उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश में पारिस्थितिक असंतुलन की ओर ध्यान दिलाते हुए चेतावनी दी है कि यदि स्थिति में बदलाव नहीं आया तो पूरा राज्य ‘‘विलुप्त हो जाएगा।’’
हिमाचल प्रदेश में स्थिति बद से बदतर होने की बात कहते हुए न्यायालय ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का राज्य पर ‘‘स्पष्ट और चिंताजनक प्रभाव’’ पड़ रहा है।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा, ‘‘हम राज्य सरकार और भारत संघ को यह समझाना चाहते हैं कि राजस्व अर्जित करना ही सब कुछ नहीं है। पर्यावरण और पारिस्थितिकी की कीमत पर राजस्व अर्जित नहीं किया जा सकता।’’
पीठ ने कहा, ‘‘अगर चीजें आज की तरह चलती रहीं, तो वह दिन दूर नहीं जब पूरा हिमाचल प्रदेश देश के नक्शे से गायब हो जाएगा। (लेकिन) भगवान न करे कि ऐसा हो।’’
शीर्ष अदालत ने 28 जुलाई को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें राज्य की जून 2025 की एक अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया गया था।
अधिसूचना में कुछ क्षेत्रों को ‘‘हरित क्षेत्र’’ घोषित किया गया था।
उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अधिसूचना जारी करने का स्पष्ट कारण एक विशेष क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों पर अंकुश लगाना था।
पीठ ने कहा, ‘‘हिमाचल प्रदेश में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। गंभीर पारिस्थितिकीय असंतुलन और अन्य पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण पिछले कुछ वर्षों में गंभीर प्राकृतिक आपदाएं आई हैं।’’
इसने कहा कि हिमाचल प्रदेश में हो रही गतिविधियों से प्रकृति निश्चित रूप से ‘‘नाराज’’ है।
पीठ ने कहा, ‘‘हिमाचल प्रदेश में आई आपदा के लिए केवल प्रकृति को दोष देना उचित नहीं है। पहाड़ों और मिट्टी के लगातार खिसकने, भूस्खलन, घरों और इमारतों के ढहने, सड़कों के धंसने जैसी घटनाओं के लिए प्रकृति नहीं, बल्कि मनुष्य जिम्मेदार हैं।