Saturday, October 4, 2025
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लेह में आगजनी-मौतें! राज्य के दर्जे की मांग में झुलसा लद्दाख, क्या है पूरा विवाद?

लद्दाख, जिसे अपने मठों, ग्लेशियरों और सामरिक महत्व के कारण भारत का मुकुट रत्न कहा जाता है, हाल ही में हिंसा और अशांति से हिल गया है। प्रार्थना झंडों और शांत सड़कों के लिए प्रसिद्ध यह क्षेत्र अब आग, आक्रोश और टकराव की छवियों से भर गया है। इस अशांति के केंद्र में हैं सोनम वांगचुक, जो कभी वैश्विक स्तर पर ‘जलवायु योद्धा’ कहलाने वाले नवप्रवर्तक, अब गिरफ़्तार और अशांति फैलाने के आरोपों से घिरे हुए।

24 सितंबर की हिंसा

लेह में राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा की मांग को लेकर बुलाए गए बंद ने हिंसक रूप ले लिया। दोपहर तक भीड़ ने सरकारी व बीजेपी दफ़्तरों पर हमला किया, वाहनों को आग के हवाले कर दिया और पुलिस के साथ झड़पें शुरू हो गईं। इस बेकाबू हालात में चार लोगों की जान गई, दर्जनों घायल हुए और प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ा। शांतिपूर्ण आध्यात्मिकता के प्रतीक क्षेत्र में जलते वाहनों और पथराव की तस्वीरें चौंकाने वाली थीं।

वांगचुक का बदलता चेहरा

सोनम वांगचुक का सार्वजनिक जीवन कभी नवाचार और सुधार का प्रतीक माना जाता था। ‘3 इडियट्स’ के किरदार से लेकर वैश्विक पर्यावरण पुरस्कारों तक, उनकी छवि एक सामाजिक परिवर्तनकारी की रही। लेकिन आलोचक उनके राजनीतिक रुख में आए बदलावों को अवसरवाद करार देते हैं। 2019 में अनुच्छेद 370 हटने और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने पर वांगचुक ने इसे ‘लंबे संघर्ष का सपना पूरा होना’ बताया था। आज वही वांगचुक राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग कर रहे हैं।
 

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फ्यांग भूमि विवाद

21 अगस्त 2025 को लद्दाख प्रशासन ने फ्यांग में 135 एकड़ ज़मीन पर वांगचुक के संस्थान HIAL का पट्टा रद्द कर दिया। वजह बताई गई, छह साल की निष्क्रियता, कोई मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से संबद्धता नहीं, साइट पर कोई ठोस निर्माण नहीं और करोड़ों का बकाया। ग्रामीणों ने अतिक्रमण की शिकायत की थी, और प्रशासन ने ज़मीन सरकार को लौटाने का आदेश दिया। वांगचुक ने इसे राजनीतिक साज़िश बताया और इसके तुरंत बाद 35 दिन का अनशन शुरू कर दिया।

वित्तपोषण और FCRA विवाद

सिर्फ भूमि ही नहीं, वित्तीय पारदर्शिता पर भी वांगचुक पर सवाल उठते रहे हैं। उनके संगठन SECMOL का विदेशी चंदे का लाइसेंस (FCRA) बार-बार उल्लंघन और धन के दुरुपयोग के आरोपों के बाद रद्द कर दिया गया। यह विवाद नया नहीं है। 2007 में भी प्रशासन ने संगठन पर विदेशी फंडिंग का दुरुपयोग और बिना अनुमति सरकारी भूमि कब्जाने का आरोप लगाया था। सुरक्षा एजेंसियों ने चीन सहित विदेशों से संभावित संबंधों पर चिंता जताई।

भूख हड़ताल और गिरफ़्तारी

कड़ाके की ठंड में कंबल ओढ़े वांगचुक की तस्वीरें मीडिया व सोशल मीडिया पर वायरल हुईं। उन्होंने खुद कहा था, ‘जेल में बंद सोनम वांगचुक, बाहर मौजूद सोनम वांगचुक से ज़्यादा ख़तरनाक होंगे।’ 25 सितंबर को, हिंसा के बाद प्रशासन ने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ़्तार कर लिया।

राजनीति की छाया

विपक्षी दलों से जुड़े संगठनों ने सोशल मीडिया पर आंदोलन को हवा दी और वांगचुक को ‘आधुनिक गांधी’ की छवि देने का प्रयास किया। आलोचकों का मानना है कि यह संगठित और योजनाबद्ध आंदोलन था, जबकि समर्थकों का कहना है कि यह लद्दाख की वास्तविक समस्याओं की अभिव्यक्ति है।

क्यों मायने रखता है यह संकट?

लद्दाख सिर्फ संस्कृति और प्रकृति की दृष्टि से नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है। चीन सीमा, दुर्लभ खनिजों के भंडार और सेना की तैनाती इसे भारत के लिए अनिवार्य बनाते हैं। यहां अस्थिरता देश की सुरक्षा को सीधे चुनौती देती है।
लद्दाख की अशांति स्थानीय मांगों, व्यक्तिगत विवादों और राजनीतिक अवसरवाद का मिश्रण है। सोनम वांगचुक को इतिहास सुधारक के रूप में देखेगा या भड़काऊ नेता के रूप में, यह अब समय और लोगों की राय तय करेंगे। फिलहाल इतना स्पष्ट है कि लद्दाख की नाज़ुक शांति बुरी तरह घायल हुई है, और यह मसला अब सिर्फ जलवायु या नवाचार का नहीं, बल्कि भारत की संप्रभुता और सुरक्षा का है।
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