अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के खिलाफ एक बार फिर बड़े पैमाने पर प्रोटेस्ट देखने को मिला है। शनिवार को देश के सभी 50 राज्यों में हजारों लोग सड़कों पर उतरे और इसे ‘नो किंग्स’ मूवमेंट का नाम दिया गया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप लोकतांत्रिक मर्यादाओं को तोड़ रहे हैं और खुद को एक राजा की तरह पेश कर रहे हैं। बता दें कि इस विरोध के दौरान वाशिंगटन डीसी से लेकर न्यूयॉर्क, लॉस एंजिलिस और मिडवेस्ट के छोटे शहरों तक एक साथ 2,500 से अधिक रैलियों का आयोजन किया गया है।
सैन फ्रांसिस्को के ओशन बीच पर सैकड़ों लोगों ने अपने शरीर से ‘नो किंग!’ लिखकर अपना संदेश दिया। कई प्रदर्शनकारियों ने खुद को स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की तरह तैयार किया। मौजूद जानकारी के अनुसार, ट्रंप की नीतियों को तानाशाही प्रवृत्ति बताते हुए लोग मीडिया पर हमलों, राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने और प्रवासियों के खिलाफ सख्त कदमों का विरोध कर रहे हैं। यह विरोध ऐसे समय में हुआ है जब सरकारी शटडाउन तीसरे सप्ताह में पहुंच चुका है और फेडरल एजेंसियों के कामकाज पर इसका असर पड़ रहा है।
गौरतलब है कि प्रदर्शनकारी केवल शटडाउन का विरोध नहीं कर रहे, बल्कि उन फैसलों का भी जिनमें प्रशासन ने फेडरल फोर्सेज और नेशनल गार्ड को अमेरिकी शहरों में उतारा था। प्रवासी समुदायों में छापों जैसी कार्रवाई को लोग ‘फेडरल पावर का दुरुपयोग’ बता रहे हैं। रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि इस तरह की नीतियां अमेरिकी लोकतंत्र की संस्थागत संरचना के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।
इसी बीच ट्रंप फ्लोरिडा स्थित अपने मार-ए-लागो रिज़ॉर्ट में थे और उन्होंने फॉक्स न्यूज को दिए इंटरव्यू में कहा कि “मैं कोई किंग नहीं हूं।” उनके कैंपेन अकाउंट ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो भी पोस्ट किया जिसमें ट्रंप को ताज पहने राजा की तरह दिखाया गया था। दूसरी ओर रिपब्लिकन नेताओं ने इन प्रदर्शनों को ‘हेट अमेरिका रैली’ बता दिया और आरोप लगाया कि यह कम्युनिस्ट और मार्क्सिस्ट समूहों का एजेंडा है। स्पीकर माइक जॉनसन ने कहा कि डेमोक्रेटिक नेता अपने लिबरल धड़े के दबाव में हैं और इसी कारण सरकार को खोलने के बजाय लगातार यह टकराव जारी रखे हुए हैं।
अमेरिका का यह लोकतांत्रिक विरोध एक बार फिर बताता है कि वहां नागरिक अधिकारों, संवैधानिक संतुलन और फेडरल पावर की सीमाओं पर बहस कितनी गहरी है और दोनों पक्ष इस मुद्दे पर कितने ध्रुवीकृत हो चुके हैं। प्रदर्शनकारियों का संदेश साफ है कि लोकतंत्र में किसी भी नेता को ‘नो किंग्स, नो क्राउन’ की सीमा नहीं लांघनी चाहिए, और इसी चेतावनी के साथ उनकी यह आवाज देशभर में गूंज रही है।