Thursday, December 25, 2025
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UP bypolls: पुलिसकर्मियों पर समाजवादी पार्टी ने लगाया आरोप, एक्शन में चुनाव आयोग

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उत्तर प्रदेश में नौ सीटों पर हो रहे उपचुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी ने कई जगहों पर पुलिसकर्मियों पर मतदाताओं को धमकाने का आरोप लगाया है। चुनाव आयोग ने एसपी की शिकायतों पर संज्ञान लेते हुए सात पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है। जानकारी के मुताबिक, सीसामऊ में दो इंस्पेक्टर अरुण सिंह और राकेश नादर को सस्पेंड कर दिया गया है। उन पर मतदाताओं के साथ दुर्व्यवहार करने और चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप है। 
 

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पांच पुलिसकर्मियों के निलंबन पर कानपुर पुलिस कमिश्नर अखिल कुमार ने कहा कि हमें जानकारी मिली थी कि कुछ पुलिसकर्मी चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। कानपुर के पुलिस आयुक्त अखिल कुमार ने कहा कि समाजवादी पार्टी के ट्वीट का संज्ञान लेने के बाद निलंबन किया गया। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के मीरापुर में स्थित ककरौली पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) को निलंबित करने की मांग की, उन पर मतदाताओं को बल और रिवॉल्वर के बल पर धमकाने और उन्हें आबादी वाले राज्य में उपचुनावों में मतदान करने से रोकने का आरोप लगाया। 
 

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कथित घटना का एक वीडियो साझा करते हुए, अखिलेश यादव ने चुनाव आयोग (ईसी) से मतदान प्रक्रिया में बाधा डालने के लिए पुलिसकर्मी को तुरंत निलंबित करने का आग्रह किया। वीडिया साझा करते हुए अखिलेश ने पोस्ट किया कि इब्राहीमपुर में वोट डालने से रोकने के लिए महिलाओं के साथ अभद्र व्यवहार एवं भाषा का प्रयोग करनेवाले SHO के ख़िलाफ़ तत्काल निलंबन की कार्रवाई हो। एक और पोस्ट में उन्होंने कहा कि मीरापुर के ककरौली थाना क्षेत्र के SHO को चुनाव आयोग तुरंत निलंबित किया जाए, क्योंकि वो रिवॉल्वर से धमकाकर वोटर्स को वोट डालने से रोक रहे हैं। समाजवादी पार्टी प्रमुख द्वारा साझा किए गए कथित वीडियो में सुरक्षा गार्ड और हेलमेट पहने एक पुलिस अधिकारी को मीरापुर में कुछ महिला मतदाताओं पर अपनी सर्विस बंदूक तानते हुए दिखाया गया है।

क्या बढ़ता प्रदूषण भी मोटापे का कारण बन सकता है?

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मोटापे और वायु प्रदूषण के बीच संबंध: बढ़ते प्रदूषण के कारण न केवल सांस लेने की समस्या बल्कि मोटापा भी आजकल एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। प्रदूषण हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को कई तरह से प्रभावित करता है और यह शरीर के हार्मोनल संतुलन को भी प्रभावित कर सकता है। प्रदूषण में मौजूद हानिकारक कण और रसायन शरीर में सूजन बढ़ा सकते हैं, जिससे अंततः वजन बढ़ सकता है। इसके अलावा, बढ़ते प्रदूषण से शारीरिक गतिविधि में कमी, तनाव और नींद संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं, जो मोटापे का प्रमुख कारण हैं। इस लेख में हम समझेंगे कि प्रदूषण हमारे शरीर को कैसे प्रभावित करता है और यह मोटापे का कारण कैसे बन सकता है, साथ ही इस समस्या से निपटने के उपायों के बारे में भी बात करेंगे। इस विषय पर बेहतर जानकारी के लिए हमने डॉ. से संपर्क किया. सीमा यादव से बात हुई.

