प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान कि “भारत पर दबाव अवश्य बढ़ेंगे, लेकिन हम झुकेंगे नहीं” वस्तुतः एक आत्मविश्वासी और दृढ़ कूटनीतिक संदेश था। किंतु उसी के कुछ ही घंटों बाद अमेरिका द्वारा भारत के विरुद्ध व्यापार युद्ध की घोषणा कर देना यह दर्शाता है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में आत्मनिर्भरता और असहमति की कीमत तुरंत चुकानी पड़ती है।
हम आपको बता दें कि अमेरिका ने 50% शुल्क लगाकर वस्तुतः भारत को आर्थिक रूप से दबाने का प्रयास किया है। सवाल यह है कि जब चीन जैसे बड़े आयातक को नजरअंदाज किया गया और भारत को निशाना बनाया गया, तो यह निर्णय केवल आर्थिक न होकर राजनीतिक और रणनीतिक है। यह भारत के लिए स्पष्ट संकेत है कि वैश्विक मंच पर स्वतंत्र नीति अपनाने की चुनौती आसान नहीं होती। परंतु, इतिहास साक्षी है कि भारत ने जब-जब दबावों का सामना किया है, तब-तब उसने वैकल्पिक मार्ग खोज निकाला है। यह कदम भारतीय उद्योग और नीति-निर्माताओं के लिए कठिनाइयों के साथ-साथ अवसर भी लेकर आया है- नए बाज़ारों की तलाश, घरेलू उपभोग को और सशक्त करने तथा वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में नई भूमिका गढ़ने की दिशा में।
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देखा जाये तो अमेरिकी कदम भले ही अल्पकालिक अस्थिरता उत्पन्न करे, लेकिन दीर्घकाल में यह भारत की आर्थिक आत्मनिर्भरता की परीक्षा होगी। और यदि भारत इस चुनौती को रणनीतिक दृष्टि से अवसर में बदल सके, तो यह व्यापार युद्ध भारत की दीर्घकालिक शक्ति का परिचायक बन सकता है।
हम आपको बता दें कि अमेरिका ने भारत के खिलाफ एक सीमित व्यापार युद्ध की घोषणा की है। अमेरिकी Department of Homeland Security ने अधिसूचना जारी करते हुए कहा कि अब भारत से आयातित अधिकांश वस्तुओं पर 50 प्रतिशत शुल्क (25% कर और 25% दंड) लगाया जाएगा। अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि यह कदम रूस से जुड़े “खतरों” के मद्देनज़र उठाया गया है। अधिसूचना में यह स्पष्ट किया गया है कि भारत प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से रूसी तेल का आयात कर रहा है और यही वजह है कि राष्ट्रपति आदेश के तहत भारत पर ये अतिरिक्त शुल्क लगाए जा रहे हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि चीन भारत से कहीं अधिक रूसी तेल आयात करता है, लेकिन उस पर कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की गई। इससे यह संकेत मिलता है कि डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन विशेष रूप से भारत को निशाना बना रहा है।
हम आपको बता दें कि विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप के इस फैसले के पीछे कई कारण हो सकते हैं। जैसे- भारत से होने वाले तेल-राजस्व का रूस के युद्ध प्रयासों में योगदान। BRICS समूह द्वारा अमेरिकी डॉलर की प्रभुता को चुनौती देने की कोशिश। भारत द्वारा ट्रंप की उस आत्म-घोषित भूमिका को मान्यता न देना, जिसमें वह भारत-पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने का दावा करते रहे हैं। इन कारणों को देखते हुए विशेषज्ञ मानते हैं कि लगाए गए ये शुल्क असंतुलित और प्रतिशोधात्मक स्वरूप के हैं। ट्रंप स्वयं और व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलिन लीविट ने इन्हें “sanctions” (प्रतिबंध) कहा है।
यह शुल्क 28 अगस्त की सुबह (भारतीय समयानुसार) से लागू होंगे। इसका सीधा असर लगभग भारत के 87.3 अरब डॉलर के निर्यात पर पड़ेगा, जिसमें से आधे पर अब 50% कर लगेगा। सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में वस्त्र एवं परिधान, रत्न एवं आभूषण, समुद्री उत्पाद (मुख्यतः झींगा) और चमड़े के उत्पाद आदि शामिल हैं। हालाँकि दवा उद्योग और इलेक्ट्रॉनिक्स (जैसे iPhone) को इससे छूट दी गई है। फिर भी यह भारतीय निर्यातकों को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर देगा क्योंकि पड़ोसी देशों से आने वाले उत्पादों पर केवल 10–25% शुल्क लगता है।
विश्लेषकों के अनुसार, इस कदम से भारत की जीडीपी पर 0.2% से 1% तक का नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अनुमान है कि $7 से $25 अरब तक का नुकसान हो सकता है, जो MSMEs (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों) को सबसे ज्यादा प्रभावित करेगा। निर्यात में गिरावट के कारण बेरोजगारी और छंटनी की स्थिति भी बन सकती है। हालाँकि भारत की अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा घरेलू उपभोग पर आधारित है और अमेरिका को होने वाला निर्यात केवल 2–2.5% जीडीपी के बराबर है। इस कारण समग्र अर्थव्यवस्था पर चोट सीमित रहेगी, लेकिन विशेष निर्यातक क्षेत्रों को गहरा आघात पहुँचना लगभग निश्चित है।
बहरहाल, अमेरिका का यह निर्णय केवल आर्थिक नहीं बल्कि गहरे राजनीतिक संकेतों से भी जुड़ा हुआ है। एक ओर यह रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में वैश्विक शक्ति समीकरणों को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह भारत-अमेरिका संबंधों में संभावित तनाव का द्योतक भी है। आने वाले महीनों में यह देखा जाएगा कि भारत इस चुनौती का सामना कैसे करता है— क्या वह नए निर्यात बाज़ार तलाश कर स्थिति को संभालेगा या अमेरिका के साथ कूटनीतिक वार्ता के माध्यम से समाधान निकालेगा।