Monday, December 29, 2025
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Assam से घुसपैठियों पर Amit Shah का बड़ा बयान: कांग्रेस ने सालों तक आंखें मूंदी, अब हो रही कार्रवाई

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने असम के नागांव जिले में बटाद्रवा सांस्कृतिक परियोजना का उद्घाटन करते हुए भारत रत्न गोपीनाथ बोरदोलोई की विरासत को याद किया और कहा कि उनके प्रयासों के बिना असम और पूरा पूर्वोत्तर भारत का हिस्सा नहीं रह पाता। महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव की जन्मभूमि, पुनर्निर्मित बटाद्रवा थान में बोलते हुए शाह ने कहा कि आज मैं भारत रत्न गोपीनाथ जी को याद करना चाहता हूं। अगर वे न होते, तो असम और पूरा पूर्वोत्तर आज भारत का हिस्सा न होता। गोपीनाथ जी ही थे जिन्होंने जवाहरलाल नेहरू को असम को भारत में रखने के लिए बाध्य किया।
 

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बातद्रवा थान के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए, शाह ने इसे असमिया समाज में एकता और सद्भाव का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि यह केवल एक पूजा स्थल नहीं है, बल्कि असमिया सद्भाव का जीवंत प्रतीक है। सभी समुदाय यहां ‘नव-वैष्णव धर्म’ को आगे बढ़ाने के लिए आते हैं। उन्होंने श्रीमंत शंकरदेव द्वारा प्रचारित समावेशी वैष्णव परंपरा का जिक्र किया। असम सरकार द्वारा शुरू की गई बटाद्रवा सांस्कृतिक परियोजना का उद्देश्य इस पवित्र स्थल को विश्व स्तरीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन स्थल में परिवर्तित करना है। अतिक्रमण मुक्त कराई गई 162 बीघा भूमि पर फैली इस परियोजना को लगभग 217 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से विकसित किया गया है।
इसके साथ ही अमित शाह जोर देते हुए कहा कि भाजपा पूरे देश से सभी घुसपैठियों को हटाने का संकल्प लेती है…क्या शंकरदेव की इस जगह पर बांग्लादेशी घुसपैठियों का होना उचित था? मैं हिमंता बिस्वा शर्मा को घुसपैठियों को यहाँ से हटाने और नामघर स्थल को पुनः स्थापित करने के लिए बधाई देता हूँ। एक लाख बीघा से अधिक भूमि घुसपैठियों से मुक्त कराई गई है। कांग्रेस ने इतने वर्षों तक शासन किया, लेकिन उसने असम आंदोलन के लिए प्राणों की आहुति देने वालों के लिए कुछ नहीं किया। 
 

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असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि यह पहल असम की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और प्रदर्शित करने में सहायक होगी, साथ ही राज्य के पूजनीय वैष्णव संत, समाज सुधारक और सांस्कृतिक प्रतीक श्रीमंत शंकरदेव के आदर्शों को बढ़ावा देगी। यह परियोजना पारंपरिक असमिया सौंदर्यशास्त्र को आधुनिक बुनियादी ढांचे के साथ मिलाकर एक व्यापक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परिसर का निर्माण करती है। इस परियोजना की प्रमुख विशेषताओं में विश्व का सबसे ऊंचा गुरु आसन, सत्तरिया संस्कृति से प्रेरित अतिथि गृह, पारंपरिक झांझ के आकार में निर्मित कला केंद्र, खोल (ढोल) के मॉडल पर आधारित अनुसंधान केंद्र, नाव के आकार का कौशल विकास केंद्र और पारंपरिक असमिया जापी की तर्ज पर निर्मित रंगमंच शामिल हैं।
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