महबूबा मुफ्ती एक बार फिर कश्मीर के सवाल पर ऐसी बयानबाज़ी कर रही हैं, जिससे शांति और स्थिरता की कोशिशों को ठेस पहुँच सकती है। उन्होंने डोडा के विधायक मेहराज मलिक की PSA (जन सुरक्षा अधिनियम) के तहत हुई गिरफ्तारी को “लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला” बताते हुए सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका यह कहना कि “लोकतंत्र में ऐसे मामलों का समाधान केवल सदन में बहस और प्रस्ताव से होना चाहिए” न केवल आधा सच है बल्कि वास्तविकताओं से भी परे है।
हम आपको बता दें कि जन सुरक्षा अधिनियम (PSA) का उपयोग केवल तभी किया जाता है जब व्यक्ति की गतिविधियाँ कानून-व्यवस्था या शांति-व्यवस्था के लिए ख़तरा मानी जाती हैं। यदि एक निर्वाचित प्रतिनिधि भी ऐसी गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है, तो उस पर कार्रवाई करना पूरी तरह वैधानिक और आवश्यक है। लोकतंत्र का अर्थ अराजकता की छूट नहीं होता, बल्कि कानून के दायरे में रहकर जनता की सेवा करना होता है।
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महबूबा मुफ्ती यह भलीभाँति जानती हैं कि कश्मीर में हिंसक राजनीति और अलगाववादी गतिविधियों को हवा देने वाले तत्वों पर समय-समय पर कड़ा रुख अपनाना पड़ा है। जब वह खुद सत्ता में थीं, तब भी PSA के तहत गिरफ्तारियाँ हुई थीं। आज उसी प्रक्रिया को “लोकतंत्र पर हमला” बताना उनकी राजनीतिक अवसरवादिता को उजागर करता है।
उनका यह कहना कि “कश्मीरी क़ैदियों को जेलों में कष्ट झेलना पड़ रहा है” एक भावनात्मक अपील तो है, लेकिन इसमें यह स्वीकारोक्ति नहीं है कि इन क़ैदियों का बड़ा हिस्सा आतंकी नेटवर्क से जुड़ा रहा है या हिंसक गतिविधियों में शामिल रहा है। इन्हें “निर्दोष पीड़ित” बताना न केवल ग़लतबयानी है बल्कि जनता को गुमराह करने की कोशिश भी है।
देखा जाये तो कश्मीर धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की ओर बढ़ रहा है। पर्यटन, निवेश और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव दिखाई दे रहे हैं। लेकिन महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं के ऐसे बयान युवाओं में भ्रम और असंतोष फैलाकर माहौल को अस्थिर कर सकते हैं। यह कहना कि अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन करने वाले अब “उसका दर्द” झेल रहे हैं, वस्तुतः केंद्र सरकार की नीतियों को कटघरे में खड़ा करने और लोगों के मन में असुरक्षा पैदा करने की कोशिश है।
देखा जाये तो महबूबा मुफ्ती का बयान लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा से अधिक राजनीतिक ज़मीन तलाशने का प्रयास प्रतीत होता है। सच्चाई यह है कि लोकतंत्र तभी मज़बूत होता है जब कानून का शासन सर्वोपरि हो। यदि कोई भी व्यक्ति—चाहे वह आम नागरिक हो या विधायक, कानून तोड़ेगा, तो उसके खिलाफ कार्रवाई अनिवार्य है। कश्मीर को आगे बढ़ाने के लिए ज़रूरी है कि स्थानीय नेता जिम्मेदारी से बोलें और ऐसे वक्तव्यों से बचें जो शांति-प्रक्रिया को बाधित कर सकते हैं। महबूबा मुफ्ती को समझना होगा कि कश्मीर अब भय और भ्रम की राजनीति से आगे बढ़ चुका है। ऐसे बयान न केवल ग़लतबयानी हैं बल्कि युवाओं को भटकाने वाले भी साबित हो सकते हैं।