मोटापा और वायु प्रदूषण के बीच संबंध

वायु प्रदूषण में सूक्ष्म कण पीएम 2.5 और अन्य हानिकारक रसायन होते हैं, जो न केवल हमारे श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि शरीर के भीतर सूजन भी बढ़ाते हैं। ऐसे कई अध्ययन हैं जो बताते हैं कि इन हानिकारक कणों के शरीर में प्रवेश से इंसुलिन प्रतिरोध हो सकता है। यह स्थिति शरीर के चयापचय को धीमा कर देती है और शरीर में अतिरिक्त वसा जमा होने की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है। इसके अलावा प्रदूषण शरीर में कोर्टिसोल जैसे तनाव हार्मोन का स्तर भी बढ़ा देता है, जिससे वजन बढ़ने लगता है।

शारीरिक गतिविधि में कमी

प्रदूषण के कारण लोग बाहर कम निकलते हैं और शारीरिक गतिविधि कम हो जाती है। जब लोग प्रदूषण से बचने के लिए बाहर कम निकलते हैं या घर के अंदर ही रहते हैं तो उनकी कैलोरी बर्न करने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। इस प्रकार, कम शारीरिक गतिविधि और गतिहीन आदतों से वजन बढ़ सकता है।

तनाव और अनिद्रा

प्रदूषण न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालता है। जब हवा में प्रदूषण की मात्रा बढ़ती है तो इससे तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याएं हो सकती हैं। यह मानसिक स्थिति शरीर के हार्मोनल संतुलन को बिगाड़ देती है और मोटापे का कारण बन सकती है। इसके अलावा, प्रदूषण नींद की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकता है, जिससे शरीर की रिकवरी में बाधा आती है और वजन बढ़ने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।

बढ़ते प्रदूषण में मोटापे से बचने के लिए क्या करें?

  • मोटापे और प्रदूषण से बचने के लिए घर पर ही हल्का व्यायाम या योग करें।
  • प्रदूषण से बचने के लिए घर में एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें और बाहर जाने से पहले हवा की गुणवत्ता जांच लें।
  • फल, सब्जियां और ओमेगा-3 फैटी एसिड जैसे एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी खाद्य पदार्थों से भरपूर खाद्य पदार्थ खाएं।
  • प्रदूषण के कारण होने वाली सूजन और शरीर में जमा विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए खूब पानी पियें। यह मेटाबॉलिज्म को तेज करता है और वजन घटाने में मदद करता है।
  • तनाव कम करने के लिए श्वास संबंधी व्यायाम और ध्यान करें।
  • शरीर को प्रदूषण से बचाने के लिए विटामिन ए, सी और ई से भरपूर खाद्य पदार्थों सहित स्वस्थ आहार लें। ये तत्व शरीर को हानिकारक प्रदूषण कणों से लड़ने और वजन संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।
  • प्रदूषण को पूरी तरह से नियंत्रित करना मुश्किल है, लेकिन हम अपनी जीवनशैली में सुधार करके इससे होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं। इससे न केवल मोटापा नियंत्रण में रहता है बल्कि अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से भी बचाव होता है।

Honeymoon Destinations: दिसंबर में हनीमून के लिए जोड़ों के पसंदीदा स्थान, सूची सहेजें

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हनीमून डेस्टिनेशन: शादी के बाद हनीमून पर जाने का रिवाज नया नहीं है। क्योंकि वह विदेशों में अधिक लोकप्रिय थे। लेकिन जैसे-जैसे लोगों की संपत्ति बढ़ी है, लोग शादी के बाद हनीमून पर जमकर खर्च करने लगे हैं। देखा जाए तो हनीमून भी शादी जितना ही जरूरी है, क्योंकि यह नए जोड़े के लिए एक-दूसरे को समझने का अच्छा मौका होता है। लेकिन शादी के बाद एक अच्छी लोकेशन ढूंढना कपल्स के लिए एक बड़ा काम हो जाता है। क्योंकि वह किसी भी हालत में अपना सफर खराब नहीं करना चाहते. तो ऐसे लोगों के लिए हम कुछ ऐसी जगहों की लिस्ट लेकर आए हैं, जहां जाकर आप निराश नहीं होंगे।

