Thursday, November 20, 2025
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Pakistan ने उठाया चौंकाने वाला कदम, रक्षा बजट को 50 अरब बढ़ाया, समुद्र में Artificial Island बनाने की तैयारी, आखिर चल क्या रहा है?

पाकिस्तान सरकार ने अपनी सुरक्षा और ऊर्जा रणनीति को नया आयाम देते हुए दो बड़े फैसले लिए हैं। एक ओर आर्थिक समन्वय समिति (ECC) ने अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की सुरक्षा, नौसैनिक ठिकानों के उन्नयन और चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) की सुरक्षा को मजबूत बनाने के लिए PKR 50 अरब (लगभग ₹1,576 करोड़) के अतिरिक्त रक्षा बजट को मंज़ूरी दी है। दूसरी ओर, राज्य-स्वामित्व वाली कंपनी पाकिस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड (PPL) ने सिंध तट से 30 किलोमीटर दूर समुद्र में कृत्रिम ड्रिलिंग द्वीप तैयार करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, ताकि ऑफशोर तेल और गैस खोज में तेजी लाई जा सके। हम आपको बता दें कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पाकिस्तान में “विशाल तेल भंडार” होने के दावे के बाद ऊर्जा क्षेत्र में सरकार की अपेक्षाएँ और महत्वाकांक्षाएँ बढ़ी हैं।
देखा जाये तो पाकिस्तान इन दिनों आर्थिक संकट, बढ़ती महंगाई, राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा चुनौतियों से जूझ रहा है। ऐसे समय में रक्षा बजट में अचानक PKR 50 अरब की बढ़ोतरी और साथ-साथ ऑफशोर ऊर्जा खोज को अभूतपूर्व गति देना, इस बात का संकेत है कि इस्लामाबाद अपनी रणनीतिक प्राथमिकताओं को दो दिशा में मोड़ रहा है— सुरक्षा का कठोर सुदृढ़ीकरण और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की आक्रामक खोज। दोनों कदम तत्कालीन आर्थिक दबावों से विपरीत दिशा में जाते दिखते हैं, लेकिन पाकिस्तान की रणनीतिक सोच इससे एक बड़ा संदेश भी देती है।

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हम आपको बता दें कि पाकिस्तान के रक्षा बजट में यह अतिरिक्त राशि पहले से ही घोषित 2,550 अरब रक्षा बजट के ऊपर है। दरअसल पाकिस्तान सीमा सुरक्षा और तस्करी रोकने के लिए अफगानिस्तान–ईरान सीमा पर नई फेंसिंग करना चाहता है साथ ही दक्षिण और उत्तर के स्पेशल सिक्योरिटी डिविज़न (SSD) को बड़ा आवंटन करना चाहता है, जो CPEC में विदेशी निवेश और चीनी हितों की सुरक्षा के लिए बनाई गई हैं। इसके अलावा पाकिस्तान नौसैनिक ठिकानों को अपग्रेड करना चाह रहा है जो अरब सागर में रणनीतिक गतिविधियों को नई दिशा दे सकता है।
CPEC की सुरक्षा इस पूरे ढांचे का केंद्रीय तत्व है। चीन पाकिस्तान में अब तक 25 अरब डॉलर से अधिक का निवेश कर चुका है। ऐसे में यह अतिरिक्त बजट संदेश देता है कि पाकिस्तान CPEC को किसी भी कीमत पर सुरक्षित रखना चाहता है— भले ही उसके लिए आर्थिक बोझ बढ़ रहा हो।
इसके अलावा, यह निर्णय ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान की विदेशी मुद्रा भंडार सीमित है, IMF के नए कार्यक्रम के लिए कठोर शर्तें लागू हैं, महंगाई 20% से ऊपर है, ऊर्जा सब्सिडी लगभग समाप्त कर दी गई है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या पाकिस्तान के पास इस तरह के भारी सुरक्षा व्यय की क्षमता है? पाकिस्तान सरकार का तर्क है कि यह “नियमित बजट से अलग तकनीकी अनुदान” है, जो विशेष परियोजनाओं के लिए प्रयोग होता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान की आर्थिक संरचना ऐसे विशेष व्ययों का बोझ लंबे समय तक नहीं झेल सकती। फिर भी इस्लामाबाद सैन्य आवश्यकताओं पर समझौता नहीं करना चाहता।
