Wednesday, July 16, 2025
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China’s Annexation Around the world Part 4 | लोन देकर कैसे चीन किसी देश को अपने जाल में फंसाता है?

कहते हैं कि किसी को अपना गुलाम बनाना है तो उसके सिर्फ दो ही तरीके हैं। या तो उसे जंग के मैदान में मात तो या फिर उसे इतना कर्ज दो कि वो कभी लौटा ही न सके। चीन इसी नीति पर काम कर रहा है जिसे दुनिया विस्तारवाद कहती है। खास बात ये है कि चीन की इस चाल से लगभग पूरी दुनिया वाकिफ है लेकिन फिर भी पाकिस्तान या श्रीलंका जैसे कई देश ऐसे हैं जो या तो चीन के आर्थिक गुलाम बन गए या फिर बनने की तैयारी में है। चीन दूसरे देशों में कब्जा जमाने के लिए पहले अपनी कंपनियों को भेजता है। फिर उस देश को कर्ज देता है और फिर धीरे धीरे उसे अपने वश में कर लेता है। इसे आप श्रीलंका के उदाहरण से समझ सकते हैं। इसके साथ ही साथ चीन बांग्लादेश को भी अपने कर्ज के जाल में फंसा रहा है। चीन का सदाबहार मित्र पाकिस्तान भी इससे अछूता नहीं है। कुछ अफ्रीकी देशों में भी चीन की यही प्रवृत्ति देखने को मिली है। इसलिए कई अफ्रीकी देश भी चीन की महत्वकांक्षी परियोजना का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में चीन की छवि एक साम्राज्यवादी देश की तरह उभर रही है। जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चीन के लिए घातक सिद्ध होगी और चीन अलग थलग पड़ जाएगा। 

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चीन का सस्ता कर्ज जाल 

चीन का पुराना फार्मूला है इन्वेस्टमेंट और व्यापार के लुभावने वादे। श्रीलंका हो या मालदीव पाकिस्तान हो या नेपाल, इन देशों में खूब इनवेस्ट करता है और तरक्की के सपने बेचता है और फिर इसी कर्ज की राह अपने सामरिक हित साधता है। आर्थिक व्यवस्था के बुरे दौर से उबरने में नाकाम साबित होने वाले देश इसके लिए दूसरों से मदद मांगते हैं। ये मदद उन्हें इंटरनेशनल मॉनिट्री फंड और विश्व बैंक जैसे वैश्विक संस्थानों और अन्य देशों की तरफ से मिलती है। आर्थित संकट से जूझ रहे देश को उसकी इकोनॉमी को उबारने के लिए कर्ज दिया जाता है। लेकिन आईएमएफ, विश्व बैंक और ज्यादातर देश इस कर्ज के साथ ही कई कड़ी शर्तें लगाते हैं। इन शर्तों का उद्देश्य होता है कि कर्ज लेने वाले देश की सरकार इस धन का उपयोग अपने यहां लोक-लुभाने फायदे देने में न करे। बल्कि इसकी मदद से अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करे। लेकिन कर्ज देने वाले देशों में चीन की शर्तें सबसे आसान होती हैं। इस लोन के साथ ज्यादातर आर्थिक सुधार से जुड़ी कड़ी शर्तें नहीं होती हैं। चीन का मकसद बेल्ट एंड रोड परियोजना के जरिये पूरी दुनिया को चीन से जोड़ने का है। इसके लिए वो कई देशों में भारी मात्रा में निवेश कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट की माने तो इसके तहत उसने सलाना 85 अरब डॉलर के करीब खर्च किए हैं। चीन की महत्वकांक्षा अब 42 देशों के लिए मुसबीत बनती जा रही है। 

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श्रीलंका के लिए भस्मासुर बना चीन 

चीन ऐसा देश है जो किसी पर अपना हाथ रख दे तो उसे कंगाल बना देता है। क्योंकि चीन का कर्ज और उस देश की कंगाली दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ती है। सालभर पहले श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डॉलर से ज्यादा हुआ करता था और यह वह 1 अरब डॉलर तक आ चुका है। डॉलर का भाव 200 श्रीलंकाई रुपए से भी ज्यादा हो गया। श्रीलंका अंतरराष्ट्रीय ट्रेड रूट में काफी अहम रोल रखता है। शायद यही वजह है कि 2000 से 2020 के बीच चीन ने श्रीलंका को करीब 12 बिलियन डॉलर बतौर कर्ज दिए। चीन कर्ज के एवज में हमेशा जमीन हड़प लेता है। जैसा कि उसने तीन साल पहले श्रीलंका में हंबनटोटा पोर्ट पर किया था। श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति उसे हिंद महासागर में एक रणनीतिक महत्व देती है और इसी वजह से चीन उसपर नजर बनाए हुए है। 

