साल 2025 भारतीय खेलों के लिए खास तौर पर युवा महिला खिलाड़ियों के नाम रहा है। मैदान चाहे तीरंदाजी का हो, बैडमिंटन का या कुश्ती का नई पीढ़ी ने सिर्फ हिस्सा नहीं लिया, बल्कि खुद को साबित भी किया है। इसी कड़ी में तीरंदाज अंकिता भकत की कहानी खास बनकर सामने आती है, जो संघर्ष, धैर्य और तकनीकी बदलाव की मिसाल बन चुकी हैं।
बता दें कि कोलकाता की रहने वाली अंकिता भकत ने इस साल अपनी मेहनत से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर से पहचान बनाई है। फरवरी में दक्षिण कोरिया के चुंगचियोंगबुक-दो स्थित किम ह्युंग टाक आर्चरी ट्रेनिंग सेंटर में अभ्यास के दौरान, जहां तापमान शून्य से नीचे चला जाता था, अंकिता बर्फ में खड़े होकर निशाना साधती रहीं। वहीं उनके कोच किम ह्युंग टाक उनकी तकनीक को करीब से परखते रहे। पेरिस ओलंपिक 2024 में चौथे स्थान पर रहने के कुछ महीनों बाद ही उन्होंने खुद को और बेहतर बनाने का फैसला लिया।
गौरतलब है कि अंकिता ने हाल ही में टोक्यो ओलंपिक पदक विजेता कांग चेयॉन्ग और जांग मिन ही को हराया, वहीं पेरिस ओलंपिक की सिल्वर मेडलिस्ट सु-ह्योन पर भी जीत दर्ज की। उनका अगला लक्ष्य 2026 एशियन गेम्स में पदक जीतना है। अंकिता बताती हैं कि ओलंपिक के बाद उन्हें कई रातें नींद नहीं आईं, लेकिन उसी बेचैनी ने उन्हें आगे बढ़ने की ताकत दी।
मौजूद जानकारी के अनुसार, अंकिता ने बहुत कम उम्र में कोलकाता के सर्कस ग्राउंड से तीरंदाजी शुरू की थी। लकड़ी के धनुष से शुरुआत कर उन्होंने टाटा आर्चरी अकादमी, जमशेदपुर तक का सफर तय किया। 2016 में पहली बार भारतीय टीम में जगह मिली और तब से अब तक वह कई अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुकी हैं। 2023 एशियन गेम्स में टीम ब्रॉन्ज भी उनके खाते में है।
पेरिस ओलंपिक में हालांकि कुछ निर्णायक तीर निशाने से चूक गए थे, जिस पर सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हुई। इस पर अंकिता का साफ कहना है कि हर खिलाड़ी से कभी-कभी गलती होती है और वह उन पलों को सीख की तरह लेती हैं। कोच पूर्णिमा महतो के अनुसार, नई तकनीक में ढलने में समय लगता है, लेकिन इससे अंकिता का खेल और मजबूत होगा।
अंकिता का फोकस अब 2026 एशियन गेम्स पर है, जहां वह अपने करियर का सर्वश्रेष्ठ औसत स्कोर पार करना चाहती हैं। उनका मानना है कि अगर तकनीक पर पूरी पकड़ बन गई, तो वह बड़े मंच पर देश के लिए बड़ा पदक जीत सकती हैं।

