प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मणिपुर और मिजोरम यात्राएँ केवल राजनीतिक कार्यक्रम नहीं थीं, बल्कि इन्हें पूर्वोत्तर भारत के भविष्य की दृष्टि से एक निर्णायक कदम माना जाना चाहिए। जातीय हिंसा से प्रभावित मणिपुर को करोड़ों रुपए के विकास की सौगात देकर प्रधानमंत्री ने राज्य को विकास की राह पर बढ़ने के लिए प्रेरित किया तो दूसरी ओर मिजोरम को पहली बार राष्ट्रीय रेल नेटवर्क से जोड़कर नई आर्थिक संभावनाओं के द्वार खोले।
मणिपुर की बात करें तो मई 2023 से चली आ रही जातीय हिंसा ने राज्य की सामाजिक संरचना को झकझोर दिया। हज़ारों लोग विस्थापित हुए, सैकड़ों ने अपनी जान गंवाई और विश्वास की दीवारें दरक गईं। ऐसे समय में प्रधानमंत्री का राहत शिविरों तक पहुँचना और पीड़ित परिवारों से सीधे संवाद करना केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि विश्वास बहाली की ठोस पहल है। जब देश का शीर्ष नेतृत्व प्रभावित समुदायों की आँखों में आँखें डालकर आश्वासन देता है, तो लोगों को भरोसा होता है कि सरकार उनके साथ खड़ी है। मोदी ने स्पष्ट कहा कि विकास की पहली शर्त शांति है। देखा जाये तो प्रधानमंत्री के इस संदेश का असर संघर्षरत गुटों तक पहुँचना स्वाभाविक है। यदि संवाद और पुनर्वास की प्रक्रिया ईमानदारी से आगे बढ़ी तो मणिपुर में स्थायी शांति की नींव रखी जा सकती है। निस्संदेह, इस यात्रा से लोगों का विश्वास सरकार पर बढ़ा है और उन्हें लगता है कि उनकी पीड़ा अब उपेक्षित नहीं रहेगी।
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दूसरी ओर मिजोरम के लिए बैराबी-सैरंग रेलवे लाइन का उद्घाटन ऐतिहासिक है। 45 सुरंगों और दर्जनों पुलों से होकर गुज़रने वाली यह रेल परियोजना केवल तकनीकी चमत्कार नहीं, बल्कि आर्थिक जीवनरेखा है। मिजोरम अब सीधे दिल्ली, कोलकाता और गुवाहाटी से जुड़ गया है। इसका अर्थ है- रोज़गार और व्यापार के नए अवसर, पर्यटन में भारी बढ़ोतरी, खाद्यान्न व आवश्यक वस्तुओं की आसान आपूर्ति और सबसे महत्वपूर्ण, पूर्वोत्तर को मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था से स्थायी जुड़ाव। यह परियोजना “एक्ट ईस्ट” नीति को गति देगी और मिजोरम को दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ जोड़कर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए भी तैयार करेगी। प्रधानमंत्री ने मिजोरम से जो संदेश दिया उसकी गूँज पूरे देश तक पहुँची है।
बहरहाल, प्रधानमंत्री की मणिपुर की यात्रा से यह संदेश गया कि सरकार केवल नीतियों से नहीं, बल्कि संवेदनशील संवाद से भी शांति ला सकती है। वहीं मिजोरम की रेल परियोजना ने दिखा दिया कि पूर्वोत्तर अब उपेक्षित नहीं, बल्कि भारत की विकास यात्रा का इंजन बनने जा रहा है। इस दौरे का सबसे बड़ा महत्व यही है कि प्रधानमंत्री ने पूर्वोत्तर को केवल सीमांत भूगोल नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और विकास का केंद्र मानते हुए वहाँ विश्वास और विकास दोनों की नई पटरियाँ बिछाई हैं।