श्रीलंका की राह पर चला पाकिस्तान 

जनवरी 2023 तक पाकिस्तान का कुल कर्ज 62.46 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपया (274 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के आसपास है। जो पाकिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 79 प्रतिशत है। अक्टूबर, 2022 की आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान का विदेशी कर्ज 100 बिलियन डॉलर के ऊपर है और इसमें से 30 बिलियन डॉलर से ज्यादा कर्ज चीन का दिया हुआ है। 

कंबोडिया 

चीन कंबोडिया का विदेशी निवेश का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे और रियल एस्टेट परियोजनाओं में। जबकि इन निवेशों ने कंबोडिया के आर्थिक विकास में योगदान दिया है, देश के बढ़ते ऋण और इसकी संप्रभुता और रणनीतिक हितों पर संभावित प्रभावों के बारे में चिंताएं जताई गई हैं। 

केन्या 

केन्या में बुनियादी ढांचे के विकास के प्रयासों के कारण रेलवे और बंदरगाहों जैसी परियोजनाओं में चीन ने काफी निवेश किया है। इन निवेशों का उद्देश्य केन्या की कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास को बढ़ाना है। हालांकि, देश के बढ़ते कर्ज के स्तर ने पुनर्भुगतान को प्रबंधित करने और राजकोषीय स्थिरता बनाए रखने की इसकी क्षमता के बारे में चिंताएं पैदा की हैं। 

नेपाल 

अब भारत के ऐसे पड़ोसी देश की बात करेंगे जिसके साथ हमारा रोटी-बेटी का संबंध कहा जाता है। नेपाल ने बीआरआई पर 2017 में साइन किया। चीनी राष्‍ट्रपति की साल 2019 में हुई नेपाल यात्रा के दौरान 20 द्विपक्षीय समझौतों पर हस्‍ताक्षर हुआ था। वांग यी ने कहा था कि चीन सीमा पार रेलवे प्रॉजेक्‍ट के व्यवहार्यता अध्‍ययन पर ठोस प्रगति करेगा, ट्रांस हिमालय कनेक्‍टविटी नेटवर्क को सुधारेगा और नेपाल की परेशानियों को दूर करके उसका सपना पूरा करने में मदद करेगा। नेपाल स्वयं में एक छोटा राष्ट्र है जो एक तरफ भारत तथा दूसरी तरफ चीन से घिरा हुआ है। चूंकि भारत एवं चीन मौलिक रूप से एक दूसरे के परस्पर विरोधी साबित हुए हैं, इसके चलते आधुनिक समय में नेपाल के अंदर किसी भी प्रकार की अस्थिरता उत्पन्न होने की प्रबल संभावना बनी होती है। 

पैसों के दम 16 मुस्लिम देश चीन के सामने नतमस्तक 

चीन ने पिछले 15 वर्षों और मौजूदा और भविष्य के लिए जो इन देशों के साथ करार कर रखे हैं, उसके हिसाब से उसने इन मुस्लिम देशों में करीब 1,300 अरब डॉलर का या तो निवेश कर रखा है या कर्ज के रूप में दिया हुआ है। अमेरिकन इंटरप्राइज इंस्टीट्यूट एंड द हेरिटेज फाउंडेशन के आंकड़ों के मुताबिक 2005 से लेकर 2020 के बीच में चीन ने पाकिस्तान, इंडोनेशिया, मलेशिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, यूएई, कजाकिस्तान, बांग्लादेश, ईरान, अल्जीरिया, मिस्र और तुर्की में कुल 421.59 अरब डॉलर के निवेश कर रखे हैं या करार किया हुआ है। जबकि, ईरान, पाकिस्तान, मलेशिया, सऊदी अरब, बांग्लादेश और मिस्र के साथ उसने मौजूदा समय में भी और भविष्य के लिए भी अरबों डॉलर की डील की हुई है। कुल मिलाकर यह आंकड़ा 1.3 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का है। इसलिए चीन में रह रहे मुसलमानों के हित में आवाज उठाने के मामले में ये तमाम मुस्लिम देश चीन के ‘बंधक’ के रोल में आ चुके हैं और उनकी बोलती बंद हो चुकी है। 

चीन दुनिया का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता 

चीन दुनिया का सबसे बड़ा ऋण संग्रहकर्ता है। विकासशील देशों से उस पर बकाया राशि $1.1tn (£889bn) और $1.5tn के बीच बढ़ गई है। वैश्विक दक्षिण में चीन के विदेशी ऋण पोर्टफोलियो का अनुमानित 80% अब वित्तीय संकट में देशों का समर्थन कर रहा है। 2017 से चीन दुनिया का सबसे बड़ा द्विपक्षीय ऋणदाता रहा है। इसके मुख्य डेवलपमेंट बैंकों ने 2008 और 2021 के बीच लगभग 500 बिलियन डॉलर जारी किए। हालांकि इसमें से कुछ बेल्ट एंड रोड पहल (बीआरआई) से पहले का है।

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