अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म आज केवल सूचना का साधन नहीं रह गए हैं, बल्कि ये कूटनीतिक विमर्श और वैचारिक टकराव के अखाड़े भी बन गए हैं। इसका ताज़ा उदाहरण अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के वरिष्ठ सलाहकार पीटर नवारो और टेस्ला/एक्स के मालिक एलन मस्क के बीच छिड़ा विवाद है। इस पूरे विवाद में एक खास बात यह रही कि भारत का पक्ष अब एआई जैसे डिजिटल टूल्स भी रख रहे हैं और नई दिल्ली पर मनगढ़ंत आरोप लगाने वालों को सही तथ्य बता कर सच सामने ला रहे हैं।
हम आपको बता दें कि अपने ताजा हमले में नवारो ने भारत पर यह आरोप लगाया कि वह रूसी तेल केवल मुनाफ़े के लिए खरीद रहा है और अमेरिकी नौकरियों को नुकसान पहुँचा रहा है। लेकिन जैसे ही उनकी पोस्ट पर ‘कम्युनिटी नोट’ ने तथ्यों को उजागर किया तो नवारो बौखला उठे। हम आपको बता दें कि पीटर नवारो के पोस्ट पर जुड़े एक कम्युनिटी नोट में स्पष्ट किया गया कि भारत की रूसी तेल ख़रीदारी ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ी है, केवल लाभ का उद्देश्य नहीं है। इसमें स्पष्ट किया गया कि यह ख़रीदारी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों का उल्लंघन नहीं करती। साथ ही इसमें कहा गया कि अमेरिका स्वयं भी रूस से कुछ वस्तुएँ आयात करता है, जिससे उसकी आलोचना दोहरे मापदंड जैसी लगती है। यह तथ्यात्मक सुधार नवारो को नागवार गुज़रा और उन्होंने इसे “प्रोपेगैंडा” कहकर खारिज कर दिया।
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इस पर एलन मस्क ने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए अपने प्लेटफ़ॉर्म ‘X’ का बचाव किया। उनका कहना था कि यहाँ विचार-विमर्श के सभी पहलुओं को सामने लाने की आज़ादी है। उन्होंने कहा कि कम्युनिटी नोट्स बिना किसी अपवाद के गलत सूचना को ठीक करते हैं। उन्होंने कहा कि इन नोट्स का डाटा और कोड सार्वजनिक है। उन्होंने कहा कि Grok जैसे एआई टूल अतिरिक्त तथ्य-जाँच मुहैया कराते हैं। एलन मस्क ने यहाँ तक कह दिया कि “पारंपरिक मीडिया अब भरोसे लायक नहीं रहा, असली और तात्कालिक ख़बरें अब X पर मिलती हैं।”
देखा जाये तो पीटर नवारो का हालिया बयान और उस पर एलन मस्क का पलटवार केवल शब्दों का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के बदलते चरित्र का संकेत है। साथ ही यह विवाद केवल सोशल मीडिया की भूमिका तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे तीन बड़े आयाम सामने आते हैं। पहला यह है कि भारत ने साफ कर दिया है कि उसका निर्णय उसकी राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा और वैश्विक बाज़ार परिस्थिति पर आधारित होगा, न कि बाहरी दबावों पर। दूसरा यह है कि अमेरिका खुद रूस से कुछ आयात करता है और भारत पर “रूस को मज़बूत करने” का आरोप लगाता है। यह रवैया अंतरराष्ट्रीय राजनीति में उसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है। तीसरा आयाम यह है कि यह पूरा प्रकरण दर्शाता है कि कैसे अब पारंपरिक मीडिया को दरकिनार कर सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स अंतरराष्ट्रीय विमर्श का केंद्र बनते जा रहे हैं। यहाँ तथ्यों की जाँच तत्काल संभव है और जनता सीधे संवाद का हिस्सा बन सकती है।
बहरहाल, भारत पर निशाना साधने वाले अमेरिकी बयानों का जवाब अब केवल सरकारें ही नहीं, बल्कि डिजिटल तथ्य-जाँच तंत्र और वैश्विक जनता भी दे रही है। नवारो की झुँझलाहट इस बात का प्रमाण है कि एकतरफा नैरेटिव थोपना अब आसान नहीं रहा। भारत की नीति स्पष्ट है— राष्ट्रीय हित पहले, चाहे तेल खरीद का मामला हो या व्यापार का। और सोशल मीडिया का नया परिदृश्य यह बता रहा है कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की लड़ाई अब सड़कों और सम्मेलनों से आगे बढ़कर टाइमलाइन और ट्रेंडिंग टॉपिक्स पर भी लड़ी जा रही है।
-नीरज कुमार दुबे