भारत और भूटान के बीच घोषित रेल परियोजनाएँ (कोकराझार-गेलेफू और बनरहाट-सामत्से) सिर्फ बुनियादी ढांचे के विस्तार का संकेत नहीं हैं, बल्कि ये दक्षिण एशिया की सामरिक भू-राजनीति में एक नए अध्याय का आरंभ करती हैं। लगभग ₹4,033 करोड़ की लागत से बनने वाली ये दोनों रेल लाइनें न केवल भूटान को उसकी पहली रेल कनेक्टिविटी प्रदान करेंगी, बल्कि भारत-भूटान साझेदारी को गहरे सामरिक और आर्थिक आयाम भी देंगी।
हम आपको बता दें कि भूटान भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिए सामरिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण बफर ज़ोन है। चीन और भूटान के बीच अभी भी कई सीमा विवाद अनसुलझे हैं, विशेषकर डोकलाम क्षेत्र, जहाँ 2017 में भारत-चीन टकराव हुआ था। ऐसे में रेल संपर्क केवल व्यापार और पर्यटन तक सीमित नहीं है; यह सुरक्षा साझेदारी को भी मजबूती देता है। हम आपको बता दें कि कोकराझार-गेलेफू रेल लाइन सीधे बोंगाईगाँव से जुड़ती है, जो एक औद्योगिक और सामरिक हब है। संकट की स्थिति में इस रेल लाइन के जरिये भारत को पूर्वोत्तर में रक्षा सामग्री की आपूर्ति तेज़ी से पहुँचाने का विकल्प मिलेगा।
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इसके अलावा, रेल संपर्क से भारत की मोबिलिटी और भूटान की स्थिरता दोनों को बल मिलेगा। चीन द्वारा भूटान में बढ़ते कूटनीतिक दबाव को देखते हुए यह कनेक्टिविटी सुरक्षा संतुलन को भारत के पक्ष में मजबूत करती है। हम आपको बता दें कि भूटान की अर्थव्यवस्था अब तक सड़क नेटवर्क और भारत पर निर्भर सड़क परिवहन तक सीमित रही है। 70–90 किमी की नई पटरियों के जरिए भूटान सीधे भारत के 1.5 लाख किमी लंबे रेलवे नेटवर्क से जुड़ जाएगा। इसका अर्थ है कि भूटानी निर्यात— विशेषकर हाइड्रोपावर, सीमेंट, खनिज और कृषि उत्पाद आसानी से भारतीय बंदरगाहों और वैश्विक बाजारों तक पहुँच पाएँगे।
इसके अलावा सामत्से, जो भूटान का औद्योगिक शहर है, वह भारतीय बाज़ारों से जुड़कर निवेश आकर्षित कर सकता है। वहीं, गेलेफू को “माइंडफुलनेस सिटी” के रूप में विकसित करने की योजना को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन नेटवर्क से जोड़ने में रेल अहम साबित होगी। देखा जाये तो भारत द्वारा भूटान की 13वीं पंचवर्षीय योजना में ₹10,000 करोड़ का सहयोग इस बात का संकेत है कि रेल परियोजनाएँ केवल बुनियादी ढांचा नहीं, बल्कि समग्र विकास सहयोग का हिस्सा हैं।
हम आपको बता दें कि भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की कनेक्टिविटी राष्ट्रीय एकीकरण और आर्थिक विकास की दृष्टि से अहम है। असम, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के लिए भूटान के रास्ते नए व्यापार और सांस्कृतिक अवसर खुलेंगे। साथ ही बोंगाईगाँव और उत्तर बंगाल के उद्योग अब सीधे भूटानी बाज़ार से जुड़ेंगे। वहीं दार्जिलिंग-भूटान-असम के बीच रेल मार्ग अंतरराष्ट्रीय और घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देंगे। साथ ही सीमापार आवागमन से भारत-भूटान के लोगों के बीच संबंध और अधिक प्रगाढ़ होंगे।
वैसे इस परियोजना को लेकर एक सवाल यह भी उठता है कि क्या यह चीन की बीआरआई का जवाब है? देखा जाये तो चीन का Belt and Road Initiative (BRI) दक्षिण एशिया में लगातार अपने प्रभाव का विस्तार कर रहा है। पाकिस्तान में CPEC, श्रीलंका में हंबनटोटा, और नेपाल में आधारभूत ढांचा परियोजनाएँ इसके उदाहरण हैं। भूटान ने अब तक बीआरआई से दूरी बनाए रखी है और यही उसकी भारत-केन्द्रित विदेश नीति की पहचान है। हम आपको बता दें कि भारत की यह रेल परियोजना बीआरआई का प्रत्यक्ष विकल्प तो नहीं है, परंतु इसे रणनीतिक संतुलन साधने वाला कदम अवश्य कहा जा सकता है। जहाँ बीआरआई चीन के ऋण-जाल और रणनीतिक घेराबंदी की छवि से ग्रस्त है, वहीं भारत का सहयोग अनुदान-आधारित, पारदर्शी और साझेदारीपूर्ण है। भूटान जैसे छोटे हिमालयी राष्ट्र के लिए यह भरोसा अधिक महत्वपूर्ण है कि भारत उसके सुरक्षा, संस्कृति और विकास को समानांतर गति से पोषित कर रहा है।
देखा जाये तो भारत-भूटान रेल संपर्क केवल ट्रैक बिछाने की परियोजना नहीं है; यह एक साझा भविष्य की रूपरेखा है। जहाँ एक ओर यह भूटान को उसकी पहली रेल कनेक्टिविटी देकर उसे आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में ले जाएगी, वहीं दूसरी ओर यह भारत के उत्तर-पूर्व और समूचे दक्षिण एशिया में एक नए सामरिक संतुलन की स्थापना करेगी। यह परियोजना चीन के बीआरआई का सीधा जवाब नहीं, बल्कि उसका बेहतर विकल्प है— एक ऐसा मॉडल जिसमें विकास सहयोग सुरक्षा के साथ जुड़कर छोटे हिमालयी राष्ट्रों को स्वतंत्र और आत्मविश्वासी बनाता है। भारत और भूटान की मित्रता का यह नया आयाम न केवल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती देगा, बल्कि दक्षिण एशिया में स्थिरता और संतुलन का भी आधार बनेगा।
हम आपको यह भी बता दें कि भारतीय रेलवे और भूटान सरकार के बीच आज इस संबंध में एक औपचारिक करार भी हुआ। इससे पहले रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव और विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने इस रेल परियोजना से जुड़ी जानकारी मीडिया के साथ साझा की। भारतीय रेलवे ने कोकराझर-गेलफू लिंक को ‘स्पेशल रेलवे प्रोजेक्ट’ (SRP) घोषित किया है, जो इसे प्राथमिकता के आधार पर संसाधन और वित्तीय आवंटन सुनिश्चित करता है। यह कदम केवल इंफ्रास्ट्रक्चर विस्तार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ के तहत रणनीतिक महत्व की परियोजना के रूप में देखा जा रहा है। रेल अधिकारियों के अनुसार, यह परियोजना सीमा पार कनेक्टिविटी को मजबूत करने, राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ाने और स्थानीय एवं क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में अहम भूमिका निभाएगी। बहरहाल, यह प्रोजेक्ट दिखाता है कि इंफ्रास्ट्रक्चर विस्तार केवल यातायात के साधन नहीं होते, बल्कि ये क्षेत्रीय कूटनीति, आर्थिक विकास और सामरिक सुरक्षा का मजबूत आधार भी बन सकते हैं।