भारतीय विदेश नीति की परिपक्वता और रणनीतिक संतुलन का एक और उदाहरण हाल ही में मास्को में देखने को मिला, जहां भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लैवरोव के बीच महत्वपूर्ण बैठक हुई। यह मुलाक़ात ऐसे समय में हुई है जब अगले महीने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आने वाले हैं, जहां 23वाँ वार्षिक भारत-रूस शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। इस बैठक का उद्देश्य न केवल आगामी शिखर सम्मेलन की रूपरेखा तय करना था, बल्कि रक्षा, ऊर्जा, मोबिलिटी और अन्य रणनीतिक क्षेत्रों से जुड़े महत्त्वपूर्ण समझौतों को अंतिम रूप देना भी था।
जयशंकर ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में कहा कि भारत और रूस के बीच संवाद हमेशा खुलापन और विश्वास की भावना के आधार पर होता रहा है— यही कारण है कि साल 2024 में दोनों मंत्रियों की यह छठी मुलाक़ात थी। यह तथ्य स्वयं बताता है कि भले ही वैश्विक शक्ति समीकरण लगातार बदल रहे हों, लेकिन भारत और रूस के कूटनीतिक रिश्तों में स्थिरता, भरोसा और दीर्घकालिक साझेदारी अब भी कायम है।
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इस बैठक की अहमियत इसलिए भी बढ़ गई क्योंकि अमेरिका और पश्चिमी देशों का भारत पर बढ़ता दबाव जारी है, विशेषकर रूस से कच्चे तेल और रक्षा तकनीक की खरीद को लेकर। लेकिन भारत ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि उसकी ऊर्जा और व्यापार नीति किसी बाहरी दबाव से नहीं, बल्कि भारतीय उपभोक्ता के हित और राष्ट्रीय रणनीतिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर तय होती है।
देखा जाये तो रूस के साथ भारत की साझेदारी केवल व्यापार या रक्षा तक सीमित नहीं, बल्कि यह ऐतिहासिक, सामरिक और भावनात्मक रूप से भी गहराई लिए हुए है। बीते दशकों में रूस ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हमेशा समर्थन दिया है— चाहे वह संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता का समर्थन हो या सुरक्षा और परमाणु तकनीक से जुड़ा सहयोग।
भारत और रूस के आगामी शिखर सम्मेलन में कई महत्वपूर्ण समझौतों पर सहमति बनने की संभावना है। रक्षा क्षेत्र में संयुक्त उत्पादन, दीर्घकालिक ऊर्जा आपूर्ति, आर्कटिक सहयोग, अंतरिक्ष अनुसंधान में साझेदारी और युवा व पेशेवर मोबिलिटी से जुड़े नए कार्यक्रमों की औपचारिक घोषणा की उम्मीद है। यह साझेदारी भारत-रूस संबंधों को केवल “विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” तक ही सीमित नहीं रखेगी, बल्कि इसे “नए युग की बहु-ध्रुवीय साझेदारी” का स्वरूप दे सकती है।
वर्तमान वैश्विक संदर्भ में यह बैठक और भी उल्लेखनीय है, क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिम एशिया की अस्थिरता ने पूरी दुनिया की ऊर्जा सुरक्षा, वैश्विक अर्थव्यवस्था और भू-राजनीतिक संतुलन को प्रभावित किया है। इसी संदर्भ में जयशंकर ने कहा कि भारत सभी पक्षों द्वारा शांति और संवाद की पहल का समर्थन करता है, क्योंकि संघर्ष समाप्त होना न सिर्फ युद्धरत देशों के लिए, बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के हित में है।
भारत-रूस संबंधों की अहमियत इस बात से भी समझी जा सकती है कि हाल ही में राष्ट्रपति पुतिन के करीबी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार निकोलाई पत्रुशेव ने दिल्ली में एनएसए अजीत डोभाल से मुलाक़ात की। यह सिर्फ औपचारिक वार्ता नहीं थी, बल्कि रणनीतिक साझेदारी की नई दिशा, एशियाई भू-राजनीतिक तंत्र और डिजिटल सुरक्षा के नए आयामों पर महत्वपूर्ण चर्चा का संकेत भी है।
भारत आज जिस वैश्विक भूमिका में है, उसमें संतुलित कूटनीति, रणनीतिक स्वायत्तता और बहु-आयामी साझेदारी की नीति महत्वपूर्ण हो गई है। चाहे अमेरिका, यूरोप, रूस या मध्य पूर्व— भारत की विदेश नीति किसी ब्लॉक का हिस्सा नहीं, बल्कि ‘भारत प्रथम’ की स्पष्ट रणनीति पर आधारित है।
बहरहाल, मास्को में हुई यह बैठक न केवल आने वाले शिखर सम्मेलन की तैयारी भर नहीं, बल्कि भारत-रूस संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत भी हो सकती है। ऐसे समय में जब दुनिया पश्चिम बनाम पूर्व की ध्रुवीयता में बंटी दिख रही है, भारत की भूमिका सेतु निर्माण की है और रूस के साथ मजबूत होती यह साझेदारी उसी दिशा का संकेत है। भारत की कूटनीति अब प्रतिक्रियाशील नहीं, बल्कि नीतिगत नेतृत्व की भूमिका निभा रही है और यह भारत की नई वैश्विक पहचान का प्रतीक है।

