अक्सर जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकारी किसी शहर में पहुंचते हैं तो छापेमारी और कार्रवाई की सुर्खियां बनती हैं। लेकिन इस बार तस्वीर अलग थी। श्रीनगर में 12 और 13 सितंबर को जब ईडी की त्रैमासिक जोनल अधिकारियों की कांफ्रेंस आयोजित हुई तो किसी छापेमारी की चर्चा नहीं हुई, बल्कि कश्मीर के सुरक्षा परिदृश्य की छवि को नयी दिशा मिली।
देखा जाये तो हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देश और दुनिया के सामने कश्मीर की सुरक्षा स्थिति पर सवाल उठने लगे थे। ऐसे में ईडी का शीर्ष सम्मेलन श्रीनगर में आयोजित होना अपने आप में संदेश है कि घाटी अब राष्ट्रीय स्तर की गतिविधियों और विमर्श के लिए सुरक्षित, जीवंत और भविष्यवादी स्थान बन चुकी है। ईडी ने अपने बयान में भी स्पष्ट किया कि इस सम्मेलन की सफलता ने घाटी की सुरक्षा पर विश्वास बहाल किया है।
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हम आपको बता दें कि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे ईडी निदेशक राहुल नवीन ने जोनल प्रमुखों को लंबित जांचों को शीघ्र निपटाने, अंतिम अभियोजन शिकायत दाखिल करने और मुकदमों को तेज गति से आगे बढ़ाने के निर्देश दिए। साथ ही सभी मुख्य न्यायाधीशों के रजिस्ट्रारों को विशेष पीएमएलए (मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम) अदालतें स्थापित करने के प्रस्ताव पर विचार हेतु पत्र भेजे गए हैं। यह कदम न्यायिक प्रक्रिया को गति देगा और आर्थिक अपराधों पर अंकुश लगाने में सहायक होगा।
एजेंसी ने अपने आँकड़ों में भी भरोसा जगाया है। अब तक 53 मामलों में से 50 में दोषसिद्धि सुनिश्चित करना ईडी की कार्यकुशलता और प्रभाव को दर्शाता है। इसके अलावा 34,000 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति पीड़ितों और वैध दावेदारों को लौटाई जा चुकी है। यह उपलब्धि यह साबित करती है कि ईडी केवल जांच एजेंसी ही नहीं बल्कि आर्थिक न्याय की वाहक भी है।
दूसरी ओर, श्रीनगर में इस तरह का उच्चस्तरीय सम्मेलन केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि सुरक्षा तंत्र की क्षमता और आत्मविश्वास का भी प्रमाण है। यह संकेत देता है कि सरकार न केवल आतंकी चुनौतियों से निपटने में सक्षम है बल्कि संवेदनशील क्षेत्रों में राष्ट्रीय संस्थानों की उपस्थिति और सक्रियता भी सुनिश्चित कर सकती है। इससे स्थानीय जनता में विश्वास बढ़ेगा कि घाटी का भविष्य केवल हिंसा की कहानियों तक सीमित नहीं है, बल्कि विकास और स्थिरता के रास्ते भी खुल रहे हैं।
देखा जाये तो ईडी की श्रीनगर कांफ्रेंस ने यह स्पष्ट कर दिया कि केंद्र सरकार घाटी को मुख्यधारा से जोड़ने और आतंकवाद के मनोवैज्ञानिक दबाव को समाप्त करने के लिए हर स्तर पर रणनीतिक कदम उठा रही है। यह केवल आर्थिक अपराधों के खिलाफ एजेंसी की मुहिम का हिस्सा नहीं है, बल्कि कश्मीर की छवि सुधारने और सुरक्षा माहौल में स्थिरता लाने का प्रतीकात्मक और व्यावहारिक कदम भी है।
यह कहा जा सकता है कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की श्रीनगर कांफ्रेंस केवल एक प्रशासनिक आयोजन भर नहीं था, बल्कि यह कश्मीर की बदलती तस्वीर का प्रतीक भी बनकर सामने आया। घाटी, जो लंबे समय तक आतंक और असुरक्षा की चर्चाओं में घिरी रही, अब आत्मविश्वास और नए अवसरों की पहचान बन रही है। ईडी ने जब घाटी में अपना त्रैमासिक सम्मेलन किया, तो उसने यह स्पष्ट कर दिया कि कश्मीर न केवल सुरक्षित है बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजनों के लिए पूरी तरह उपयुक्त भी है। यह कदम मनोवैज्ञानिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे यह संदेश गया है कि अब घाटी का भविष्य केवल अशांति से नहीं, बल्कि विकास, निवेश और सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़ रहा है।
अब उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पहल के बाद अन्य सरकारी विभाग, मंत्रालय और निजी कंपनियां भी अपने सम्मेलन कश्मीर में आयोजित करने के लिए प्रेरित होंगी। इससे पर्यटन और कारोबारी गतिविधियों को नई ऊर्जा मिलेगी। साथ ही फिल्म, वेब-सीरीज़ और टीवी धारावाहिकों की शूटिंग भी तेज़ी पकड़ेगी, जिससे कश्मीर फिर से भारतीय मनोरंजन उद्योग की पसंदीदा लोकेशन बन सकता है। इसके अतिरिक्त, जिस तरह राजस्थान और गोवा डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए जाने जाते हैं, उसी तरह कश्मीर भी आने वाले समय में डेस्टिनेशन वेडिंग का हब बन सकता है। घाटी की प्राकृतिक सुंदरता, आधुनिक सुविधाओं के साथ मिलकर, इसे विश्व-स्तरीय आयोजन स्थलों में बदल सकती है।
बहरहाल, ईडी की श्रीनगर कांफ्रेंस ने केवल कश्मीर की सुरक्षा पर विश्वास बहाल नहीं किया, बल्कि संभावनाओं के नए दरवाजे भी खोले हैं। यह आयोजन घाटी के लिए उस नए दौर की शुरुआत का प्रतीक है, जिसमें कश्मीर अवसरों और उपलब्धियों से पहचाना जाएगा।