Sunday, October 5, 2025
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Maganbhai Patel की अध्यक्षता में एन.एम. पडलिया कॉलेज में ‘Rapid Drug Delivery’ पर राष्ट्रीय सेमिनार

हाल ही में बावला रोड,अहमदाबाद में स्थित एन.एम. पडलिया फार्मेसी कॉलेज में ”Advances in Rapid Drug Delivery Technologies from Past Insights to Future Prospects” के विषय पर ग्लोबल एग्रोबायोटेक एंड फार्मा रिसर्च फाउंडेशन और एसोसिएशन ऑफ फार्मास्युटिकल टीचर्स ऑफ इंडिया के सहयोग से एक राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। यह सेमिनार कॉलेज के प्रमुख एवं मेनेजिंग ट्रस्टी मगनभाई पटेल की अध्यक्षता में आयोजित किया गया, जिसमें वे मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। मगनभाई पटेल ग्लोबल एग्रोबायोटेक एवं फार्मा रिसर्च फाउंडेशन के प्रमुख भी हैं और उनके आमंत्रण पर देश के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं वनस्पतिशास्त्री तथा अंदमान एवं निकोबार क्षेत्रीय केंद्र के प्रमुख एवं अतिरिक्त डिरेक्टर डॉ.लालसिंघजी इस महाविद्यालय की उपलब्धियों एवं उद्देश्यों के बारे में जानकर मुख्य वक्ता के रूप में विशेष रूप से उपस्थित रहे। यह सेमिनार का उद्घाटन उपस्थित गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया तथा महाविद्यालय के प्रिंसिपल डॉ.जितेंद्र भंगाले द्वारा सभी गणमान्य अतिथियों का स्मृति चिन्ह एवं पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया गया। सम्पूर्ण कार्यक्रम का संचालन प्रो.सूरज चौहानने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ.भूमि रावलने किया था। इस कार्यक्रम में पंजीकरण के लिए भारी भीड़ थी, लेकिन हॉल में बैठने की सीमित व्यवस्था के कारण कई छात्र पंजीकरण से वंचित रह गए। इस कार्यक्रम में उपस्थित अन्य अतिथियों में मेहसाणा स्थित म्यू. आर्ट्स एंड अर्बन साइंस कॉलेज के सेवानिवृत्त प्राचार्य डॉ. के.एम. पटेल एव स्पीकर डॉ.सनी शाह भी उपस्थित  थे।
इस सेमिनार के मुख्य अतिथि मगनभाई पटेलने अपने प्रासंगिक भाषण में कहा कि आज के यह सेमिनार में हमारे बीच डॉ.लालसिंघजी उपस्थित हैं, जिनके बारे में यदि मैं बोलने जाऊ तो समय भी कम पड़ेगा।प्रोजेक्टर द्वारा स्क्रीन पर प्रक्षेपित उनकी सुंदर और विस्तृत प्रस्तुति ने हम सभी को ऐसा महसूस कराया जैसे हम वहां मौजूद थे। आज हमारे देश में फार्मा उद्योगों द्वारा निर्मित दवाइयां मेडिकल स्टोर्स पर कई गुना ज़्यादा दाम पर बेची जाती हैं। हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्रभाई मोदी साहबने वर्ष 2008 में ‘प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना’ लाकर देश के गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए दवाओं पर होनेवाले खर्च को बेहद कम करके जो क्रांति लाये है, जिसे पूरी दुनिया ने देखा है। आज देश भर में 16,400 से अधिक जन औषधि केंद्र संचालित हैं, जहां प्रतिदिन लगभग 2110 जेनेरिक दवाइयां और 315 से अधिक सर्जिकल उत्पाद बेचे जा रहे हैं,जिसमे लगभग 35% केन्द्र महिलाओं द्वारा संचालित हैं। इस योजना से पिछले 10 वर्षों में 5600 करोड़ से अधिक की बिक्री के माध्यम से 30,000 करोड़ से अधिक सार्वजनिक धन की बचत हुई है।जन औषधि दवाओं की कीमतें खुले बाजार में मिलने वाली ब्रांडेड दवाओं की कीमतों से 50% से 90% तक कम हैं। आज भी देश में कई जगहों पर नकली दवाइयां बिक रही हैं और डॉक्टरों के पर्चे भी आम आदमी के लिए पढ़ने लायक नहीं होते।
