भारत द्वारा हाल ही में चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकवाद की जड़ों पर गहरी चोट की जिससे अब आतंकवादी अपने भविष्य के प्रति चिंतित नजर आ रहे हैं। हम आपको बता दें कि तमाम बड़े आतंकी ठिकानों के सफाए के बाद, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी संगठनों- जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और हिज़बुल मुजाहिद्दीन (HM) ने अपनी गतिविधियाँ पाकिस्तान के खैबर पख़्तूनख़्वा (KPK) में स्थानांतरित करना शुरू कर दी हैं। इस स्थान की अफ़ग़ानिस्तान से निकटता और यहां मौजूद दशकों पुराने जिहादी ठिकानों ने इसे आतंकवादियों के लिए नया आश्रयस्थल बना दिया है।
मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इन आतंकी गतिविधियों को पाकिस्तान की राज्य संरचनाओं का प्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है। बताया जा रहा है कि 14 सितंबर को भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच से ठीक पहले मंसहरा ज़िले के गढ़ी हबीबुल्लाह में जैश ने एक सार्वजनिक भर्ती अभियान आयोजित किया। इस तथाकथित धार्मिक सभा में स्थानीय पुलिस की मौजूदगी और राजनीतिक-धार्मिक संगठन जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (JUI) की सक्रिय भागीदारी ने पाकिस्तान की दोहरी नीति को उजागर किया। इस सभा में जैश का केपीके और कश्मीर प्रमुख मौलाना मुफ़्ती मसूद इलियास कश्मीरी उर्फ़ अबू मोहम्मद ने खुलकर ओसामा बिन लादेन की प्रशंसा की और जैश की विचारधारा को सीधे अल-कायदा की विरासत से जोड़ा। हम आपको बता दें कि यह वही कश्मीरी है, जिसे भारत संजुआं हमले (2018) का मुख्य साज़िशकर्ता मानता है और जिसके ख़िलाफ़ एनआईए चार्जशीट दाख़िल कर चुकी है।
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बताया जा रहा है कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद जैश ने मंसहरा में स्थित अपने मरकज़ शोहदा-ए-इस्लाम केंद्र का विस्तार शुरू कर दिया है। निर्माण गतिविधियों और लॉजिस्टिक बढ़ोतरी की पुष्टि स्थानीय सूत्रों ने की है। इसी तरह, हिज़बुल मुजाहिद्दीन ने लोअर डिर, केपीके के बंदाई क्षेत्र में HM 313 नामक नया प्रशिक्षण केंद्र बनाना शुरू किया है। हम आपको बता दें कि “313” नामकरण बद्र की लड़ाई और अल-कायदा की ब्रिगेड 313 को संदर्भित करता है जो इस्लामी कट्टरपंथियों के बीच वैधता हासिल करने की सोची-समझी कोशिश है। बताया जा रहा है कि 25 सितंबर को पेशावर में जैश अपने अल-मुराबितून उपनाम के तहत एक और बड़ी सभा आयोजित करने वाला है, जिसका घोषित उद्देश्य यूसुफ़ अज़हर (मसूद अज़हर का भाई, जो ऑपरेशन सिंदूर में मारा गया) को श्रद्धांजलि देना है। लेकिन वास्तविक लक्ष्य नए युवाओं की भर्ती है।
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इन सभाओं में स्थानीय पुलिसकर्मी खुलेआम मौजूद रहते हैं और सुरक्षा प्रदान करते हैं। खुद कश्मीरी ने अपने भाषण में दावा किया कि सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने आतंकियों के अंतिम संस्कार में पाकिस्तानी सेना और वायुसेना को शामिल होने का आदेश दिया था। इसका सीधा अर्थ है कि आतंकवाद न केवल सहन किया जा रहा है बल्कि उसे राज्य-प्रायोजित संरक्षण भी मिल रहा है। यह स्थिति और भी विडंबनापूर्ण है क्योंकि पाकिस्तान आज संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों की अध्यक्षता कर रहा है, जहाँ आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई की प्रतिबद्धता जताई जाती है।
देखा जाये तो ऑपरेशन सिंदूर ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत अब सीमाओं के भीतर ही नहीं बल्कि सीमाओं के पार जाकर भी आतंकवाद पर प्रहार करने में सक्षम है। यही कारण है कि आतंकवादी संगठन PoK से हटकर गहरे पाकिस्तान के भीतर जा रहे हैं। इससे भारत के लिए क्या चुनौती होगी, यदि इस पर चर्चा करें तो आपको बता दें कि आतंकवादी अब ऐसे क्षेत्रों में छिपेंगे जहाँ सीधा सैन्य अभियान चलाना कठिन होगा। साथ ही केपीके की भौगोलिक स्थिति अफग़ान आतंकी नेटवर्क से जोड़ने में सहायक है, जिससे भारत के खिलाफ़ आतंकवाद की नई ऊर्जा पैदा हो सकती है। हालाँकि आतंकवाद का यह स्थानांतरण भारत के लिए नई चुनौतियाँ लाता है, लेकिन इसमें अवसर भी छिपा है। देखा जाये तो भारत के लिए यह संदेश स्पष्ट है कि उसकी सटीक सैन्य रणनीति काम कर रही है और आतंकवादी अब सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहे। यह पाकिस्तान के दोहरे चेहरे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उजागर करने का उपयुक्त समय है। भारत को चाहिए कि वह कूटनीतिक स्तर पर इस मुद्दे को उठाकर पाकिस्तान को अलग-थलग करे और आतंकवाद समर्थक गतिविधियों को आर्थिक रूप से महँगा बनाए।
इसमें भी कोई दो राय नहीं कि ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की आतंकवाद-निरोधी क्षमता और इच्छाशक्ति दोनों को सिद्ध किया। परिणामस्वरूप, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादियों को PoK से खदेड़ कर केपीके में शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा है। लेकिन यह केवल स्थान परिवर्तन है, आतंकवाद की मानसिकता और पाकिस्तान की नीति जस की तस है। पाकिस्तान के राज्य तंत्र, धार्मिक-राजनीतिक दलों और आतंकी संगठनों की मिलीभगत से यह स्पष्ट हो गया है कि आतंकवाद वहाँ की रणनीतिक गहराई का हिस्सा है। भारत को इस स्थिति को न केवल सैन्य बल्कि कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर भी चुनौती देनी होगी। वैसे, ऑपरेशन सिंदूर ने यह साबित किया है कि भारत अब केवल रक्षात्मक नहीं बल्कि आक्रामक रुख अपनाकर आतंकवाद की जड़ों तक पहुँचने में सक्षम है। आने वाले समय में यही भारत की सबसे बड़ी ताक़त होगी।