भारत और ब्रिटेन के बीच रविवार से आरंभ हुआ द्विपक्षीय नौसैनिक युद्धाभ्यास ‘कोन्कन 2025’ केवल समुद्री शक्ति प्रदर्शन नहीं है, बल्कि बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों के बीच एक सामरिक संदेश भी है। पश्चिमी हिंद महासागर में दोनों देशों के विमानवाहक पोतों, युद्धपोतों, पनडुब्बियों और लड़ाकू विमानों की भागीदारी यह दर्शाती है कि अब हिंद महासागर केवल व्यापारिक गलियारों का नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति-संतुलन का केंद्र बन चुका है।
हम आपको बता दें कि भारतीय नौसेना का नेतृत्व इस अभ्यास में विमानवाहक पोत INS विक्रांत कर रहा है, जिसमें मिग-29K लड़ाकू विमान तैनात हैं, जबकि ब्रिटिश कैरियर स्ट्राइक ग्रुप का नेतृत्व HMS Prince of Wales कर रहा है, जिसके साथ F-35B स्टील्थ जेट्स, नॉर्वे और जापान के सहयोगी संसाधन भी शामिल हैं। यह संयो
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ब्रिटिश उच्चायुक्त लिंडी कैमरन ने इस अभ्यास को “स्वतंत्र और खुला इंडो-पैसिफिक” सुनिश्चित करने की साझा प्रतिबद्धता बताया है। यह वक्तव्य किसी साधारण राजनयिक औपचारिकता से अधिक है। देखा जाये तो यह भारत-यूके के बीच ‘विजन 2035’ के अंतर्गत उभरते हुए नए रक्षा-संबंधों की झलक देता है। इस दृष्टि दस्तावेज़ में दोनों देशों ने आधुनिक रक्षा एवं सुरक्षा साझेदारी को अपने संबंधों का मूल स्तंभ बताया था।
हम आपको बता दें कि ‘कोन्कन’ अभ्यास के इस संस्करण में समुद्री अभियानों के लगभग सभी पहलुओं को शामिल किया गया है— एंटी-एयर, एंटी-सर्फेस, एंटी-सबमरीन ऑपरेशन से लेकर जटिल उड्डयन संचालन और समुद्री संचालन तक। ये सभी अभ्यास केवल तकनीकी समन्वय नहीं, बल्कि आपसी विश्वास और साझी सुरक्षा सोच का परिणाम हैं। आगामी 14 अक्टूबर को पश्चिमी तट पर भारतीय वायुसेना और ब्रिटिश नौसेना के बीच होने वाला संयुक्त वायु रक्षा अभ्यास इस समन्वय को और गहराई देगा। भारतीय वायुसेना के सुखोई-30MKI और जगुआर लड़ाकू विमानों की भागीदारी इस बात का संकेत है कि भारत अब बहु-आयामी (multi-domain) रक्षा अभ्यासों में समान रूप से सक्षम है।
देखा जाये तो यह अभ्यास ऐसे समय में हो रहा है जब हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती नौसैनिक सक्रियता और उसकी “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” रणनीति को लेकर चिंताएँ बनी हुई हैं। भारत और ब्रिटेन का यह संयुक्त प्रदर्शन एक रणनीतिक उत्तर की तरह देखा जा सकता है— जो “नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था” (rules-based international order) की रक्षा के लिए सामूहिक इच्छाशक्ति का प्रतीक है।
हम आपको बता दें कि ब्रिटिश कैरियर ग्रुप इस समय ‘ऑपरेशन हाइमैस्ट’ (Operation Highmast) के अंतर्गत आठ महीने के बहुराष्ट्रीय अभियान पर है, जिसमें वह इंडो-पैसिफिक के कई देशों के साथ संयुक्त अभ्यास कर रहा है। इस अभियान में भारत के साथ सहभागिता स्पष्ट करती है कि लंदन अब एशिया में अपने सामरिक पुनर्संयोजन की दिशा में ठोस कदम उठा रहा है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की आगामी भारत यात्रा (8-9 अक्टूबर) भी इस रणनीतिक संवाद को और राजनीतिक गति देने का अवसर बनेगी।
इसके अलावा, INS विक्रांत की अग्रणी भूमिका इस तथ्य को रेखांकित करती है कि भारत अब पूर्ण स्वदेशी विमानवाहक पोत संचालन में सक्षम है। यह नौसेना की उस दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत भारत “तीन समुद्री थिएटरों” में संतुलित उपस्थिति बनाए रखना चाहता है। भारतीय नौसेना का यह आत्मविश्वास, ब्रिटिश नौसेना के तकनीकी अनुभव के साथ मिलकर, दोनों देशों को साझा समुद्री रणनीति की दिशा में आगे बढ़ा रहा है।
हम आपको बता दें कि ‘कोन्कन’ श्रृंखला के अभ्यास पिछले दो दशकों में न केवल आकार और जटिलता में बढ़े हैं, बल्कि वे दोनों सेनाओं के बीच अंतर-संचालन क्षमता और आपसी समझ को भी गहरा बना चुके हैं। यह क्रमिक विकास बताता है कि यह संबंध किसी आकस्मिक घटना का परिणाम नहीं, बल्कि एक संगठित और दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी की नींव पर टिका है।
बहरहाल, ‘कोन्कन 2025’ अभ्यास यह स्पष्ट करता है कि भारत अब केवल अपने समुद्री सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं रहना चाहता, बल्कि वह हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता और स्वतंत्र नेविगेशन का सक्रिय संरक्षक बनने की भूमिका निभा रहा है। ब्रिटेन के साथ यह संयुक्त प्रयास उस व्यापक परिवर्तन का संकेत है जिसमें भारत पारंपरिक “सुरक्षा उपभोक्ता” से “सुरक्षा प्रदाता” बनने की दिशा में अग्रसर है। इस अभ्यास का सबसे बड़ा संदेश यही है— हिंद महासागर में अब सुरक्षा का नया समीकरण भारत के इर्द-गिर्द आकार ले रहा है, और ब्रिटेन जैसे परंपरागत वैश्विक खिलाड़ी भी इसे स्वीकारते हुए भारत के साथ कदम से कदम मिला रहे हैं।