भारत हर साल विदेशी सरकारों को हजारों करोड़ रुपए की मदद करता है। इस साल सरकार ने इन्हें दी जाने वाली आर्थिक मदद में बड़ी कटौती की है। विदेश मंत्रालय ने दूसरे देशों को सहायता के लिए 5 हजार 483 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। ये पिछले साल के 5 हजार 806 करोड़ रुपए से थोड़ा कम है। जहां भारत ने बजट में भूटान के लिए सबसे ज्यादा 2150 करोड़ रुपए आवंटित किए तो वहीं म्यांमार की मदद के लिए भी भारत आगे आया है। म्यांमार के लिए भारत ने 350 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। वो भी ऐसे वक्त में जब म्यांमार के हालात बेहज नाजुक हैं। म्यांमर में भीषण गृह युद्ध और बांग्लादेश में राजनीतिक उथल पुथल के बीच भारत की एक्ट ईस्ट नीति पर गंभीर खतरे उत्पन्न हो गए हैं। इस नीति को भारत के पूर्वोत्तर और दक्षिण एशिया के बीच आर्थिक और सामरिक संबंधों को मजबूत करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
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भारत अपने मित्र देशों का ख्याल रखने में कभी पीछे नहीं रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान की अंतरिम सरकार है। वो सरकार जो भारत के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने पर जोर देती है। ऐसे में भारत ने बहुत तो नहीं लेकिन अफगानिस्तान के लिए अपने बजट को बढ़ाकर अच्छे संकेत देने की कोशिश की है। अफगानिस्तान की मदद के लिए भारत ने साल 2025-26 के लिए 100 करोड़ का प्रावधान रखा है। साल 2024-25 के बजट को देखें तो ये दोगुणा है। साल 2024-25 में अफगानिस्तान को 50 करोड़ की मदद भारत के द्वारा की गई थी। दो साल पहले रुपये में मदद का आंकड़ा 207 करोड़ का था। हालिया दिनों में अफगानिस्तान में भारत मानवीय सहायता तक सीमित रहा है। हालांकि मानवीय मदद से आगे तालिबान की अंतरिम सरकार भारत द्वारा अफगानिस्तान में तख्तापलट के बाद ब्रेक लगाने के बाद फिर से उसे शुरू करवाने पर जोर दे रही है।
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इसके अलावा भारत ने नेपाल के लिए अपना आवंटन 700 करोड़ रुपये पर बरकरार रखा है। संकटग्रस्त पड़ोसी श्रीलंका के लिए आवंटन 245 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 300 करोड़ रुपये कर दिया गया है, क्योंकि यह देश आर्थिक मंदी से उबर रहा है। पिछले साल बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पद से हटने के बाद दोनों देशों के बीच राजनयिक मतभेद के बीच ढाका को दी जाने वाली सहायता राशि 120 करोड़ रुपये पर अपरिवर्तित बनी हुई है।