Friday, December 26, 2025
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भारत आपका नौकर नहीं, कोई साइन नहीं होगा…दोस्त रूस के लिए अमेरिका-यूरोप हिलाया

अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और बाकी यूरोपियन देशों ने एक ऐसा प्रस्ताव तैयार किया है जिसे लेकर पूरी दुनिया में हलचल मच गई हैयह देशों का समूह अब हर एक देश के प्रेसिडेंट और प्राइम मिनिस्टर से इस प्रस्ताव पर दस्तखत करवाने की कोशिश कर रहा है ताकि एक बड़े नेता को रोका जा सकेअब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कौन सा नेता है जिसे रोकने के लिए आधी दुनिया इतनी बेचैन है? तो नाम है व्लादमीर पुतिन भारत का अच्छा मित्र और जब भी बात पुतिन की हो या रूस की हो तो दुनिया की निगाहें सीधे भारत की ओड़ मुड़ जाती है। भारत का एक फैसला रूस का भविष्य बदल भी सकता है और रूस को मुश्किल में भी डाल सकता है। इसीलिए इन देशों को सबसे ज्यादा जरूरत भारत के सिग्नेचर की है और वह भी हर हाल में ताकि पुतिन को चारों तरफ से घेरा जा सके। दरअसल, पश्चिमी देशों को डर है कि पुतिन जब भी किसी देश की यात्रा करते हैं तो वहां एक ना एक बड़ी डिफेंस डील पक्का करके ही निकलते हैं। जिससे रूस की हथियार बिक्री आज भी मजबूत है और यह बात अमेरिका और यूरोप को बिल्कुल रास नहीं आती। इसीलिए अब कोशिश हो रही है कि दुनिया के ज्यादातर देश इस प्रस्ताव पर दस्तखत कर दें ताकि पुतिन किसी भी देश में कदम ना रख सके और उनके कूटनीतिक रिश्ते कमजोर पड़ जाए।

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पूरा मामला तभी और गर्म हो गया जब न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में साफ लिखा कि यह प्रस्ताव सीधे तौर पर पुतिन की विदेश यात्राओं पर प्रभावी प्रतिबंध लगाने से जुड़ा है। यानी ऐसा प्रावधान बनाया जा रहा है कि पुतिन किसी भी देश की यात्रा ना कर सके और ना ही उन देशों के साथ कोई नई डील कर सके। पश्चिमी देशों की सबसे बड़ी चिंता यही है कि पुतिन हर दौरे पर अपने साथ एक नई सैन्य साझेदारी पक्की करके लौटते हैं जिससे रूस की अर्थव्यवस्था और डिफेंस सेक्टर दोनों को लगातार ताकत मिलती रहती है। साल 2023 में इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने यूक्रेन युद्ध के दौरान कथित अपराधों को लेकर पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। उसी वक्त कई देशों ने पुतिन की विदेश यात्राओं पर रोक लगा दी थी। लेकिन चीन, भारत, ईरान और खाड़ी देशों ने इस आदेश को लागू नहीं किया क्योंकि यह सभी देश आईसीसी के सदस्य ही नहीं है। नतीजा यह हुआ कि पुतिन बेझिझक इन देशों की यात्रा करते रहे और उनका आर्थिक और सैन्य सहयोग पहले से भी मजबूत होता गया।

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अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया की इतनी बेचैनी बढ़ी हुई है और वे चाहते हैं कि भारत किसी भी तरह इस प्रस्ताव पर दस्तखत कर दे ताकि पुतिन की यात्रा रोकी जा सके। लेकिन भारत के लिए मामला इतना आसान नहीं है क्योंकि भारत रूस को केवल एक सैन्य साझेदार नहीं बल्कि दशकों पुराना रणनीतिक मित्र मानता है। भारत ने इस पूरे मसले पर अपना रुख बिल्कुल साफ कर दिया है। भारत ने दो टूक कहा है कि पुतिन 4 दिसंबर को भारत आएंगे और उनकी मेजबानी में भारत किसी भी तरह की कमी नहीं छोड़ेगा। चाहे सुरक्षा की बात हो या कूटनीतिक व्यवस्थाओं की। भारत ने साफ कर दिया है कि किसी भी बाहरी एजेंसी को पुतिन की यात्रा में दखल देने की इजाजत नहीं दी जाएगी।

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भारत ने दुनिया को यह संदेश दे दिया है कि उसके फैसले किसी तीसरे देश के दबाव में नहीं बदलते। अब यह बात भी समझ लीजिए कि भारत ऐसे किसी प्रस्ताव पर अपने दस्तखत क्यों नहीं करेगा। क्योंकि भारत जानता है कि यह प्रस्ताव असल में रूस को अलग-थलग करने की कोशिश नहीं बल्कि भारत और रूस की दोस्ती को कमजोर करने की रणनीति है। पश्चिमी देशों को डर है कि अगर भारत और रूस ने मिलकर कोई बड़ा हथियार या डिफेंस सिस्टम बना दी तो उसका असर सीधे यूरोप और अमेरिका की बाजारों पर पड़ेगा।

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