अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को मज़बूत करने के उद्देश्य से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बुधवार को इसरो और नासा द्वारा संयुक्त रूप से विकसित एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह का प्रक्षेपण किया। प्रक्षेपण भारतीय समयानुसार शाम 5:40 बजे हुआ। निसार उपग्रह, दोनों अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच मानवीय कौशल और एक दशक से चल रहे सॉफ़्टवेयर और हार्डवेयर के आदान-प्रदान का एक संयोजन है, जिसका उद्देश्य सूर्य-समकालिक कक्षा से संपूर्ण पृथ्वी का अध्ययन करना है। नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार उपग्रह, निसार, का संक्षिप्त नाम है और इसका वज़न 2,393 किलोग्राम है। इसे बुधवार को चेन्नई से लगभग 135 किलोमीटर दूर श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से पूर्व निर्धारित समय पर 51.7 मीटर ऊँचे, तीन चरणों वाले जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट से प्रक्षेपित किया गया।
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इसरो ने बताया कि प्रक्षेपण की उल्टी गिनती 29 जुलाई को दोपहर 2:10 बजे शुरू हो गई थी। इस मिशन को प्रक्षेपण, परिनियोजन, कमीशनिंग और वैज्ञानिक चरणों में वर्गीकृत किया गया है। निसार का वजन 2393 किलोग्राम है। इसमें 12 मीटर का एक खास एंटीन लगा है, जिसे नौ मीटर तक बूम किया जा सकता है। हर 12 दिन में इससे 240 किलोमीटर तक तस्वीरें मिलेंगी। पूरी धरती की तस्वीरें लेने में सक्षम है। ये मिशन पांच साल तक काम करेगा। खास बात ये है कि निसार से मिला डेटा सबके लिए मुफ्त और ओपन होगा। निसार करीब 13 हजार करोड़ रुपए की लागत से तैयार हुआ है।
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इसरो और ‘नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (नासा) के बीच यह साझेदारी अपनी तरह की पहली साझेदारी है। साथ ही ऐसा पहली बार हो रहा है जब जीएसएलवी रॉकेट के जरिए उपग्रह को सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा में भेजा जा रहा है जबकि सामान्यतः ऐसी कक्षाओं में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (पीएसएलवी) के जरिए उपग्रह भेजे जाते हैं। यह उपग्रह किसी भी मौसम में और दिन-रात 24 घंटे पृथ्वी की तस्वीरें ले सकता है। यह भूस्खलन का पता लगाने, आपदा प्रबंधन में मदद करने और जलवायु परिवर्तन की निगरानी करने में भी सक्षम है। उपग्रह से हिमालय और अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में वनों में होने वाले बदलाव, पर्वतों की स्थिति या स्थान में बदलाव और हिमनद की गतिविधियों सहित मौसमी परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सकेगा।