अमेरिकी विदेश विभाग ने टीआरएफ को विदेशी आतंकवादी संगठन (एफटीओ) और विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी (एसडीजीटी) संगठन की सूची में शामिल कर आतंकवाद पर करारा प्रहार किया है। साथ ही इससे पाकिस्तान के चेहरे से नकाब भी उतर गया है। एक ओर कश्मीरियों के अधिकारों और उनके मानवाधिकारों की दुहाई देने वाला पाकिस्तान कैसे अपने मुखौटा संगठन के माध्यम से कश्मीरियों को ही सबसे ज्यादा जख्म दे रहा है इस बात का पर्दाफाश पूरी दुनिया के सामने हो गया है।
हम आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 के वर्ष 2019 में निरस्त किये जाने के बाद अस्तित्व में आया ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) घाटी में सबसे घातक आतंकवादी समूह के रूप में उभरा है और इसमें पाकिस्तान के विशेष सेवा समूह (एसएसजी) पूर्व कमांडो शामिल हैं। पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के मुखौटा संगठन टीआरएफ ने ही 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी ली थी। टीआरएफ के पहलगाम हमले के अलावा गत दो साल में चार अन्य बड़े हमलों में भी संलिप्त होने की पुष्टि हुई है। इनमें जून 2024 में रियासी में तीर्थयात्रियों पर हमला, अक्टूबर 2024 में गांदरबल में जेड-मोड़ सुरंग में प्रवासी निर्माण श्रमिकों पर हमला; 13 सितंबर, 2023 को कोकरनाग मुठभेड़, जिसमें एक कर्नल, एक मेजर और एक पुलिस उपाधीक्षक की जान गई और 8 जुलाई, 2020 को बांदीपोरा जिले में भाजपा के एक नेता पर हमला, जिसमें उनकी और उनके परिवार के दो सदस्यों की मौत हो गई थी, जैसी घटनाएं शामिल हैं।
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हम आपको बता दें कि पाकिस्तान की ‘प्रोपगेंडा’ युद्ध मशीनरी टीआरएफ को ‘घरेलू’ उग्रवादी संगठन के रूप में प्रचारित करती है, जबकि यह लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा संगठन है, जिसे कश्मीर में आतंकवाद को और अधिक ‘‘स्थानीय’’ प्रदर्शित करने के लिए बनाया गया है। टीआरएफ का गठन अक्टूबर 2019 में किया गया था तथा शेख सज्जाद गुल को सुप्रीम कमांडर, मोहम्मद अब्बास शेख को संस्थापक प्रमुख और बासित अहमद डार को मुख्य कार्रवाई कमांडर नामित किया गया था। स्थानीय आतंकवादी अब्बास और डार, दोनों को सुरक्षा बलों ने 23 अगस्त 2021 और सात मई 2024 को घाटी में अलग-अलग अभियानों में मार गिराया था। टीआरएफ ने इसके बाद जम्मू-कश्मीर में अपनी गतिविधियों को बढ़ा दिया और अपनी रणनीति में बदलाव किया।
पारंपरिक रूप से सुरक्षा बलों और राजनीतिक हस्तियों को निशाना बनाने वाले टीआरएफ ने 2024 के अंत और 2025 की शुरुआत में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और प्रवासी मजदूरों और पर्यटकों सहित नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। सूत्रों ने बताया कि खुफिया सूचनाओं, मुखबिरों से मिली सूचना और फोरेंसिक डिजिटल साक्ष्यों से ज्ञात हुआ है कि टीआरएफ पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान के सीधे निर्देशों पर काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि पहलगाम हमले का समय पाकिस्तान में बढ़ती घरेलू अशांति और लोकतांत्रिक ताकतों पर सेना की कार्रवाई की वैश्विक आलोचना के साथ मेल खाता है, जिसका असली उद्देश्य घरेलू और वैश्विक स्तर पर ध्यान भटकाना है।