दूसरी ओर, पाकिस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड जिस कृत्रिम द्वीप का निर्माण कर रहा है, वह पाकिस्तान की ऊर्जा खोज में एक बड़ा कदम है। लगभग 25 कुएँ खोदे जाने की योजना है, इसमें निवेश का अनुमान 750 मिलियन से 1 अरब डॉलर तक है। इसके तहत 23 नए ऑफशोर ब्लॉकों का आवंटन होना है। वैसे तो अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा “massive oil reserves” के दावे ने पाकिस्तान में नई उम्मीदें जगा दी हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि पाकिस्तान ने 1947 से अब तक समुद्र में केवल 18 कुएँ खोदे हैं, और उनमें से अधिकतर असफल रहे। 2019 की Kekra-1 ड्रिलिंग में असफलता के बाद ExxonMobil ने बाज़ार छोड़ दिया था। आज जब पाकिस्तान पुनः आक्रामक ऑफशोर अभियान चला रहा है, तो सवाल यह है कि क्या यह आर्थिक ठोस आधार पर निर्णय है या राजनीतिक उम्मीदों पर आधारित एक जोखिमपूर्ण दांव है? कृत्रिम द्वीप बनाना अवश्य ही तकनीकी दृष्टि से नया कदम है, लेकिन इसकी सफलता की कोई गारंटी नहीं है।
देखा जाये तो ट्रंप द्वारा “तेल सहयोग” का ऐलान पाकिस्तान के लिए बड़ा राजनैतिक संकेत है। यदि अमेरिकी कंपनियाँ पाकिस्तान के ऑफशोर अभियान का हिस्सा बनती हैं, तो चीन के साथ पाकिस्तान की ऊर्जा सुरक्षा साझेदारी प्रभावित हो सकती है, अमेरिका–चीन प्रतिस्पर्धा में पाकिस्तान नई स्थिति में आ सकता है, अरब सागर में रणनीतिक सक्रियता के मायने बदल सकते हैं। यह पाकिस्तान की विदेश नीति में संभावित बदलाव की तरफ संकेत करता है।
उधर, भारत की दृष्टि से इस पूरे मामले को देखें तो भारत का रक्षा बजट पाकिस्तान की तुलना में कहीं बड़ा है, लेकिन पाकिस्तान की नई रणनीतिक प्राथमिकताएँ भारत के लिए कुछ संकेत देती हैं। जैसे- अफगान सीमा पर फेंसिंग और SSD की मजबूती, नौसैनिक बेस अपग्रेड, अरब सागर में ऑफशोर परियोजनाएँ, अमेरिका और चीन दोनों की ऊर्जा में भागीदारी। यह सब मिलकर पाकिस्तान की सामरिक सोच में दीर्घकालिक परिवर्तन की ओर इशारा करते हैं, जिसका क्षेत्रीय सुरक्षा ढांचे पर प्रभाव पड़ सकता है।
बहरहाल, पाकिस्तान एक ओर आर्थिक संकट से जूझ रहा है, दूसरी ओर सुरक्षा और ऊर्जा दोनों मोर्चों पर आक्रामक नीति अपना रहा है। यह दोहरी रणनीति जोखिमपूर्ण भी है और राजनीतिक रूप से साहसिक भी। यदि ऑफशोर खोज सफल होती है, तो यह पाकिस्तान को आर्थिक राहत दे सकती है। लेकिन यदि असफल होती है, तो मौजूदा वित्तीय संकट और गहरा सकता है। वहीं, सुरक्षा व्यय में तीव्र वृद्धि पाकिस्तान की आर्थिक सुधार क्षमता को सीमित कर सकती है। इन दोनों फैसलों से स्पष्ट है कि पाकिस्तान अपने भविष्य को ऊर्जा संसाधनों और रणनीतिक सुरक्षा की दो पटरी पर आगे बढ़ाना चाहता है। यह दिशा कितनी स्थिरता लाएगी और कितना जोखिम, यह आने वाले वर्षों में स्पष्ट होगा।
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