नेपाल के राजनीतिक संकट ने जिस तेज़ी से करवट ली, उसने पूरे दक्षिण एशिया का ध्यान खींचा। के.पी. शर्मा ओली के इस्तीफे और उसके बाद हिंसक प्रदर्शनों से उपजी अराजकता ने नेपाल को अनिश्चितता के गर्त में धकेल दिया था। लेकिन ठीक इसी समय देश की पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में चुना जाना एक ऐतिहासिक कदम है। कार्की न केवल नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी हैं, बल्कि उनके नेतृत्व को नेपाली युवाओं और लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वीकृति भी प्राप्त है।
नेपाल के राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने कार्की को शपथ दिलाकर यह स्पष्ट कर दिया कि राजनीतिक अस्थिरता के बीच अब एक संवैधानिक और लोकतांत्रिक समाधान सामने आया है। छह महीने के भीतर चुनाव कराने का जिम्मा कार्की सरकार के पास है और यह जिम्मेदारी आसान नहीं होगी। नेपाल में भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानता और सामाजिक अशांति जैसी चुनौतियाँ उनके सामने हैं।
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भारत ने इस नए राजनीतिक बदलाव पर तुरंत प्रतिक्रिया दी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कार्की को शपथ ग्रहण पर बधाई देते हुए कहा कि भारत नेपाल के शांति, स्थिरता और प्रगति के प्रयासों में हर कदम पर सहयोग करेगा। मोदी का यह वक्तव्य केवल एक औपचारिक संदेश नहीं, बल्कि नेपाल को लेकर भारत की साझी विरासत और विश्वास की नीति को दर्शाता है।
महत्वपूर्ण यह भी है कि मोदी ने मणिपुर की धरती से नेपाल को संदेश दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “आज मणिपुर की इस धरती से मैं नेपाल के मेरे साथियों से भी बात करूंगा। हिमालय की गोद में बसा नेपाल, भारत का एक मित्र है, करीबी दोस्त है। हम साझा इतिहास से जुड़े हैं। आस्था से जुड़े हैं। साथ मिलकर आगे बढ़ रहे हैं। मैं आज नेपाल में अंतरिम सरकार की प्रधानमंत्री के रूप में पदभार संभालने पर 140 करोड़ भारतवासियों की ओर से श्रीमती सुशीला जी को हार्दिक बधाई देता हूं। मुझे विश्वास है कि वे नेपाल में शांति, स्थिरता और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेंगी। नेपाल की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में सुशीला जी का आना, महिला सशक्तिकरण का बहुत उत्तम उदाहरण है। मैं आज नेपाल में ऐसे हर एक व्यक्ति की सराहना करूंगा जिसने ऐसे अस्थिरता भरे माहौल में भी लोकतांत्रिक मूल्यों को सर्वोपरि रखा है।”
देखा जाये तो प्रधानमंत्री का यह संदेश प्रतीकात्मक रूप से भारत-नेपाल के गहरे सांस्कृतिक और भौगोलिक जुड़ाव को रेखांकित करता है। भारत जानता है कि नेपाल की स्थिरता उसकी अपनी सुरक्षा और विकास से भी जुड़ी है। इसलिए भारत का यह भरोसा कि वह नेपाल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहेगा, काठमांडू की नई सरकार के लिए बड़ी ताकत है।
हम आपको यह भी बता दें कि सुशीला कार्की का वाराणसी से नाता और लोकतांत्रिक आंदोलनों से उनकी पुरानी सक्रियता उन्हें भारत के और करीब लाती है। ऐसे समय में जब नेपाल ने अशांति और राजनीतिक अनिश्चितता का सामना किया है, उनका नेतृत्व न केवल लोकतांत्रिक पुनर्निर्माण का संकेत है बल्कि महिला सशक्तिकरण की मिसाल भी है। नेपाल के लिए आने वाले महीने बेहद निर्णायक होंगे। अगर कार्की सरकार लोकतांत्रिक चुनाव की दिशा में पारदर्शिता और स्थिरता कायम कर पाती है, तो यह न केवल नेपाल बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के लिए एक सकारात्मक संदेश होगा। भारत का सहयोग इस राह को और आसान बना सकता है।