मगनभाई पटेलने इस कार्यक्रम में डॉ.लालसिंघजी की प्रस्तुति देखने के बाद अपने भाषण में आगे कहा कि अंदमान और निकोबार द्वीप समूह भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश है जिसमें 572 द्वीप हैं, जिनमें से केवल 38 द्वीपों पर ही लोग रहते हैं। ये द्वीप दो मुख्य समूहों, उत्तरी अंदमान और दक्षिणी निकोबार में विभाजित हैं। इस क्षेत्र की राजधानी और सबसे बड़ा शहर पोर्ट ब्लेयर चेन्नई से करीब 1,190 किलोमीटर और भारत की मुख्य भूमि कोलकाता से 1,255 किलोमीटर दूर स्थित है।ये द्वीप पश्चिम में बंगाल की खाड़ी और पूर्व में अंदमान सागर के बीच स्थित हैं।अंदमान के लोग विलुप्त हो चुकी अंदमानी भाषाएं बोलते हैं, जबकि निकोबार द्वीप समूह के लोग शोम्पन भाषा बोलते हैं। दोनों द्वीप बाहरी लोगों के साथ संवाद करने से इनकार करते हैं। अगर इन द्वीपों पर शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो इन द्वीपों पर पहली प्राथमिक स्कुल वर्ष 1881 में स्थापित कि गई,जिसके बाद समय के साथ वर्ष 2023 तक 428 स्कूले शुरू हुई,जिनमें कुल 86,081 छात्रों का नामांकन है। अंदमान लॉ कॉलेज राज्य का एकमात्र लॉ कॉलेज है, जिसकी स्थापना वर्ष 2016 में हुई थी, जबकि अंदमान और निकोबार द्वीप समूह आयुर्विज्ञान संस्थान की स्थापना वर्ष 1963 में हुई थी। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार द्वीपों की जनसंख्या 3,80,581 थी, जिसमें से 53.3% पुरुष और 46.7% महिलाएं थीं, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक 1,000 पुरुषों पर 878 महिलाएं थीं। अंदमान और निकोबार द्वीप समूह में 69.5% लोग हिंदू , 21.7% ईसाई और 8.5% इस्लाम धर्म के हैं। इन द्वीपों के भौगोलिक क्षेत्र के बारे में जानकारी देते हुए मगनभाई पटेलने आगे कहा कि यहां रहनेवाले आदिवासी और ग्रामीण लोगों का प्रकृति के साथ घनिष्ठ संबंध है और वे पूरी तरह से वन उत्पादों पर निर्भर होते हैं। अंदमान और निकोबार द्वीप समूह के आदिवासी लोगों की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में औषधीय पौधोंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन द्वीपों की जनजातियां दवा, भोजन और ईंधन के लिए आंशिक या पूर्ण रूप से वन संसाधनों पर निर्भर रहती हैं। अंदमान और निकोबार के जंगलों में ‘पड़ौक’ वृक्ष को राज्यवृक्ष के रूप में जाना जाता है और इसे अंदमान का गौरव भी कहा जाता है। ब्रिटिश शासन के दौरान, इस पेड़ की लकड़ी को अंदमान के जंगलों से निकालकर ब्रिटेन मे निर्यात किया जाता था और पडौक की लकड़ी का उपयोग बड़े पैमाने पर बर्किंगहाम पैलेस के निर्माण में किया गया है। इन द्वीपों में गन्ने की करीब 18 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनका उपयोग राफ्टिंग, घर निर्माण, टोकरी बनाने एव माल परिवहन के लिए डंडे के रूप में किया जाता है। अंदमान और निकोबार द्वीप समूह के आदिवासी लोग गन्ने के पौधे के कुछ हिस्सों का उपयोग विभिन्न बीमारियों (त्वचा रोग, पेट दर्द और परजीवी रोग आदि) के इलाज के लिए करते हैं।आदिवासी और स्थानीय लोग छत्ते से शहद इकट्ठा करते समय शरीर पर पत्तियों का लेप लगाते हैं। मगनभाई पटेलने डॉ.लालसिंघजी की 96 स्लाइडों की प्रस्तुतीकरण देखने के बाद अपने भाषण के अंत में कहा कि जिस प्रकार देश की सीमाओं पर सेना के कमांडर और जवान अपनी जान जोखिम में डालकर देश की रक्षा करते हैं,उसी प्रकार डॉ.लालसिंघ जैसे वैज्ञानिक अंदमान-निकोबार जैसे द्वीपों पर अनुसंधान एवं विकास (R&D) कार्य कर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं, जिसके कारण भारत आज पुरे विश्व मे अपनी पहचान स्थापित कर चुका है और विकसित भारत के पथ पर आगे बढ़ रहा है।
