सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य आरोपी सुरेन्द्र कोली को बरी करते हुए निठारी हत्याकांड की पुलिस जांच की तीखी आलोचना की और कहा कि पुलिस ने जांच के प्रमुख पहलुओं की उपेक्षा की। शीर्ष अदालत ने कोली को उस एकमात्र मामले में बरी कर दिया जिसमें उसकी आजीवन कारावास की सज़ा अभी भी बरकरार थी। उसे और उसके सह-आरोपी मोहिंदर सिंह पंधेर को पहले ही कई अन्य मामलों में बरी किया जा चुका था।
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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पिछले बरी करने के फैसले से सहमति जताते हुए कहा कि केवल संदेह के आधार पर दोषसिद्धि नहीं हो सकती, खासकर जब कोली को अन्य संबंधित मामलों में बरी किया जा चुका हो। अदालत ने कहा कि आरोपी के खिलाफ परिस्थितिजन्य साक्ष्य फोरेंसिक सबूतों से समर्थित नहीं थे और अंग व्यापार से जुड़े सुरागों सहित प्रमुख जांच के रास्तों की उपेक्षा की गई। अदालत ने यह भी कहा कि कोली का कथित कबूलनामा अविश्वसनीय है, क्योंकि वह 60 दिनों से ज़्यादा समय तक बिना किसी कानूनी सहायता या मेडिकल जांच के हिरासत में रहा।
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पीठ ने अंतिम फैसले में कहा कि हिरासत में संभावित यातना का संकेत ट्रायल मजिस्ट्रेट ने दिया था, जिन्होंने कोली का इकबालिया बयान दर्ज किया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कई खामियों को भी उजागर किया गया था, जिनमें अपराध स्थल की सुरक्षा में देरी, विरोधाभासी रिमांड और रिकवरी पेपर, समय पर मेडिकल जांच का अभाव और अधूरे फोरेंसिक दस्तावेज शामिल हैं।

