Sunday, December 28, 2025
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आतंकी ढेर, घुसपैठिया गिरफ्तार, NIA के छापे, अशोक स्तंभ तोड़ने पर 50 हिरासत में, 4056 कब्रों का सच आया सामने…J&K में आतंक के खिलाफ दे दनादन

जम्मू-कश्मीर एक बार फिर सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता और दृढ़ संकल्प का गवाह बना है। कुलगाम में आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में एक आतंकी मारा गया और सेना का एक जवान घायल हुआ। इस घटना ने स्पष्ट कर दिया है कि घाटी में अब भी दहशत फैलाने की कोशिशें जारी हैं, किंतु भारतीय सुरक्षा बल पूरी ताकत से उसका मुकाबला कर रहे हैं। यही नहीं, राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने भी पांच राज्यों और जम्मू-कश्मीर में एक साथ 22 ठिकानों पर छापे मारकर आतंकी नेटवर्क की जड़ों को हिलाने का काम किया है। वहीं, अंतरराष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी घुसपैठिए की गिरफ्तारी एक बार फिर इस सच्चाई को रेखांकित करती है कि आतंकवाद को पड़ोसी देश से लगातार प्रश्रय मिलता रहा है।

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इन घटनाओं के बीच उत्तर कश्मीर में हालिया अध्ययन ने एक और महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किया है। अज्ञात कब्रों के नाम पर वर्षों से जो भ्रम फैलाया गया, वह झूठ साबित हुआ। रिपोर्ट बताती है कि 90 प्रतिशत से अधिक कब्रें विदेशी और स्थानीय आतंकवादियों की थीं, न कि निर्दोष नागरिकों की। यह तथ्य उन शक्तियों को आईना दिखाता है, जो कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर “मानवाधिकार हनन” का झूठा एजेंडा बनाकर भारत को बदनाम करने की कोशिश करती रही हैं। हम आपको बता दें कि उत्तर कश्मीर में 4,056 अज्ञात कब्रों में से 90 प्रतिशत से अधिक कब्र बाहरी और स्थानीय आतंकवादियों की हैं। एक नये अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। इस अध्ययन ने ‘सामूहिक कब्र’ को लेकर लंबित अवधारणाओं को चुनौती दी है। ‘अनरेवलिंग द ट्रुथ: ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ अनमार्क एंड अनआइडेंटिफाइड ग्रेव्स इन कश्मीर’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट कश्मीर स्थित गैर-सरकारी संगठन ‘सेव यूथ सेव फ्यूचर फाउंडेशन’ द्वारा किए गए अध्ययन पर आधारित है।
वजाहत फारूक भट, जाहिद सुल्तान, इरशाद अहमद भट, अनिका नजीर, मुद्दसिर अहमद डार और शब्बीर अहमद की अगुवाई में शोधकर्ताओं ने उत्तर कश्मीर के सीमावर्ती जिलों- बारामूला, कुपवाड़ा और बांदीपोरा तथा मध्य कश्मीर के गंदेरबल में 373 कब्रिस्तानों का निरीक्षण और दस्तावेजीकरण किया। वजाहत फारूक भट ने कहा, ‘‘जनता द्वारा वित्त-पोषित हमारे संगठन ने 2018 में इस अध्ययन पर काम करना शुरू किया और 2024 में इसका आधारभूत कार्य पूरा किया। इसके बाद, हम विभिन्न सरकारी कार्यालयों को प्रस्तुत करने के लिए रिपोर्ट तैयार कर रहे थे। यह रिपोर्ट कश्मीर घाटी में दहशत फैलाने के लिए सीमा पार से थोपे जा रहे किसी भी तथ्य का खंडन करने में सक्षम है।” इस अध्ययन में जीपीएस टैगिंग, फोटोग्राफिक रिकॉर्ड, बयान और आधिकारिक अभिलेखों के विश्लेषण सहित एक जटिल पद्धति का उपयोग किया गया। इस अध्ययन का उद्देश्य असत्यापित विवरणों पर निर्भर रहने के बजाय साक्ष्य प्रदान करना था।
शोधकर्ताओं के अनुसार, शोध दल ने कुल 4,056 कब्रों का दस्तावेजीकरण किया और ये आंकड़े एक ऐसी वास्तविकता को उजागर करते हैं, जो निहित स्वार्थ वाले समूहों द्वारा किए गए पिछले दावों से काफी भिन्न है। रिपोर्ट में बताया गया कि 2,493 कब्रें (लगभग 61.5 प्रतिशत) बाहरी (विदेशी) आतंकवादियों की हैं, जो आतंकवाद-रोधी अभियानों में मारे गए। रिपोर्ट के मुताबिक, मारे गये इन आतंकियों के पास अक्सर पहचान पत्र नहीं होते थे, जिसकी वजह से उनका नेटवर्क छिपा रहता था और पाकिस्तान अक्सर इन घटनाओं से इनकार करता था। लगभग 1,208 कब्रें (लगभग 29.8 प्रतिशत) कश्मीर के स्थानीय आतंकवादियों की थीं, जो सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ों में मारे गए थे। रिपोर्ट में बताया गया कि इनमें से कई कब्रों की पहचान सामुदायिक साक्ष्यों और परिवार की मंजूरी मिलने के बाद की गई। शोधकर्ताओं को केवल नौ कब्रें ऐसी मिलीं, जिनमें नागरिकों की पुष्टि हुई और यह कुल कब्रों का मात्र 0.2 प्रतिशत है।
फाउंडेशन के अनुसार, यह निष्कर्ष सामूहिक नागरिक कब्रों के दावों का सीधा खंडन करता है और दर्शाता है कि व्यवस्थित न्यायेतर हत्याओं के आरोपों को ‘काफी बढ़ा-चढ़ाकर’ पेश किया गया। अध्ययन में 1947 के कश्मीर युद्ध के दौरान मारे गए आदिवासी आक्रमणकारियों की 70 कब्रों की भी पहचान की गई, जो इस क्षेत्र में संघर्ष-संबंधी कब्रों की ऐतिहासिक गहराई को उजागर करता है। वजाहत फारूक भट ने मानवीय चिंताओं को दूर करने के लिए आधुनिक डीएनए परीक्षण का उपयोग करते हुए 276 वास्तविक अचिह्नित कब्रों की व्यापक फोरेंसिक जांच की आवश्यकता पर भी जोर दिया। फाउंडेशन के अनुसार, “व्यापक क्षेत्रीय जांच से चार जिलों में कुल 4,056 कब्रों का दस्तावेजीकरण हुआ। आंकड़ों से एक जटिल वास्तविकता सामने आई, जो इन कब्रगाहों से जुड़े पहले के दावों और प्रचलित कथाओं से काफी अलग है।”
दूसरी ओर, आतंकवाद और अलगाववाद का चेहरा केवल बंदूक से ही सामने नहीं आता। श्रीनगर के हजरतबल दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ वाली पट्टिका को क्षतिग्रस्त करना इस बात का सबूत है कि कुछ तत्व अब भी भारत की राष्ट्रीय अस्मिता को ठेस पहुँचाने की कोशिश कर रहे हैं। यह केवल एक पट्टिका तोड़ने की घटना नहीं, बल्कि उन लोगों की गहरी राष्ट्रविरोधी मानसिकता का प्रतीक है, जो राष्ट्रीय प्रतीकों से चिढ़ते हैं और हर अवसर पर उन्हें विवाद का विषय बनाना चाहते हैं। यह न केवल देश के कानून का उल्लंघन है, बल्कि सांस्कृतिक और संवैधानिक अपमान भी है।
इन तमाम घटनाओं को जोड़कर देखें तो तस्वीर साफ है— भारत अब आतंकवाद और उसके समर्थकों को बख्शने के मूड में नहीं है। सुरक्षा बल आतंकवादियों को ढेर कर रहे हैं, जांच एजेंसियाँ साजिशों की जड़ तक पहुँच रही हैं, और जनता के सामने सच लाकर झूठे प्रचार को तोड़ रही हैं। इसके साथ ही, राष्ट्रविरोधी मानसिकता रखने वालों को यह संदेश भी दिया जा रहा है कि राष्ट्रीय प्रतीकों और एकता पर आघात करने की किसी भी कोशिश को सख़्ती से कुचला जाएगा।
निष्कर्ष यही है कि जम्मू-कश्मीर में नया युग शुरू हो रहा है— जहाँ आतंकवाद और अलगाववाद की जमीन सिकुड़ रही है और राष्ट्रवाद की जड़ें गहरी हो रही हैं। भारत की जनता और संस्थाएँ यह तय कर चुकी हैं कि अब किसी को भी हिंसा और राष्ट्रविरोध की आड़ में मासूमों को बरगलाने की इजाज़त नहीं दी जाएगी।
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