इस कार्यक्रम में मगनभाई पटेल के भाषण के बाद कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डॉ.लालसिंघने प्रोजेक्टर के माध्यम से स्क्रीन पर अंदमान और निकोबार के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि अंदमान और निकोबार द्वीप समूह का वनस्पति इतिहास 1791 से शुरू हुआ है। जब कर्नल कायड़ने द्वीपों का दौरा किया और कलकत्ता के रॉयल बोटेनिक गार्डन में कुछ अंदमानी पौधों को पेश किया, तो बाद में उसका वर्णन रॉक्सबर्ग के फ्लोरा ऑफ इंडिया (1850) में किया गया। कर्नल रॉबर्ट कायड़ (1746-1793) भारत में तैनात एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी थे। उन्हें बागवानी में रुचि थी और उन्होंने वनस्पति उद्यान का विचार प्रस्तुत किया और अंततः 1787 में कलकत्ता में एक वनस्पति उद्यान की स्थापना की गई, जिसे रॉयल बोटेनिक गार्डन,कलकत्ता (अब ए.जे.सी.बोज़ भारतीय बोटेनिक गार्डन) के नाम से जाना जाता है।उनका विचार सूखे को रोकने के लिए भोजन के वैकल्पिक स्रोतों को खोजने में मदद करना तथा ऐसे पौधों की पहचान करना था जो व्यावसायिक रूप से भी उपयोगी हो सकें। उन्हें उद्यान का अधीक्षक नियुक्त किया गया और उन्होंने अंदमान और निकोबार द्वीप समूह सहित विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से एकत्रित सामग्री से उद्यान को समृद्ध किया।वर्ष 1839 में रूसी भूविज्ञानी हेल्फरने खनिज संसाधनों की जांच के उद्देश्य से द्वीपों का दौरा किया और व्यापक वनस्पति संग्रह भी किया, लेकिन उत्तरी अंदमान  में आदिवासी लोगों द्वारा उनकी हत्या के बाद, दुर्भाग्यवश द्वीपों को उनके तेनासेरिम पौधों के साथ मिला दिया गया और सभी को ‘तेनासेरिम और अंदमान’ के रूप में लेबल किया गया, जिसके परिणामस्वरूप बहुत भ्रम पैदा हुआ। कुर्ज़, पैरिश, प्रैन, किंग और रोजर्स जैसे वनस्पतिशास्त्रियों ने 1866 और 1903 के बीच कुछ वनस्पति अध्ययन किए, जिससे पार्किंसन (1923) को ‘द फॉरेस्ट फ्लोरा ऑफ द अंडमान आइलैंड्स’ प्रकाशित करने में मदद मिली। इसके बाद विभिन्न कार्यकर्ताओं द्वारा समय-समय पर अंदमान और निकोबार द्वीप समूह की वनस्पतियों का अन्वेषण और अभिलेखन किया गया। समग्र मानवसृष्टि का कृषि, बागवानी और औषधीय प्रयोजनों के लिए देशी पौधों के उपयोग का एक लंबा इतिहास रहा है। स्वदेशी लोगों की पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल पद्धतियों को मानव स्वास्थ्य की देखभाल का आधार माना जाता है, जिससे चिकित्सा की अन्य सभी प्रणालियां उभरी और विकसित हुई हैं। कृषि, बागवानी,व्यावसायिक फसलों के आनुवंशिक सुधार के लिए द्वीपों में कई आनुवंशिक संसाधन उपलब्ध हैं। द्वीपों के आनुवंशिक संसाधनों में व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण मूल्यवान लकड़ी, गन्ना, बांस आदि भी शामिल हैं।इन द्वीपों से बांस की लगभग 40 प्रजातियां दर्ज की गई हैं, जिनमें बम्बुसा आर्टा, बी. ऑरिकुलाटा, सेफलोस्टैचियम फ्लेवेसेंस, डेंड्रोकैलेमस एस्पर, डी. कैलोस्टैचिस, डिनोक्लोआ निकोबारिका, स्किज़ोस्टैचियम एंडामैनिकम,एस.