अंडमान निकोबार

अंडमान और निकोबार द्वीप समूह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। अगर आप हिमाचल और उत्तराखंड जैसी जगहों पर पैसे खर्च नहीं करना चाहते हैं तो शांत पानी, सफेद रेत और हरियाली वाले इस आइलैंड को अपना हनीमून डेस्टिनेशन बनाएं। यह जगह हनीमून मनाने वालों के बीच काफी लोकप्रिय है। यहां स्कूबा डाइविंग और स्नॉर्कलिंग जैसी गतिविधियां भी हैं।

पांडिचेरी

यह जगह भारत का सबसे शानदार और छिपा हुआ हनीमून डेस्टिनेशन माना जाता है। है इसे ‘द लिटिल पेरिस’ के नाम से भी जाना जाता है। यह हमारे अंदर फ्रांसीसी संस्कृति को जागृत करता है। पेड़ों से घिरी सड़कें, विला, शांत समुद्र तट और अद्भुत दुकानों की सुंदरता आपका दिल जीत लेगी। हनीमून के लिए पांडिचेरी एक आदर्श जगह है। अगर आप कम भीड़-भाड़ वाली जगह पर जाना चाहते हैं तो यहां जाने का प्लान बना सकते हैं। यह देश की सबसे बेहतरीन रोमांटिक जगहों में से एक है।

गोवा

जब हनीमून डेस्टिनेशन की बात आती है तो उसमें गोवा का नाम जरूर शामिल होता है। गोवा कपल्स का पसंदीदा राज्य है। गोवा उन लोगों के लिए बिल्कुल सही है जो कम बजट में विदेश में मौज-मस्ती करना चाहते हैं। यहां आपको सुनहरे समुद्र तट, जीवंत संस्कृति और बजट-अनुकूल होटल आसानी से मिल जाएंगे। यहां बजट अनुकूल होम स्टे की भरमार है।

कोडईकनाल

जो लोग तमिलनाडु में कोडाइकनाल जैसे शांत हनीमून डेस्टिनेशन की तलाश में हैं, वे निश्चित रूप से यहां आएंगे। यह हरे-भरे पश्चिमी घाट के बीच बसा एक शांतिपूर्ण हिल स्टेशन है। यह स्थान दक्षिण भारत में सबसे अधिक मांग वाले हिल स्टेशनों में से एक माना जाता है। जोड़े शांत कोडईकनाल झील पर हाउसबोट में रात बिताने के अपने सपने को पूरा कर सकते हैं।

खंडाला

खंडाला महाराष्ट्र राज्य के सबसे खूबसूरत पर्यटक आकर्षणों में से एक है। दिसंबर में जहां लोग शिमला-मनाली जैसी जगहों पर जाते हैं, वहीं शांति चाहने वाले लोग खंडाला में अपना हनीमून मनाने की योजना बनाते हैं। यहां आप कुने फॉल्स, भाजे बौद्ध गुफाएं, हिम्मुक स्टेशन, लोहागढ़ किला, राजमाची किला देख सकते हैं।

UP bypolls: पुलिसकर्मियों पर समाजवादी पार्टी ने लगाया आरोप, एक्शन में चुनाव आयोग

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उत्तर प्रदेश में नौ सीटों पर हो रहे उपचुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी ने कई जगहों पर पुलिसकर्मियों पर मतदाताओं को धमकाने का आरोप लगाया है। चुनाव आयोग ने एसपी की शिकायतों पर संज्ञान लेते हुए सात पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है। जानकारी के मुताबिक, सीसामऊ में दो इंस्पेक्टर अरुण सिंह और राकेश नादर को सस्पेंड कर दिया गया है। उन पर मतदाताओं के साथ दुर्व्यवहार करने और चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप है। 
 

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अमेरिका को चुनौती, भारत को टेंशन! Air Show के जरिए चीन ने किया अत्याधुनिक सैन्य तकनीक का प्रदर्शन

