Monday, December 29, 2025
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CJI BR Gavai पर जूता उछालने वाले वकील राकेश का चौंकाने वाला बयान ‘मुझे कोई अफसोस नहीं, ये सब ऊपर वाले ने कराया’

सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई पर जूता फेंकने की कोशिश करने वाले वकील राकेश किशोर ने घटना के बाद दिए अपने बयान में कहा है कि उन्हें अपने कदम पर कोई पछतावा नहीं है। वे अपने बयान पर अडिग हैं कि उन्होंने यह कदम सीजेआई की एक टिप्पणी से आहत होकर उठाया था। इस घटना ने न केवल न्यायपालिका बल्कि पूरे देश में व्यापक बहस छेड़ दी है, क्योंकि यह पहली बार है जब सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही के दौरान किसी वकील ने मुख्य न्यायाधीश पर इस तरह की हरकत की है।
राकेश किशोर ने कहा कि 16 सितंबर को सुनवाई के दौरान जब एक जनहित याचिका दायर की गई थी, तो मुख्य न्यायाधीश ने उस पर टिप्पणी करते हुए कहा था, “जाओ और मूर्ति से प्रार्थना करो कि वह तुम्हारा सिर वापस लगा दे।” वकील के अनुसार, यह टिप्पणी उनके धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली थी। उन्होंने कहा, “मैं कोई नशे में नहीं था, न ही मुझे अपने किए पर कोई अफसोस है। यह मेरी प्रतिक्रिया थी, क्योंकि सनातन धर्म से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट अक्सर असंवेदनशील रवैया दिखाता है।”
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति को अपने शब्दों की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। “सीजेआई जैसे पद पर बैठे व्यक्ति को समझना चाहिए कि ‘माई लॉर्ड’ केवल एक औपचारिक संबोधन नहीं, बल्कि सम्मान और संवैधानिक गरिमा का प्रतीक है,” उन्होंने कहा। राकेश किशोर ने आगे योगी सरकार की बुलडोजर कार्रवाई का उदाहरण देते हुए पूछा कि “क्या सरकारी जमीन पर अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई गलत है?”
घटना के बाद बार काउंसिल ने राकेश किशोर को निलंबित कर दिया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा के निर्देश दिए हैं। वहीं, सोशल मीडिया पर इस घटना को लेकर लोगों की राय बंटी हुई है। कुछ इसे न्यायपालिका के प्रति असम्मान बता रहे हैं, तो कुछ इसे न्यायिक जवाबदेही की बहस से जोड़ रहे हैं।
राकेश किशोर ने जाति को लेकर उठे सवालों पर भी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “लोग कहते हैं कि सीजेआई दलित हैं, लेकिन क्या कोई मेरी जाति जानता है? शायद मैं भी दलित हूं। उन्होंने अपनी आस्था बदली है, अब वे बौद्ध हैं। तो फिर वे दलित कैसे हैं? यह सोचने का विषय है।”
अपने बयान के अंत में उन्होंने कहा कि उन्हें किसी से माफी नहीं मांगनी और न ही उन्हें अपने कदम पर अफसोस है। “मैंने जो किया, वह ऊपर वाले की प्रेरणा से किया। न्यायपालिका को अपनी संवेदनशीलता पर काम करना चाहिए। राकेश ने कहा लाखों मामले लंबित हैं, लेकिन जब आम आदमी अपनी आस्था की बात करता है, तो उसका मजाक उड़ाया जाता है,” 
इस घटना ने न्यायपालिका की गरिमा, धार्मिक असंवेदनशीलता और अभिव्यक्ति की सीमा पर एक गंभीर बहस को जन्म दे दिया है। अदालत परिसर में सुरक्षा और अनुशासन को लेकर भी अब सवाल उठ रहे हैं।
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