पाकिस्तान में जल्द ही हालात तेजी से बिगड़ने की संभावनाएं हैं क्योंकि शहबाज शरीफ सरकार और पाकिस्तानी सेना ने मिलकर पूरे विपक्ष को कुचलने का मन बना लिया है। हम आपको बता दें कि पाकिस्तान में हाल के दिनों में जो घटनाक्रम तेजी से सामने आये हैं वह न केवल वहां के राजनीतिक हालात को उजागर कर रहे हैं बल्कि यह भी बता रहे हैं कि सेना और सरकार किस तरह से सत्ता बचाने के लिए “सुरक्षा” के नाम पर कानूनों और संस्थाओं का दुरुपयोग कर रही हैं। हम आपको बता दें कि इमरान ख़ान की पार्टी पीटीआई की प्रस्तावित राष्ट्रीय आंदोलन की चेतावनी के बीच पाकिस्तान सरकार ने जिस तरह से एक नए केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘Federal Constabulary’ के गठन की घोषणा की है, वह स्पष्ट संकेत देता है कि पाकिस्तान का शासक वर्ग अब लोकतंत्र के नाम पर सैन्य ताकत के सहारे विपक्ष को पूरी तरह कुचलने की तैयारी में हैं।
हम आपको बता दें कि इस नई फोर्स को पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी इलाक़ों में पहले से तैनात Frontier Constabulary (FC) का विस्तार कहा जा रहा है। फर्क बस इतना है कि अब इसे ‘राष्ट्रीय’ सुरक्षा बल का दर्जा देकर पूरे देश में विरोध-प्रदर्शनों को दबाने और आतंकवाद से निपटने के नाम पर तैनात किया जा सकेगा। इसलिए इमरान ख़ान के समर्थकों और मानवाधिकार संस्थाओं का संदेह वाजिब है कि इस फोर्स का असल मकसद आंतरिक सुरक्षा नहीं, बल्कि राजनीतिक असहमति को बलपूर्वक दबाना है।
इसे भी पढ़ें: Houthi समर्थित यमन भी मानने लगा मोदी का लोहा, भारतीय नर्स निमिषा की फांसी पर लास्ट टाइम में लिया गजब का फैसला?
हम आपको बता दें कि इमरान ख़ान की गिरफ्तारी के विरोध में पाकिस्तान में इस समय जो जन आक्रोश दिखाई दे रहा है, वह आने वाले दिनों में शहबाज शरीफ सरकार और सेना के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। इमरान खान की गिरफ्तारी के विरोध में पाकिस्तान में पहले भी कई बार प्रदर्शन हिंसक हुए, इस्लामाबाद ठप पड़ा और सत्ता प्रतिष्ठान ने इसे ‘राष्ट्रीय सुरक्षा संकट’ के रूप में प्रचारित किया। इसी आड़ में पहले भी दर्जनों बार इमरान समर्थकों और पार्टी नेताओं पर कड़ी कार्रवाई की गई। अब इसी क्रम में इस नए सुरक्षा बल को कानूनी जामा पहनाया जा रहा है ताकि आगे चलकर किसी भी विरोध को सख्ती से कुचला जा सके।
इस बीच, मानवाधिकार आयोग समेत कई संगठनों ने चिंता जताई है कि बिना संसदीय बहस के इस तरह के संवेदनशील सुरक्षा सुधार करना पाकिस्तान में लोकतंत्र के पतन का संकेत है। वैसे यह कोई पहला मौका नहीं है जब वहां संसद को दरकिनार कर के ताकतवर संस्थाएं सीधे फैसले थोप रही हों। पाकिस्तान के राजनीतिक ढांचे में सेना, खुफिया एजेंसियों और अब ऐसे अर्धसैनिक बलों की भूमिका पहले से ही सवालों के घेरे में रही है।
देखा जाये तो शहबाज शरीफ सरकार का यह फैसला इमरान ख़ान की पार्टी की चेतावनी है कि इस फोर्स का इस्तेमाल पुराने अंदाज में विपक्ष को दबाने के लिए किया जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो पाकिस्तान के पहले से ही नाजुक लोकतांत्रिक ताने-बाने को और गहरा झटका लगेगा। इस कदम से देश में असंतोष और हिंसा का चक्र और तेज हो सकता है। देखा जाये तो लोकतंत्र के नाम पर लगातार सैन्य और अर्धसैन्य बलों के इस्तेमाल ने पाकिस्तान को जिस मुकाम पर ला खड़ा किया है, उससे निकलने का रास्ता और कठिन होता जा रहा है।
इसे भी पढ़ें: 1 महीने से गायब थे जिनपिंग, होने वाला था तख्तापलट? जयशंकर ने चीन पहुंचकर पूरा माहौल ही बदल दिया
हम आपको बता दें कि पाकिस्तान की मौजूदा सरकार और सेना जिस रास्ते पर चल रही है, उसमें न तो विपक्ष के लिए कोई जगह बची है और न ही आम नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए। हर असहमति को ‘सुरक्षा संकट’ बता कर कुचलने की प्रवृत्ति न सिर्फ पाकिस्तान के राजनीतिक भविष्य को अंधकारमय बना रही है, बल्कि देश को एक स्थायी आंतरिक टकराव की ओर धकेल रही है।