चीन ने दक्षिणी प्रांत गुआंग्डोंग के ज़ुहाई में  द्विवार्षिक चीन अंतर्राष्ट्रीय विमानन और एयरोस्पेस प्रदर्शनी में लड़ाकू जेट और मिसाइलों सहित कई नए हथियारों का प्रदर्शन किया। सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, 12-17 नवंबर तक चलने वाली प्रदर्शनी में लगभग 600,000 विजिटर्स और 280 बिलियन युआन या 39 बिलियन डॉलर के ऑर्डर मिले। एयर शो में चीन के जिन हथियारों ने ध्यान खींचा है, उनके बारे में हम यहां बता रहे हैं।

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 अत्याधुनिक सैन्य तकनीक का प्रदर्शन 
J35-A (स्टील्थ): यह 2017 के J-20 के बाद चीन का दूसरा स्टील्थ फाइटर है और यह कम्युनिस्ट राज्य को अमेरिका के अलावा एकमात्र अन्य देश बनाता है जिसके पास दो प्रकार के स्टील्थ जेट हैं।
J35-A हवाई युद्ध अभियानों को अंजाम देगा, जमीन और समुद्री दोनों लक्ष्यों पर “सटीक” हमले करेगा और सटीक-निर्देशित मिसाइलें ले जाएगा।
HQ-19 (मिसाइल इंटरसेप्टर): यह एक नई पीढ़ी, सतह से हवा में मार करने वाली एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली है। HQ-19 को 8*8 उच्च गतिशीलता वाले वाहन पर स्थापित किया गया है और इसमें छह इंटरसेप्टर हैं।
जेटैंक: विशाल जेटैंक मदरशिप ड्रोन छह टन तक का पेलोड ले जा सकता है और इसके पंखों का फैलाव 25 मीटर (82 फीट) है। इसमें मिसाइलों और बमों के लिए आठ बाहरी हार्डपॉइंट हैं, साथ ही एक जल्दी से बदलने योग्य मिशन मॉड्यूल भी है, और यह छोटे ड्रोन ले जाएगा।

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चीन के एयरशो में स्टेल्थ ड्रोन शिप ‘ओर्का’ भी देखने को मिला है। ओर्का कहा जाने वाला JARI-USV-A एक हाई-स्पीड स्टेल्थ मानव रहित लड़ाकू पोत है। इसे 500 टन के पोत को रडार को दरकिनार करते हुए काम करने के लिए डिजाइन किया गया है। इसमें एक ट्रिमरन संरचना है, जो इसे उबड़-खाबड़ समुद्रों में स्थिरता प्रदान करती है। ओर्का 4,000 समुद्री मील की दूरी के साथ 40 समुद्री मील तक की गति से काम कर सकता है।

Russia Ukraine War: कीव से अबतक की सबसे बड़ी खबर, अमेरिकी दूतावास किया गया बंद

रूस-यूक्रेन युद्ध में वृद्धि के बीच संभावित महत्वपूर्ण हवाई हमले की जानकारी मिलने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने कीव में अपना दूतावास बंद कर दिया। अमेरिकी विदेश विभाग के कांसुलर मामलों के विभाग ने कीव में अमेरिकी दूतावास की वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान में कहा कि अत्यधिक सावधानी बरतते हुए, दूतावास बंद कर दिया जाएगा और दूतावास के कर्मचारियों को आश्रय लेने का निर्देश दिया जा रहा है।

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इससे एक दिन पहले ही रूस ने कहा था कि ब्रांस्क क्षेत्र में एक हथियार गोदाम पर हुए यूक्रेनी हमले में अमेरिका निर्मित लंबी दूरी की मिसाइलों का इस्तेमाल किया गया था। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन को अमेरिका निर्मित लंबी दूरी की मिसाइलों के उपयोग को हरी झंडी दी है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सितंबर में कहा था कि अगर पश्चिमी देश यूक्रेन को लंबी दूरी के हथियारों के साथ रूस के अंदर तक हमला करने की अनुमति देते हैं, तो ‘‘इसका मतलब यह होगा कि नाटो देश, अमेरिका और यूरोपीय देश रूस के साथ युद्ध में शामिल हैं।

