नासिक की एक अदालत में मुकदमा चलाया जाएगा।
अगस्त 2009: महाराष्ट्र सरकार ने विशेष अदालत के आदेश के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय में अपील दायर की।
जुलाई 2010: बंबई उच्च न्यायालय ने विशेष अदालत के आदेश को पलट दिया और मकोका के तहत आरोपों को बरकरार रखा।
अगस्त 2010: पुरोहित और प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने उच्च न्यायालय के आदेश के के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया।
एक फरवरी 2011: एटीएस मुंबई ने एक और व्यक्ति प्रवीण मुतालिक को गिरफ़्तार किया। तब तक कुल 12 लोग गिरफ़्तार।
13 अप्रैल 2011: राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने मामले की जांच अपने हाथ में ले ली।
फरवरी और दिसंबर 2012: एनआईए ने दो और लोगों लोकेश शर्मा और धन सिंह चौधरी को गिरफ़्तार किया। तब तक कुल 14 गिरफ़्तारियां हो चुकी थीं।
अप्रैल 2015: उच्चतम न्यायालय ने मकोका की उपयुक्तता पर पुनर्विचार के लिए मामला विशेष अदालत को वापस भेज दिया।
फरवरी 2016: एनआईए ने विशेष अदालत को बताया कि उसने इस मामले में मकोका के प्रावधानों को लागू करने के बारे में अटॉर्नी जनरल की राय ले ली है।
13 मई 2016: एनआईए ने विशेष अदालत में आरोप-पत्र दाखिल किया। मामले से मकोका के आरोप हटा दिए गए। सात आरोपियों को क्लीन चिट दे दी गई।
25 अप्रैल 2017: बंबई उच्च न्यायालय ने प्रज्ञा ठाकुर को ज़मानत दे दी। उच्च न्यायालय ने पुरोहित को ज़मानत देने से इनकार कर दिया।
21 सितंबर 2017: पुरोहित को उच्चतम न्यायालय से ज़मानत मिली। साल के अंत तक सभी गिरफ्तार आरोपी ज़मानत पर बाहर आ गए।
27 दिसंबर 2017: विशेष एनआईए अदालत ने आरोपी शिवनारायण कलसांगरा, श्याम साहू और प्रवीण मुतालिक नाइक को मामले से बरी कर दिया।
अदालत ने यूएपीए के तहत आतंकवादी संगठन का सदस्य होने और आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन जुटाने से संबंधित आरोप भी हटा दिए।
30 अक्टूबर 2018: सात आरोपियों ठाकुर, पुरोहित, रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी और सुधाकर चतुर्वेदी के खिलाफ आरोप तय किए गए। उन पर आतंकवादी कृत्य करने के लिए यूएपीए के तहत और आपराधिक साजिश व हत्या के लिए भादसं के तहत मुकदमा चलाया गया।
तीन दिसंबर 2018: मामले के पहले गवाह की पूछताछ के साथ मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई।
14 सितंबर 2023: अभियोजन पक्ष के 323 गवाहों (जिनमें से 37 मुकर गए) से जिरह के बाद अभियोजन पक्ष ने अपनी गवाही बंद करने का फैसला किया।
23 जुलाई, 2024: बचाव पक्ष के आठ गवाहों से जिरह पूरी हुई।
12 अगस्त 2024: विशेष अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 313 के तहत अभियुक्तों के अंतिम बयान दर्ज किए। मामले में अभियोजन और बचाव पक्ष की अंतिम दलीलों के लिए सुनवाई की तारीख दी गयी।
19 अप्रैल 2025: विशेष अदालत ने निर्णय के लिए सुनवाई बंद कर दी।
31 जुलाई 2025: विशेष एनआईए न्यायाधीश ए. के. लाहोटी ने ठाकुर और पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि दोषसिद्धि के लिए कोई ‘‘ठोस और विश्वसनीय’’ सबूत नहीं थे। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है।