कैल्पोंगियानम, एस. कुर्जी, एस. रोजर्सी, एस. डुलुओआ, एस. डुलुआ, एस. एसपीपी. और एस.एसपीपी. शामिल हैं जिनका उपयोग ऊंचे घर के निर्माण के लिए किया जाता है। अंदमान और निकोबार द्वीप समूहो में की वनस्पति में पर्यावरणीय और आर्थिक दोनों दृष्टि से अपार संभावनाएं हैं। तटीय वनस्पति तटीय क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिति को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।तटीय पारिस्थितिकी तंत्र भी अनेक पारिस्थितिक भूमिकाएं निभाते हैं, जिनमें तटीय संरक्षण से लेकर भूमि-आधारित गतिविधियों और प्रदूषण से बचाव के लिए बफर जोन तथा अनेक समुद्री प्रजातियों के लिए भोजन, प्रजनन और नर्सरी क्षेत्र शामिल हैं। तटीय वनस्पति का सबसे महत्वपूर्ण घटक कई द्वीपों पर फैले मैंग्रोव हैं।कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 11.6% भाग पर फैले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के मैंग्रोव मुख्य भूमि पर सुंदरवन और गुजरात के बाद भारत में तीसरे सबसे बड़े मैंग्रोव हैं। अन्य परियोजना रिपोर्टों में समुद्री शैवाल और समुद्री घास का भी उल्लेख किया गया था, इसलिए जो पहलू उनमें शामिल नहीं थे, उन्हें इस रिपोर्ट में प्रस्तुत किया गया है। अनुमानित शैवाल विविधता का लगभग 65.3% प्रजातियों के स्तर तक आंका जा चुका है। लेकिन उनके स्थानिक वितरण के बारे में हमारी जानकारी में अभी भी कुछ कमियां हैं।कोरलीन शैवाल सबसे कम ज्ञात समूह हैं। द्वीपों पर क्रस्टोज़ कोरलीन की कुल 16 प्रजातियां और आर्टिकुलेटेड कोरलीन की 8 प्रजातियां पाई जाती हैं।
डॉ.लालसिंघने अपने भाषण का समापन करते हुए कहा कि 26 दिसंबर,2004 को आई विनाशकारी सुनामी ने द्वीपों के कई समुद्री शैवाल आवासों को नष्ट कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप समुद्री शैवाल जीवों में गुणात्मक और मात्रात्मक गिरावट आई। भारत में मैंग्रोव वनस्पति 41 वंशों और 29 परिवारों के अंतर्गत लगभग 59 प्रजातिया पाई जाती है। निकोबारी झोपड़ियां कैलामस अंडमानिकस, लिकुआला पेल्टाटा और स्थानीय बांस की पत्तियों से बनाई जाती हैं। हाल ही के एक रिपोर्ट अनुसार आक्रामक आर्थ्रोपोड शाकाहारी जीव इन द्वीपों में साइकैड आबादी के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं।द्वीपों में समुद्री, मैंग्रोव और अंतर्देशीय वन पारिस्थितिकी तंत्र जैसे तीन प्रकार के अत्यंत नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र हैं। इन द्वीपों के लोगों की आजीविका की सुरक्षा करते हुए इस अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करना एक बड़ी चुनौती है, यह कहकर डो.लालसिंघजीने अपनी प्रस्तुतिकरण का समापन किया जिसे उपस्थित सभी लोगोंने तालियों की गड़गड़ाहट से स्वागत किया।डो.लालसिंघजीने उपस्थित छात्रों को अंदमान-निकोबार का दौरा करने के लिए आमंत्रित भी किया जिसे उपस्थित सभी लोगोने सराहा। 
इस राष्ट्रिय सेमिनार के अंत में डॉ.भूमि रावलने महाविद्यालय के प्रमुख एवं मेनेजिंग ट्रस्टी मगनभाई पटेल, मुख्यवक्ता डॉ.लालसिंघजी एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया और कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।
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