भारत-पाक सीमा पर इस समय एक नई किस्म की तकनीकी जंग चल रही है। यह एक ऐसी लड़ाई है जिसमें बंदूकों की जगह सिग्नल और सॉफ्टवेयर हथियार बने हुए हैं। हम आपको बता दें कि पंजाब की 532 किलोमीटर लंबी सीमा पर सुरक्षा एजेंसियों ने हाल के हफ्तों में यह असामान्य रुझान देखा कि पाकिस्तान से आने वाले कई ड्रोन भारतीय वायुक्षेत्र में घुसने के बाद अचानक लौट जा रहे हैं। यह सिर्फ एक तकनीकी “गड़बड़ी” नहीं, बल्कि पाकिस्तान की नई रणनीति का हिस्सा है यानि एक “फेल-सेफ” सिस्टम जो पकड़े जाने से पहले ड्रोन को वापस भेज देता है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान की आईएसआई समर्थित तस्करी नेटवर्क लंबे समय से ड्रोन के ज़रिए हथियार, ग्रेनेड और नशे की खेपें भारत में भेजता रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद कुछ समय तक यह गतिविधि थमी, पर अब फिर तेज़ी से लौट आई है। फर्क बस इतना है कि अब यह जंग और अधिक चतुर हो गई है। पंजाब पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “अब पाकिस्तान से आने वाले अधिकांश ड्रोन ऐसे प्रोग्राम किए गए हैं कि जब हमारे एंटी-ड्रोन सिस्टम (ADS) उनके सिग्नल को जाम करते हैं, तो वे ‘होम-बेस’ मोड में लौट जाते हैं।” यानी वह गिराए जाने से पहले ही बिना माल गिराये या अपनी पहचान छोड़े अपने लांच-प्वाइंट की दिशा में वापस उड़ जाते हैं।
यह रणनीति पाकिस्तान के लिए दोहरा फायदा देती है— पहला यह कि उसके ड्रोन भारत की पकड़ में सबूत के तौर पर नहीं आते; दूसरा यह कि भारतीय सुरक्षा तंत्र को यह पता नहीं चलता कि ड्रोन की डिलीवरी असल में कहां से नियंत्रित हो रही थी। हालांकि भारत की ओर से तैनात तीन आधुनिक एंटी-ड्रोन सिस्टम अब तक इस “तकनीकी चाल” का मज़बूत जवाब दे रहे हैं। पंजाब पुलिस का दावा है कि रोज़ाना 8 से 15 ड्रोन तक डिटेक्ट किए जा रहे हैं और अधिकांश कोशिशें नाकाम की जा रही हैं।
भले ही पाकिस्तानी ड्रोन वापस लौट रहे हों, पर यह संकेत साफ़ है कि सीमा पार से नशे और हथियारों की खेपें भेजने का सिलसिला थमा नहीं है, बस उसका रूप और तकनीक बदल गई है। यह “कैट एंड माउस गेम” अब सॉफ्टवेयर अपडेट और सिग्नल जामिंग की होड़ बन चुकी है। हम आपको बता दें कि इस बदलते खतरे से निपटने के लिए पंजाब सरकार ने हाल ही में ‘युद्ध नशे के विरुद्ध’ अभियान के तहत तीन वाहन-आधारित एंटी-ड्रोन सिस्टम तैनात किए हैं। योजना के अनुसार, नौ ऐसे सिस्टम तैनात किए जाएंगे जिन पर करीब ₹51 करोड़ खर्च होगा। इन ADS इकाइयों ने अब तक उल्लेखनीय सफलता दिखाई है। तरनतारण पुलिस ने सिर्फ़ भिखीविंड क्षेत्र में 12 एफआईआर दर्ज की हैं और कई आरोपियों को पकड़ा है। बरामदगी में चार पिस्तौल, 75 गोलियां, पाँच मैगज़ीन, तीन किलो हेरोइन, करीब 500 ग्राम “आइस” ड्रग और आधा किलो अफ़ीम शामिल हैं। पहले जहाँ पुलिस सिर्फ़ आवाज़ के सहारे ड्रोन ट्रैक करती थी, अब उन्हें ड्रोन की सटीक लोकेशन, ऊँचाई और स्पीड तक का डेटा रियल-टाइम में मिलता है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, भिखीविंड के डीएसपी प्रीतिंदर सिंह ने बताया कि, “कई बार ड्रोन इतनी ऊँचाई या दूरी पर होते हैं कि जामिंग प्रभावी नहीं हो पाती। लेकिन डिटेक्शन सिस्टम की मदद से हमने कई बार खेपें बरामद की हैं और गिरोहों को पकड़ा है।” यानी, भले ही हर ड्रोन गिराया नहीं जा सकता, लेकिन अब हर उड़ान पर भारतीय निगाहें मौजूद हैं। देखा जाये तो यह स्थिति एक गहरी चुनौती की ओर संकेत करती है कि भारत की सीमा सुरक्षा को अब सिर्फ़ मानव गश्त से नहीं, बल्कि तकनीकी एकीकरण से और भी मज़बूत बनाना होगा। ड्रोन तकनीक तेजी से विकसित हो रही है; जिस तरह पाकिस्तान के ड्रोन अब “सेल्फ-रिटर्न” मोड से लैस हैं, भविष्य में वह स्वचालित लैंडिंग, साइलेंट प्रोपेलर और विजुअल स्टेल्थ टेक्नोलॉजी से लैस हो सकते हैं। इसीलिए, भारतीय सुरक्षा बलों के लिए यह “डिजिटल सीमाओं की रक्षा” का दौर है, जिसमें तकनीकी क्षमता ही नई चौकसी का प्रतीक होगी।
देखा जाये तो संदेश स्पष्ट है कि सीमा पर अब केवल बाड़ नहीं, बल्कि बुद्धिमत्ता की बाड़ भी चाहिए। पाकिस्तान की आईएसआई और उसके तस्करी नेटवर्क के लिए यह नई चुनौती है कि भारत अब हर सिग्नल, हर उड़ान, और हर वापसी को रिकॉर्ड कर रहा है। इस तकनीकी युद्ध में, भारत ने भले ड्रोन को लौटने दिया हो, लेकिन उसकी वापसी ही इस बात का संकेत है कि सीमा के उस पार अब डर बढ़ रहा है क्योंकि हर उड़ान अब देखी जा रही है, हर चाल पकड़ी जा रही है।