Saturday, August 2, 2025
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जीते जी किसी नेता के नाम से न चलाई जाएं सरकारी योजनाएं, मद्रास HC ने तमिलनाडु सरकार को दिया निर्देष

मद्रास उच्च न्यायालय ने एक अंतरिम निर्देश जारी कर तमिलनाडु सरकार को कल्याणकारी योजनाओं से संबंधित विज्ञापनों में किसी भी जीवित राजनीतिक व्यक्तित्व, पूर्व मुख्यमंत्रियों, वैचारिक नेताओं या पार्टी प्रतीकों का नाम या तस्वीर शामिल करने पर रोक लगा दी है। मुख्य न्यायाधीश एम.एम. श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति सुंदर मोहन की प्रथम पीठ ने गुरुवार को अन्नाद्रमुक सांसद सीवी षणमुगम और अधिवक्ता इनियान द्वारा दायर एक याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया। याचिका में कल्याणकारी योजनाओं की राजनीतिक रंगत के साथ पुनः ब्रांडिंग को चुनौती दी गई है और सरकारी प्रचार में राजनीतिक तटस्थता सुनिश्चित करने की मांग की गई है। 

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अदालत ने कहा कि इसलिए, हम इस आशय का अंतरिम आदेश पारित करने के लिए इच्छुक हैं कि विभिन्न विज्ञापनों के माध्यम से सरकारी कल्याणकारी योजनाओं को शुरू करने और संचालित करने के दौरान किसी भी जीवित व्यक्तित्व का नाम, किसी भी पूर्व मुख्यमंत्री/वैचारिक नेता की तस्वीर या प्रतिवादी संख्या 4 का पार्टी चिन्ह/प्रतीक/झंडा शामिल नहीं किया जाएगा। शनमुगम की याचिका में अदालत से राज्य को किसी भी कल्याणकारी योजना का नाम किसी जीवित व्यक्ति के नाम पर रखने से रोकने का अनुरोध किया गया था खासकर 19 जून, 2025 के जी.ओ. (एमएस) संख्या 390 के तहत शुरू की गई योजनाओं के संबंध में मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के नाम के इस्तेमाल पर निशाना साधा गया था। याचिकाकर्ता ने भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) और सरकारी विज्ञापन में सामग्री विनियमन समिति से चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के पैराग्राफ 16ए के तहत कार्रवाई करने का भी आग्रह किया था।

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अंतरिम आदेश जारी करते हुए, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह किसी भी कल्याणकारी योजना के शुभारंभ, कार्यान्वयन या संचालन पर रोक नहीं लगा रहा है। हालाँकि, उसने यह भी माना कि जीवित राजनीतिक हस्तियों के नाम पर योजनाओं का नामकरण करना या पार्टी के चिन्ह, झंडे या प्रतीक चिन्ह का उपयोग करना सर्वोच्च न्यायालय के स्थापित निर्देशों और चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है। पीठ ने कहा कि हालाँकि कर्नाटक बनाम कॉमन कॉज मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने विज्ञापनों में किसी मौजूदा मुख्यमंत्री की तस्वीर की अनुमति दी थी, लेकिन उसने पूर्व नेताओं या वैचारिक हस्तियों को यह स्वतंत्रता नहीं दी। उसने ज़ोर देकर कहा कि ऐसे नाम या चित्र शामिल करने से कल्याणकारी कार्यक्रमों का राजनीतिकरण हो सकता है और निष्पक्षता से समझौता हो सकता है।
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