Wednesday, October 15, 2025
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Jan Gan Man: अदालतों के प्रति जनता में बढ़ती निराशा चिंता की बात है, न्यायिक सुधार जल्द से जल्द होने चाहिए

भारतीय लोकतंत्र में सुप्रीम कोर्ट को हमेशा अंतिम आशा का केंद्र माना गया है। संविधान के संरक्षक के रूप में यह संस्था न केवल कानून की व्याख्या करती है, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा का भी दायित्व निभाती है। परंतु हाल के वर्षों में आम जनता के बीच एक गहरी निराशा उभरती दिखाई दे रही है। सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है? इसका पहला कारण है न्याय में देरी। वर्षों तक लंबित मामलों का बोझ इतना बढ़ गया है कि गरीब और आम नागरिक को न्याय पाने में पीढ़ियाँ लग जाती हैं। “न्याय में देरी, न्याय से इंकार है”, यह कहावत आज न्यायपालिका की सच्चाई बनती जा रही है।
दूसरा कारण है सार्वजनिक हित के मुद्दों पर अनिश्चित रुख। तीसरा कारण है स्वतः संज्ञान लेने में चयनित रवैया। सुप्रीम कोर्ट अक्सर स्वतः संज्ञान लेकर मामलों पर कार्रवाई करती है, लेकिन कई संवेदनशील और व्यापक सामाजिक समस्याओं पर इसकी सक्रियता नदारद रहती है। उदाहरण के लिए, हर साल लगभग पाँच लाख बहन-बेटियों के गायब होने, धर्मांतरण या बलपूर्वक धर्म परिवर्तन जैसी समस्याओं पर अदालत की ओर से कोई ठोस स्वतः संज्ञान नहीं लिया जाता। जब आम नागरिक के लिए जीवन और सुरक्षा जैसे मूलभूत मुद्दे अदालत के ध्यान से बाहर रह जाते हैं, तो न्यायपालिका के रुख पर निराशा होना स्वाभाविक है।

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चौथा पहलू है “जन-न्याय” से दूरी। कोर्ट की भाषा, प्रक्रिया और पहुँच अब भी आम नागरिक के लिए कठिन है। जब लोगों को यह महसूस होने लगे कि न्याय तंत्र केवल शक्तिशाली और विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग के लिए सुलभ है, तो भरोसा कमजोर होना तय है। फिर भी, यह भी सच है कि सुप्रीम कोर्ट के भीतर अनेक ईमानदार न्यायाधीश और ऐतिहासिक फैसले आज भी उम्मीद जगाते हैं। परंतु संस्थागत सुधारों के बिना यह उम्मीद लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकती। न्यायपालिका को चाहिए कि वह स्वयं आत्ममंथन करते हुए न्याय में गति लाए एवं जवाबदेही तथा नागरिकों की आस्था को और बढ़ाये।
बहरहाल, अदालतों के प्रति आम जनता में बढ़ती निराशा न केवल चिंता का विषय है, बल्कि यह लोकतंत्र की आत्मा पर भी गहरा प्रभाव डालती है। ऐसे में न्यायिक सुधार सिर्फ एक प्रशासनिक आवश्यकता नहीं, बल्कि लोकतंत्र की मजबूती और समाज में विश्वास बहाल करने के लिए अनिवार्य हो गया है। इसके तहत न्याय में तेजी लाना, न्याय तक पहुँच को आसान बनाना, पारदर्शिता बढ़ाना और संवेदनशील मामलों पर जवाबदेही सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।
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