Friday, December 19, 2025
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Chenab River Water को लेकर Pakistan ने किया जल-विलाप, India का सख्त स्टैंड- पानी बहेगा लेकिन हमारी शर्तों पर

सिंधु जल संधि के निलंबन के बाद पाकिस्तान एक बार फिर बौखलाया हुआ नजर आ रहा है। इस बार उसका रोना चेनाब नदी के जलप्रवाह को लेकर है। पाकिस्तान ने दावा किया है कि भारत द्वारा चेनाब के प्रवाह में अचानक बदलाव किया जा रहा है, जिससे उसकी कृषि, खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। हम आपको बता दें कि पाकिस्तान के सिंधु जल आयुक्त ने इस संबंध में भारत को पत्र लिखकर स्पष्टीकरण मांगा है। इस्लामाबाद के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ताहिर हुसैन अंद्राबी ने बयान जारी कर कहा कि चेनाब नदी में जलप्रवाह में आई असामान्य कमी ऐसे समय में हो रही है, जब पाकिस्तान का कृषि चक्र निर्णायक दौर में है। उन्होंने कहा कि भारत किसी भी प्रकार के एकतरफा जल प्रबंधन से बचे और सिंधु जल संधि के प्रावधानों का पालन करे।
हालांकि इस मामले में भारत की ओर से रुख बिल्कुल स्पष्ट है। अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में दो टूक कहा था कि “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” भारत का कहना है कि जब तक सीमा पार आतंकवाद जारी रहेगा, तब तक पाकिस्तान के साथ न तो बातचीत संभव है और न ही पुराने समझौतों को उसी भावना से निभाया जा सकता है।

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इस बीच, भारत जम्मू-कश्मीर में चेनाब नदी पर सावलकोट जलविद्युत परियोजना समेत कई योजनाओं को तेजी से आगे बढ़ा रहा है। 1,856 मेगावाट क्षमता वाली यह परियोजना पर्यावरणीय स्वीकृति भी प्राप्त कर चुकी है। भारत का तर्क है कि सिंधु जल संधि के तहत उसे पश्चिमी नदियों यानि सिंधु, झेलम और चेनाब पर गैर-उपभोगात्मक उपयोग, विशेषकर जलविद्युत उत्पादन का पूरा अधिकार है। दशकों तक इन नदियों का पानी लगभग बिना उपयोग के पाकिस्तान की ओर बहता रहा, जबकि भारत अपनी वैध क्षमता का एक छोटा हिस्सा ही इस्तेमाल कर सका।
देखा जाये तो पानी अब दबाव का हथियार है और पाकिस्तान घबराया हुआ है। पाकिस्तान का यह विलाप दरअसल डर का शोर है। दशकों तक जिस सिंधु जल संधि को वह भारत के खिलाफ ढाल बनाकर इस्तेमाल करता रहा, आज उसी के निलंबन ने इस्लामाबाद की नींद उड़ा दी है। चेनाब के जलप्रवाह में अचानक बदलाव का आरोप कोई तकनीकी चिंता नहीं, बल्कि एक रणनीतिक घबराहट का संकेत है। 1960 की सिंधु जल संधि भारत की उदारता का स्मारक थी और उसकी रणनीतिक भूल भी। तीन पश्चिमी नदियाँ पाकिस्तान को सौंप दी गईं थीं जबकि भारत अपने ही भूभाग से बहने वाले पानी को लगभग देखता भर रहा। बदले में क्या मिला? आतंकवाद, घुसपैठ और कश्मीर में लहूलुहान होती जमीन।
अब हालात बदले हैं। पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल संधि का निलंबन स्पष्ट संदेश है कि रणनीतिक सहनशीलता की सीमा खत्म हो चुकी है। साथ ही सावलकोट जैसी परियोजनाएँ पाकिस्तान को इसलिए चुभ रही हैं क्योंकि वे भारत की जल-रणनीति का प्रतीक हैं। जम्मू-कश्मीर में कृषि को पानी मिलेगा, ऊर्जा उत्पादन बढ़ेगा और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी। यह विकास नहीं, बल्कि सामरिक सशक्तिकरण है। सामरिक दृष्टि से देखें तो पानी अब भारत के लिए केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं रहा, बल्कि दबाव का वैध उपकरण बन चुका है। बिना एक बूंद अवैध रूप से रोके, भारत केवल अपने अधिकारों का प्रयोग कर रहा है और यही पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा झटका है। उसकी खेती, उसकी राजनीति और उसकी स्थिरता, सब कुछ सिंधु प्रणाली पर निर्भर है।
पाकिस्तान की समस्या यह है कि वह हर अंतरराष्ट्रीय समझौते को स्थायी सुरक्षा बीमा मान लेता है, चाहे उसका व्यवहार कितना ही आक्रामक क्यों न हो। लेकिन नई दिल्ली अब इस भ्रम को तोड़ रही है। संधियाँ स्थिर नहीं होतीं; वे व्यवहार से जीवित रहती हैं। और जब व्यवहार आतंक से भरा हो, तो संधियाँ दम तोड़ देती हैं। यह समय पाकिस्तान के लिए आत्ममंथन का है। आतंक के कारखाने बंद करना, वांछित आतंकियों को सौंपना और वास्तविक शांति की पहल करना, यही एकमात्र रास्ता है। वरना भारत की जल-रणनीति और अधिक आक्रामक, अधिक संगठित और अधिक प्रभावी होती जाएगी। संदेश साफ है कि भारत अब इतिहास की गलतियों को ढोने के मूड में नहीं है। पानी बहेगा लेकिन शर्तों पर और शर्तें अब नई दिल्ली तय करेगी।
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