केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा आज आयोजित उच्च स्तरीय बैठक ने एक बार फिर स्पष्ट कर दिया है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा और स्थायित्व को लेकर किसी प्रकार की ढिलाई के मूड में नहीं है। इस बैठक में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन, इंटेलिजेंस ब्यूरो के निदेशक तपन डेका, जम्मू-कश्मीर पुलिस महानिदेशक नलिन प्रभात तथा अर्धसैनिक बलों के शीर्ष अधिकारी शामिल हुए। इस समीक्षा का केंद्र बिंदु था— आतंकवाद के हालिया रुझान, सीमापार से घुसपैठ की साजिशें और सुरक्षा एजेंसियों के बीच समन्वय को और सुदृढ़ करना।
हम आपको बता दें कि बीते कुछ महीनों से Pir Panjal क्षेत्र में आतंकवादी गतिविधियों का पुनरुत्थान चिंता का विषय बना हुआ है। यही कारण है कि इस बैठक में “शून्य घुसपैठ” के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए ठोस रणनीति बनाने पर जोर दिया गया। पाकिस्तान की ओर से लगातार सक्रिय आतंक तंत्र और अब लश्कर-ए-तैयबा (LeT) तथा इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (ISKP) के बीच संभावित गठजोड़ की खबरें, भारत की सुरक्षा के लिए एक नए खतरे की घंटी हैं। इस संदर्भ में अमित शाह का यह निर्देश कि आतंक वित्तपोषण और नशीले पदार्थों के कारोबार से होने वाले फंड के विरुद्ध तत्काल और कठोर कार्रवाई की जाए, अत्यंत समयोचित और बेहद जरूरी है।
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देखा जाये तो आतंक का आधुनिक चेहरा केवल बंदूक तक सीमित नहीं है— वह अब “सूचना युद्ध” (Information Warfare) में भी सक्रिय है। कुछ तत्व सोशल मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत-विरोधी प्रचार फैलाकर स्थानीय युवाओं को गुमराह करने की कोशिश करते हैं। इस पर लगाम कसने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री द्वारा नकारात्मक प्रचार का प्रतिकार करने और जनता के समक्ष वास्तविक स्थिति प्रस्तुत करने की बात कही गई। यह न केवल सुरक्षा का प्रश्न है, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक और वैचारिक मोर्चे की भी लड़ाई है, जिसमें पारदर्शिता और सूचना की सटीकता निर्णायक भूमिका निभाती है।
बैठक में विकास परियोजनाओं की समीक्षा को भी उतनी ही गंभीरता से लिया गया, जितनी सुरक्षा को। इसका अर्थ है कि केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को केवल सुरक्षा के नजरिये से नहीं, बल्कि दीर्घकालिक शांति और सामाजिक स्थिरता के दृष्टिकोण से देख रही है। सड़क, शिक्षा, रोजगार और पर्यटन से जुड़े प्रोजेक्ट्स की प्रगति का मूल्यांकन यह संकेत देता है कि “विकास और सुरक्षा” अब एक-दूसरे के पूरक स्तंभ हैं, प्रतिस्पर्धी नहीं।
देखा जाये तो अप्रैल 2025 के पहलगाम हमले के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने जिस तेजी से जवाबी कार्रवाई की, उसने यह सिद्ध किया कि अब आतंक को जड़ से समाप्त करने का संकल्प केवल शब्द नहीं, बल्कि नीति बन चुका है। केंद्रीय गृहमंत्री ने एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल और सूचना-साझेदारी पर बल दिया— यही वह बिंदु है, जहां से किसी भी सुरक्षा रणनीति को वास्तविक प्रभावशीलता मिलती है।
देखा जाये तो कश्मीर की सुरक्षा स्थिति का मूल्यांकन केवल वर्तमान घटनाओं तक सीमित नहीं रहना चाहिए; यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा की व्यापक रणनीति, सीमा प्रबंधन, स्थानीय प्रशासनिक दक्षता और नागरिक सहभागिता, सबका समावेश आवश्यक है। केंद्र की नीति का वर्तमान स्वरूप— “आतंक पर कठोरता और विकास पर निरंतरता”, इसी संतुलन को साधने का प्रयास है।
अमित शाह की बैठक का संदेश स्पष्ट है: आतंकवाद के किसी भी रूप को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और जम्मू-कश्मीर के लोगों को भय-मुक्त वातावरण देना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। साथ ही यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि विकास की धारा रुकने न पाए, ताकि घाटी में स्थायी शांति की जड़ें और गहरी हों। देखा जाये तो आज का जम्मू-कश्मीर सुरक्षा और स्थायित्व की नई कहानी लिख रहा है। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक दक्षता और जनता का विश्वास— तीनों का समन्वय अनिवार्य है। अमित शाह की यह बैठक उसी दिशा में एक ठोस और निर्णायक कदम है।