गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कावेरी नदी पर मेकेदाटु बांध के निर्माण को लेकर तमिलनाडु सरकार की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उन्हें खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह मामला अभी “असमय” है क्योंकि परियोजना की मंजूरी से पहले तमिलनाडु की आपत्तियों और विशेषज्ञ संस्थाओं की राय को ध्यान में रखा जाएगा।
मौजूद जानकारी के अनुसार, तमिलनाडु सरकार ने दो याचिकाएं दाखिल की थीं पहली, केंद्रीय जल आयोग द्वारा नवंबर 2018 में दी गई उस अनुमति के खिलाफ जिसमें मेकेदाटु परियोजना के विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार करने की बात कही गई थी, और दूसरी, परियोजना के क्रियान्वयन को रोकने तथा DPR को लौटाने के निर्देश देने की मांग को लेकर थी।
मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया की पीठ ने कहा कि इस स्तर पर केवल DPR तैयार की जा रही है और इसे मंजूरी तभी दी जाएगी जब कावेरी जल नियमन समिति और कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण की राय शामिल कर ली जाएगी। अदालत ने कहा कि जब तक विशेषज्ञ निकायों की प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब तक इस तरह की याचिकाओं पर विचार करना जल्दबाजी होगी।
बता दें कि अदालत ने अगस्त 2023 में भी इसी मामले से जुड़े एक मुद्दे पर कहा था कि न्यायालय इस तरह के तकनीकी विषयों में विशेषज्ञ नहीं है और इन्हें विशेषज्ञ संस्थाओं पर ही छोड़ना चाहिए। अदालत ने दोहराया कि जल प्रबंधन से जुड़े मामलों में निर्णय विशेषज्ञ एजेंसियों द्वारा लिया जाना ही उपयुक्त है।
गौरतलब है कि कावेरी नदी जल विवाद के समाधान के लिए केंद्र सरकार ने इंटर-स्टेट रिवर वाटर डिस्प्यूट्स एक्ट, 1956 की धारा 6A के तहत कावेरी जल प्रबंधन योजना 2018 को अधिसूचित किया था। इसी योजना के तहत कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण का गठन किया गया था ताकि कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण के फैसले को लागू किया जा सके।
तमिलनाडु की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने अदालत में कहा कि प्रस्तावित मेकेदाटु बैलेंसिंग रिजर्वॉयर और ड्रिंकिंग वाटर प्रोजेक्ट तमिलनाडु के किसानों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है क्योंकि यह उस ऊंचाई पर बनाया जा रहा है जहां से नीचे की ओर तमिलनाडु को पानी मिलना है। उन्होंने तर्क दिया कि इस परियोजना से बिल्लिगुंडलु बैराज पर पानी की आपूर्ति पर असर पड़ेगा।
वहीं, कर्नाटक की ओर से वरिष्ठ वकील श्याम दिवान, मोहन कटार्की और महाधिवक्ता शशि किरण शेट्टी ने दलील दी कि तमिलनाडु की याचिका गलत आधार पर दायर की गई है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 2018 के आदेश के अनुसार, कर्नाटक को हर साल 177.25 टीएमसी पानी तमिलनाडु को देना होता है और यदि यह व्यवस्था प्रभावित नहीं होती, तो राज्य को अपने क्षेत्र में इस तरह की परियोजना पर काम करने से नहीं रोका जा सकता।
अदालत ने कहा कि यदि आगे चलकर DPR को केंद्रीय जल आयोग से मंजूरी मिलती है, तो तमिलनाडु को कानून के अनुसार उसे चुनौती देने का पूरा अधिकार होगा। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि अगर कर्नाटक अदालत के आदेशों का पालन नहीं करता, तो उसे अवमानना का सामना करना पड़ सकता है। कुल मिलाकर, सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि फिलहाल मामला विचाराधीन नहीं है और विशेषज्ञ संस्थाओं की प्रक्रिया पूरी होने तक कोई हस्तक्षेप आवश्यक नहीं है।