अधिकारियों ने बताया कि पहलगाम हमला टीआरएफ की रणनीति में एक अहम बदलाव का प्रतीक है। बताया जाता है कि ‘फाल्कन स्क्वाड’ नामक टीआरएफ इकाई से जुड़े पांच हमलावरों ने सैन्य वेश-भूषा में, सैन्य-स्तरीय हथियारों और उन्नत संचार उपकरणों से लैस होकर पहलगाम इलाके में घुसपैठ की थी। पहलगाम हमले में बचे लोगों ने बताया था कि हमलावरों ने विशेष रूप से हिंदू पुरुषों को निशाना बनाया, उनके नाम और खतना जैसे धार्मिक चिह्नों की पड़ताल की तथा पीड़ितों से ‘कलमा’ (इस्लाम से संबंध होने की उद्घोषणा) पढ़ने को कहा था। हमलावरों ने हेलमेट पर लगे कैमरों का इस्तेमाल किया था और तेजी से ‘हमला कर फरार होने’ की रणनीति अपनाई थी। हमलावर पकड़ में आने से बचने के लिए जंगलों में भाग गए थे।
सुरक्षा एजेंसियों ने हमलावरों के सरगना की पहचान हाशिम मूसा उर्फ आसिफ फौजी के रूप में की है, जो एक पूर्व पाकिस्तानी एसएसजी कमांडो है और उसे एक अन्य पाकिस्तानी नागरिक अली भाई का सहयोग प्राप्त था। अधिकारियों ने बताया कि हमले की साजिश कथित तौर पर लश्कर-ए-तैयबा के एक वरिष्ठ कमांडर और घोषित वैश्विक आतंकवादी हाफिज सईद के करीबी सहयोगी सैफुल्लाह कसूरी उर्फ खालिद ने रची थी। उन्होंने बताया कि डिजिटल उपकरणों और सिग्नल से उनके संपर्क सीमा पार मुजफ्फराबाद और कराची से स्पष्ट होते हैं। इससे पता चलता है कि पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा के बुनियादी ढांचे के साथ उनका गहरा समन्वय था।
अधिकारियों ने बताया कि पहलगाम में पर्यटकों को निशाना बनाना कश्मीरी आतंकवादी समूहों की परिचालन नीति में संभावित बदलाव का संकेत है, जो क्षेत्र को अस्थिर करने, पर्यटन को हतोत्साहित करने और सांप्रदायिक विभाजन को गहरा करने की व्यापक रणनीति के तहत सरकारी कर्मियों और बसने वालों से आगे बढ़कर असैन्य आगंतुकों को भी शामिल करने की उनकी मंशा को इंगित करता है। उन्होंने बताया कि ‘‘फाल्कन स्क्वाड’ के तहत उच्च प्रशिक्षित, स्थानीय स्तर पर भर्ती किए गए आतंकवादियों का इस्तेमाल विकेन्द्रीकृत, मुश्किल से पकड़ में आने वाले आतंकवादियों पर बढ़ती निर्भरता को दर्शाता है, जिससे जम्मू-कश्मीर में क्षेत्रीय सुरक्षा और नागरिक जीवन दोनों के लिए भविष्य के खतरों के बारे में चिंता बढ़ रही है।
इसके अलावा, गांदरबल हमले में, दो-तीन हमलावर एम4 कार्बाइन असॉल्ट राइफल और एके-47 समेत राइफल के साथ शिविर में दाखिल हुए थे और गोलीबारी शुरू कर दी थी। अधिकारियों ने बताया कि इसमें टीआरएफ द्वारा ‘‘अरब डॉलर की सुरंग परियोजना’’ को निशाना बनाया गया और इस हमले के रणनीतिक फायदे पर ध्यान केंद्रित किया गया। उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा माना जाता है कि ये हमले समूह की शुत्रता को दिखाता है जो इन विकास कार्य को जनसांख्यिकीय परिवर्तन और क्षेत्र में भारतीय संघीय एकीकरण के रूप में देखता है। वर्ष 2024 और 2025 में कश्मीर फाइट फाल्कन एक्स जैसे अलगाववादी समर्थक सोशल मीडिया खातों से गैर-स्थानीय नागरिकों, विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों और पर्यटकों को कश्मीर के ‘अवैध कब्जे’ में शामिल ‘बसने वाले उपनिवेशवादियों’ के रूप में पेश किया जा रहा है।’’ हम आपको बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जनवरी 2023 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत टीआरएफ को आधिकारिक तौर पर एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया था। सूत्रों ने कहा कि टीआरएफ का गठन पाकिस्तान की लंबे समय से चली आ रही कार्यप्रणाली का एक उदाहरण है, जिसमें वह अंतरराष्ट्रीय जांच से बचने और संभावित इनकार को बनाए रखने के लिए आतंकवादी संगठनों की नई ब्रांडिंग करता है, जबकि स्थानीय प्रतिरोध की आड़ में सीमा पार आतंकवाद की अपनी रणनीति जारी रखता है। हम आपको बता दें कि टीआरएफ लश्कर का नया मुखौटा मात्र है और पाकिस्तान के फील्ड मार्शल जनरल असीम मुनीर इस खूनी रणनीति के सूत्रधार हैं।