भारत आज दुनिया को यह गर्व से बता रहा है कि वह सबसे तेज़ी से सड़कें बनाने वाला देश है। हर महीने हज़ारों किलोमीटर नई सड़कें बिछ रही हैं, एक्सप्रेसवे और हाईवे का जाल फैल रहा है। यह उपलब्धि विकास की रफ्तार का प्रतीक है। मगर इसी उपलब्धि के पीछे एक कटु और दर्दनाक सच्चाई छिपी है– भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में लाखों लोगों की जान जा रही है। सुबह से लेकर शाम तक, हर अख़बार और चैनल पर सड़क हादसों की खबरें सुर्खियों में रहती हैं।
यह एक विडंबना है कि जिस देश में सड़क निर्माण की गति को वैश्विक मानकों पर गिना जाता है, वहीं सड़क सुरक्षा की हालत दुनिया में सबसे खराब है। सड़कें बन रही हैं, लेकिन इन सड़कों पर चलने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो रही। सवाल उठता है कि क्या हमारी नीतियाँ केवल इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाने तक सीमित हैं, जबकि मानवीय जीवन की रक्षा को दरकिनार कर दिया गया है? सवाल यह भी उठता है कि आखिर खामी कहाँ है? देखा जाये तो देश में मोटर व्हीकल एक्ट में सख्त प्रावधान तो हैं, लेकिन अधिकांश राज्य इन्हें आधे-अधूरे तरीके से लागू करते हैं। इसके अलावा, नए हाईवे पर तेज रफ्तार के लिए तो जगह है, पर पैदल यात्रियों, साइकिल चालकों और ग्रामीण यातायात के लिए सुरक्षित लेन का अभाव है। साथ ही शराब पीकर ड्राइविंग, हेलमेट और सीट बेल्ट न पहनना आम बात है। इसके अलावा, दुर्घटना के बाद समय पर इलाज न मिलना मौतों का सबसे बड़ा कारण है।
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देखा जाये तो ऐसा लगता है कि सरकारों ने यह मान लिया है कि तेज रफ्तार = विकास, लेकिन सच यह है कि सुरक्षित रफ्तार = सतत विकास। सड़क निर्माण की गति पर जितना जोर है, उतना ही जोर सड़क सुरक्षा पर भी होना चाहिए। अगर हर साल लाखों लोग इन सड़कों पर मरते रहेंगे तो क्या इन सड़कों का विस्तार वाकई प्रगति कहलाएगा?
आगे की राह क्या हो, यदि इस पर ध्यान केंद्रित करें तो सड़क सुरक्षा को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया जाना चाहिए। नए हाईवे और एक्सप्रेसवे का डिज़ाइन मानव जीवन केंद्रित होना चाहिए। स्कूल स्तर से ट्रैफिक शिक्षा अनिवार्य की जानी चाहिए और हर दुर्घटना स्थल से 50 किमी के दायरे में ट्रॉमा सेंटर और एंबुलेंस नेटवर्क सुनिश्चित करना चाहिए। साथ ही ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन पर जीरो टॉलरेंस नीति अपनाई जानी चाहिए।
बहरहाल, भारत में सड़कें तेज़ी से बन रही हैं, लेकिन जब तक इन पर चलने वाले लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं होगी, तब तक यह विकास अधूरा ही रहेगा। सड़कें केवल गंतव्य तक पहुँचने का साधन नहीं हैं, वे जीवन की धारा भी हैं। हमें तय करना होगा कि हम केवल सड़कें बनाएँगे या उन पर सुरक्षित और खुशहाल सफ़र की गारंटी भी देंगे।