भारतीय विदेश मंत्रालय की साप्ताहिक प्रेस वार्ता इस बार कई महत्वपूर्ण कूटनीतिक संकेतों से भरी रही। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने पुष्टि की कि अमेरिका ने भारत को ईरान के चाबहार बंदरगाह पर लागू अपने प्रतिबंधों से छह महीने की छूट प्रदान की है। देखा जाये तो यह निर्णय केवल एक ‘छूट’ नहीं, बल्कि भारत की सतत कूटनीतिक सफलता और रणनीतिक संतुलन साधने की क्षमता का प्रमाण है।
जायसवाल ने कहा, “हमें चाबहार पोर्ट पर लागू अमेरिकी प्रतिबंधों से छह माह की छूट दी गई है।” यह घोषणा ऐसे समय आई है जब भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता अंतिम चरण में है और दोनों देशों के बीच एक व्यापक व्यापार समझौते पर चर्चा जारी है। हम आपको याद दिला दें कि भारत ने पिछले वर्ष ही ईरान के साथ दस वर्ष का अनुबंध किया था, जिसके तहत इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) ने इस बंदरगाह में 370 मिलियन डॉलर निवेश करने का वादा किया था।
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देखा जाये तो चाबहार पोर्ट केवल एक व्यापारिक परियोजना नहीं, बल्कि भारत की “कनेक्टिविटी डिप्लोमेसी” का अहम स्तंभ है। यह अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक भारत की निर्बाध पहुंच सुनिश्चित करता है, पाकिस्तान के भूभाग को दरकिनार करते हुए। अमेरिकी छूट का अर्थ है कि भारत को अब इन परियोजनाओं पर बिना प्रतिबंधित लेन-देन के आगे बढ़ने की अनुमति मिल गई है, जिससे उसके ईरान-केंद्रित क्षेत्रीय हित सुरक्षित रहेंगे।
यह भी ध्यान देने योग्य है कि ट्रम्प प्रशासन के दौरान 2018 में भी ऐसी ही छूट दी गई थी। अमेरिका का यह कदम भारत की बढ़ती स्ट्रेटेजिक ऑटोनॉमी को tacit acceptance देता है। यह संकेत है कि अमेरिका भारत की क्षेत्रीय प्राथमिकताओं को समझने लगा है।
इसके अलावा, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह भी कहा कि भारत अमेरिकी प्रतिबंधों के तहत रूसी तेल कंपनियों पर नए प्रतिबंधों के प्रभाव का विश्लेषण कर रहा है। जायसवाल ने स्पष्ट किया, “हमारे निर्णय वैश्विक ऊर्जा बाज़ार की बदलती गतिशीलताओं पर आधारित हैं। हमारी प्राथमिकता 1.4 अरब लोगों के लिए सस्ती और स्थिर ऊर्जा सुनिश्चित करना है।” देखा जाये तो यह वक्तव्य भारत की “बहुध्रुवीय ऊर्जा नीति” की निरंतरता दर्शाता है जहाँ न तो अमेरिका, न रूस, न ईरान, कोई भी एकमात्र धुरी नहीं है। भारत ऊर्जा सुरक्षा को अपने राष्ट्रीय हितों के दायरे में रखकर ही निर्णय ले रहा है, न कि किसी ब्लॉक की पसंद-नापसंद के आधार पर।
विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान पर भी तीखी प्रतिक्रिया दी। जायसवाल ने कहा, “पाकिस्तान को यह स्वीकार करना चाहिए कि अफगानिस्तान अपनी संप्रभुता का स्वतंत्र रूप से प्रयोग कर रहा है। पाकिस्तान यह सोचता है कि उसे सीमा पार आतंकवाद करने का विशेषाधिकार प्राप्त है— यह उसके पड़ोसियों के लिए अस्वीकार्य है।” देखा जाये तो भारत का यह बयान न केवल कूटनीतिक है, बल्कि सुरक्षा नीति के पुनर्परिभाषण का संकेत भी देता है। अफगानिस्तान के साथ भारत का सहयोग अब केवल ‘विकास सहायता’ तक सीमित नहीं है; जल संसाधन, हाइड्रो-इलेक्ट्रिक परियोजनाएँ (जैसे सलमा बाँध) और क्षेत्रीय स्थिरता भारत-अफगान रिश्तों के नए आयाम बन रहे हैं।
इसके अलावा, जायसवाल ने बताया कि कुछ भारतीय कंपनियों को चीन से रेयर अर्थ मैग्नेट्स आयात करने के लाइसेंस मिले हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह देखा जा रहा है कि अमेरिका-चीन वार्ता का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा। देखा जाये तो यह संकेत है कि भारत रणनीतिक आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता बनाए रखना चाहता है।
वहीं प्रवासन मुद्दे पर विदेश मंत्रालय ने जानकारी दी कि इस वर्ष अब तक 2790 भारतीय नागरिकों को अमेरिका से और लगभग 100 को ब्रिटेन से देश वापस भेजा गया है। जायसवाल ने स्पष्ट किया कि सभी मामलों में नागरिकता की पुष्टि के बाद ही उन्हें भारत लाया गया।
इसके अलावा, ओआईसी सचिवालय की टिप्पणियों को “निराधार और भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप” बताकर भारत ने उन्हें खारिज कर दिया। वहीं जापान की नई प्रधानमंत्री से प्रधानमंत्री मोदी की वार्ता को जायसवाल ने “बहुआयामी साझेदारी” की दिशा में एक सकारात्मक पहल बताया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि क्वॉड शिखर बैठक चारों साझेदार देशों के परामर्श से तय की जाती है। यह दर्शाता है कि भारत इस मंच को ‘स्वतंत्र, समान साझेदारी’ के रूप में देखता है, किसी सैन्य गठबंधन की तरह नहीं।
देखा जाये तो चाबहार छूट से लेकर रूस-ईरान-चीन और क्वॉड तक, भारत ने अपनी बहुस्तरीय कूटनीतिक संतुलन कला का प्रदर्शन किया है। अमेरिकी छूट भारत के बढ़ते प्रभाव का प्रमाण है, पर यह राहत अस्थायी है। चुनौती यह रहेगी कि अगले छह महीनों में भारत चाबहार को व्यवहारिक लाभ में कैसे बदलता है। ऊर्जा, व्यापार, और रणनीति, तीनों मोर्चों पर यह समय भारत के लिए परीक्षा की घड़ी है।

