Wednesday, October 15, 2025
spot_img
Homeराष्ट्रीयPrabhasakshi NewsRoom: जो काम दुनिया में कोई और नहीं कर पाया वो...

Prabhasakshi NewsRoom: जो काम दुनिया में कोई और नहीं कर पाया वो भारत की नारी शक्ति ने कर दिखाया, Taliban को पहली बार झुकना पड़ गया

अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताक़ी को अपने भारत प्रवास के दौरान दो दिन के भीतर दो प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलानी पड़ी। यह घटना केवल एक राजनयिक औपचारिकता नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र, मीडिया और नारी चेतना की ताकत का प्रतीक बन गई है। जिस संगठन की पहचान ही स्त्रियों के दमन, शिक्षा और सार्वजनिक जीवन से उनके निष्कासन से जुड़ी रही है, वही संगठन भारत की धरती पर महिला पत्रकारों को आमंत्रित करने के लिए बाध्य हुआ— यह दृश्य अपने आप में एक ऐतिहासिक विडंबना और संदेश दोनों है।
हम आपको बता दें कि 10 अक्तूबर को नई दिल्ली में मुत्ताक़ी की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित हुई। यह कार्यक्रम पूरी तरह ‘ओनली जेंट्स’ जैसा आयोजन बन गया था जिसमें न कोई महिला पत्रकार थी न कोई महिला प्रतिनिधि। जब तस्वीरें सामने आईं, तो भारत में मीडिया जगत से लेकर राजनीतिक वर्ग तक भारी आलोचना हुई। Editors Guild of India और Indian Women’s Press Corps (IWPC) ने इसे “उच्चस्तरीय भेदभाव” करार दिया और स्पष्ट कहा कि वियना कन्वेंशन या कूटनीतिक छूट के नाम पर लिंगभेद का कोई औचित्य स्वीकार्य नहीं है।

इसे भी पढ़ें: Vishwakhabram: Diplomacy सीख गया है Taliban, Jaishankar से मिलने के बाद Muttaqi ने जो कहा उसे सुनकर घबरा गया Pakistan

हम आपको बता दें कि भारतीय महिला पत्रकारों, विपक्षी नेताओं और नागरिक समाज की तीखी प्रतिक्रिया ने न केवल अफगान प्रतिनिधिमंडल, बल्कि भारत सरकार को भी त्वरित प्रतिक्रिया देने पर विवश कर दिया। इस संदर्भ में विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया था कि वह तालिबान की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजक नहीं था। लेकिन इससे मामला शांत नहीं हुआ। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, महुआ मोइत्रा और जयराम रमेश जैसे नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी की नारी सशक्तिकरण की प्रतिबद्धता पर प्रश्न उठाए। “नारी शक्ति” के नारों के बीच इस घटना ने एक असहज राजनीतिक वातावरण बना दिया।
देखा जाये तो भारत में लोकतंत्र और मीडिया की शक्ति यही है— यहां किसी भी प्रकार का भेदभाव सार्वजनिक अस्वीकृति के बिना नहीं रह सकता। नतीजा यह हुआ कि तालिबान को दूसरे ही दिन “सुधरी हुई” प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करनी पड़ी, जिसमें महिला पत्रकारों को भी आमंत्रण भेजा गया और आयोजन को “समावेशी” बताया गया। अफगान विदेश मंत्री मुत्ताक़ी ने रविवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में सफाई दी कि यह “जानबूझकर नहीं” बल्कि “तकनीकी त्रुटि” थी। उन्होंने कहा कि सूची जल्दी में बनाई गई थी और “समय की कमी” के कारण कुछ पत्रकारों को ही बुलाया गया। देखा जाये तो उनका यह दावा चाहे जितना कूटनीतिक लगे, पर असलियत यह है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव, विशेषकर भारत में महिला पत्रकारों की सामूहिक असहमति ने तालिबान को अपनी छवि सुधारने के लिए मजबूर कर दिया।
यह घटना केवल मीडिया नैतिकता या महिला अधिकारों का प्रश्न नहीं थी, इसके पीछे गहरे कूटनीतिक अर्थ छिपे हैं। तालिबान सरकार अभी भी वैश्विक मान्यता के संकट से जूझ रही है। भारत, जो अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं, शिक्षा और स्वास्थ्य सहयोग का प्रमुख भागीदार रहा है, तालिबान के लिए संपर्क बनाए रखने का एक आवश्यक पड़ाव है। मुत्ताक़ी की भारत यात्रा इसी पुनर्संपर्क नीति का हिस्सा थी। परन्तु भारत में महिलाओं का लोकतांत्रिक प्रभाव और प्रेस की स्वतंत्रता इतनी मजबूत है कि तालिबान जैसी सत्ताएं भी अपने पुराने तौर-तरीके यहां लागू नहीं कर सकतीं। यह घटना उस “सॉफ्ट पावर” का उदाहरण है जो किसी सैन्य दबाव के बिना भी कूटनीति को प्रभावित कर सकती है।
जहां तक अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति की बात है तो आपको बता दें कि विदेश मंत्री मुत्ताक़ी ने अपने संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि “शिक्षा हराम नहीं है” और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में महिलाएँ पढ़ रही हैं। देखा जाये तो यह बयान खुद में विरोधाभासों से भरा है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टें अफगान महिलाओं पर “व्यवस्थित उत्पीड़न” की पुष्टि करती हैं। फिर भी, भारत की धरती से यह कथन निकलना प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिखाता है कि लोकतांत्रिक विमर्श में आते ही तालिबान को अपने दमनकारी चेहरे को ढकने की आवश्यकता महसूस होती है।
देखा जाये तो मुत्ताक़ी की यह “समावेशी” प्रेस कॉन्फ्रेंस भारत की नीतिगत जीत है, लेकिन उससे भी बढ़कर यह भारतीय महिलाओं की नैतिक विजय है। जिस तालिबान ने काबुल में महिलाओं के चेहरों पर नकाब और सपनों पर ताले लगाए हैं, उसी के प्रतिनिधि को दिल्ली में महिला पत्रकारों के प्रश्नों का सामना करना पड़ा। यह दृश्य विश्व राजनीति में भारत की विशिष्ट पहचान— “लोकतंत्र, संवाद और समानता की भूमि”, को और सुदृढ़ करता है।
बहरहाल, भारत की मीडिया और नारी चेतना ने मिलकर एक ऐसी ताकत को झुकाया, जो अब तक केवल बंद दरवाजों के भीतर शासन करने की आदी रही है। यह संदेश सिर्फ तालिबान के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए है कि भारत में नारी की आवाज़ को दबाना संभव नहीं।
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments