सुरक्षा एजेंसियों ने कश्मीर घाटी में कुछ युवाओं के बीच अलगाववादियों और आतंकवादियों का महिमामंडन करने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग करने के एक नये चलन का खुलासा किया है। इसके पीछे का कारण वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं, बल्कि फॉलोवर बढ़ाने और विज्ञापनदाताओं से धन कमाने की एक सोची-समझी रणनीति है। हम आपको बता दें कि श्रीनगर पुलिस कट्टरपंथ का मुकाबला करने के लिए सोशल मीडिया साइट पर नजर रखने का हरसंभव प्रयास कर रही है। श्रीनगर पुलिस को इस प्रवृत्ति का पता तब चला जब उसने ऐसे अकाउंट से जुड़़े कुछ युवाओं को हिरासत में लिया।
युवकों ने पूछताछ के दौरान, स्वीकार किया कि भड़काऊ तस्वीरों- जैसे कि प्रतिबंधित हिजबुल मुजाहिदीन के मारे गए आतंकवादी बुरहान वानी की तस्वीर- का इस्तेमाल फॉलोवर का एक बड़ा आधार हासिल करने के लिए एक सोची-समझी रणनीति थी। युवकों ने बताया कि इससे वे बाद में अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर विज्ञापनदाताओं से विज्ञापन हासिल करके उससे पैसे कमाने में सक्षम हो सके। अधिकारियों ने बताया कि बड़ी संख्या में फॉलोअर, विशेषकर सीमापार और विदेशों से, हासिल करने के बाद, अकाउंट संचालक इन तस्वीरों को पहाड़ों या चिनार के पेड़ों जैसी तस्वीरों से बदल देते थे।
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अधिकारियों ने कहा कि यह उभरती प्रवृत्ति चिंताजनक हो सकती है, क्योंकि यह इस क्षेत्र में राजनीतिक विरोध, उग्र तत्वों और नाम व पैसा कमाने के इच्छुक लोगों के बीच के अंतर को पहचाने में मुश्किल पैदा कर सकती है। पुलिस जहां अपनी निगरानी बढ़ाने तथा निजी लाभ के लिए संवेदनशील सुरक्षा स्थितियों का फायदा उठाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए कृतसंकल्पित है, वहीं परिवारों को यह समझाने का भी प्रयास किया जा रहा है कि इससे उनके बच्चों के भविष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा। अधिकारियों ने बताया कि हाल ही में पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए सात बच्चों को उनके माता-पिता के सामने परामर्श प्रदान करके रिहा कर दिया गया।
अधिकारियों का मानना है कि कश्मीर घाटी में भड़काऊ तस्वीरों का इस्तेमाल करने वाले सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर के पीछे का मकसद आर्थिक है। डिजिटल दुनिया में, जहां कंटेट से कमाई नया लक्ष्य बन गया है, वहीं लाइक, शेयर और कमाई की होड़ ने चीजों को एक अस्पष्ट दायरे में पहुंचा दिया है। अधिकारियों ने कहा कि इनमें से ज़्यादातर इन्फ्लूएंसर सोशल मीडिया मंच पर ब्रांड साझेदारी पर निर्भर हैं, जहां वे या तो उत्पादों का प्रचार करते हैं या उन्हें अपनी सामग्री में शामिल करते हैं। तीन सोशल मंच पर काम करने वाले दो प्रमुख इन्फ्लूएंसर के अनुसार, ब्लू-टिक सत्यापन प्रणाली के बावजूद राजस्व-साझा करने का मॉडल अस्पष्ट बना हुआ है।
एक इन्फ्लूएंसर ने नाम गुप्त रखने का अनुरोध करते हुए इस प्रक्रिया को “अस्पष्ट” बताया और कहा कि भुगतान की आवृत्ति और राशि निर्धारित करने वाले कारक रहस्य बने हुए हैं। सोशल मीडिया मुद्रीकरण कैसे काम करता है, इसे समझते हुए युवा कश्मीरियों द्वारा फ़ॉलोअर बढ़ाने के लिए अलगाववादी छवियों का उपयोग करने की जांच आधुनिक डिजिटल अर्थव्यवस्था की एक गहरी और अधिक जटिल कहानी को उजागर करती है। देखा जाये तो ऑनलाइन सेलिब्रिटी बनने की होड़ अक्सर मुद्रीकरण के उद्देश्य से जुड़ी होती है। एक ऐसी प्रक्रिया जो कभी-कभी आसान होती है या जरूरी नहीं कि इसकी गारंटी हो।
इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब जैसे बड़े मंच पर मुद्रीकरण (मॉनेटाइजेशन) प्रत्यक्ष विज्ञापन आय, सब्सक्रिप्शन और ब्रांड डील का एक संयोजन है, जिनके अपने नियम और बाधाएं होती हैं। वहीं एक अन्य सोशल मीडिया मंच के लिए एक पेशेवर अकाउंट होना जरूरी है, जिसमें 60 दिनों के भीतर 10,000 फ़ॉलोअर और सामग्री हज़ार मिनट तक देखी गई होनी चाहिए। इसलिए, कश्मीर में फॉलोअर की संख्या बढ़ाने के लिए भड़काऊ सामग्री का इस्तेमाल करना इस अस्थिर डिजिटल अर्थव्यवस्था का सीधा नतीजा प्रतीत होता है।