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विश्व की 20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के नेता एक दिन पहले संयुक्त घोषणापत्र जारी करने के बाद, मंगलवार को संक्षिप्त बैठक के लिए फिर एकत्र हुए। घोषणापत्र में भुखमरी से लड़ने के लिए एक वैश्विक समझौते, युद्धग्रस्त गाजा के लिए अधिक सहायता और पश्चिम एशिया तथा यूक्रेन में शत्रुता को समाप्त करने का आह्वान किया गया है। संयुक्त वक्तव्य को समूह के सदस्यों का समर्थन किया, लेकिन इस पर पूर्ण सर्वसम्मति नहीं बन पाई। इसमें भविष्य में अरबपतियों पर वैश्विक कर लगाने और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के स्थायी सदस्य संख्या के विस्तार की अनुमति देने वाले सुधारों का भी आह्वान किया गया।

India Canda Relations Part 1| भारत कनाडा के रिश्तों का 100 सालों का इतिहास | Teh Tak

11600 किलोमीटर गूगल मैप्स पर सर्च करेंगे तो इतनी दूरी भारत और कनाडा के बीच निकलेगी। धरती की कुल परिधि की लगभग एक चौथाई दूरी। हवाई यात्रा के जमाने में ये दूरी भी एक दिन से कम वक्त में पूरी हो जाती है। लेकिन पिछले एक साल से हुए घटनाक्रम के चलते दोनों देशों के बीच जो खाई बनी है, उसे पाटने में अब सालों का वक्त लगेगा। हालिया घटनाक्रम के साथ ही आज हम भारत और कनाडा के 100 साल के इतिहास की तह तक लिए चलेंगे। 
शुरुआती दौर 
मॉर्डन हिस्ट्री की बात करेंगे तो भारत कनाडा रिश्तों की शुरुआत साल 1897 से आप मान सकते हैं। महारानी विक्टोरिया के डायमंड जुबली समारोह के लिए एक सिख सैनिक केसर सिंह वैंकउवर पहुंचे थे। कनाडा पहुंचने वाले सिखों का ये पहला जत्था था। उन्होंने कुछ सैनिकों के साथ कनाडा में बसने का फैसला किया और वे ब्रिटिश कोलंबिया में ही रुक गए। हालांकि कुछ सैनिकों को यहां के कठिन हालात खासतौर से बेहद ठंड रास नहीं आई। वे भारत लौट आए। उसी समय कुछ भारतीय कनाडा में जाकर बसने लगे थे। कुछ ही सालों में 5 हजार भारतीय ब्रिटिश कोलंबिया पहुंच गए, जिसमें से 90 फीसदी सिख थे। धीरे धीरे सिखों की संख्या में इजाफा हुआ। इस दौरान उन्हें नस्लभेद का सामना भी करना पड़ा।  
376 भारतीय सवार से भरा जहाज कनाडा क्यों पहुंचा 
साल 1914 में सिखों के साथ कनाडा में एक बड़ी घटना हुई। कोमामारोघाटा नाम का एक जहाज कनाडा के तट पर पहुंचा। जहाज पर 376 भारतीय सवार थे, जिनमें अधिकतर सिख थे। ये लोग 2 महीने तक जहाज पर रहे, लेकिन उन्हें उतरने नहीं दिया गया। यहां तक की खाना पानी भी उन लोगों तक मुश्किल से पहुंचा। अंत में ये लोग वापस लौटा दिए गए। कलकत्ता के तट पर जब ये जहाज पहुंचा तो अंग्रेजों ने गोली चला दी, जिसमें 28 लोग मारे गए। 
पंडित नेहरू ने किया कनाडा की संसद को संबोधित 
1947 में भारत आजाद हुआ और यहां से कनाडा संग उसके आधिकारिक रिश्तों की नींव पड़ी। 1949 में पंडित नेहरू कनाडा जाकर वहां की संसद को संबोधित किया। इस दौरान नेहरू और कनाडा के प्रधानमंत्री लुई सेंट लॉरेन के बीच एक गहरी दोस्ती कायम हुई। कनाडा ने भारत की मदद खासकर परमाणु तकनीक के मामले में की। इसके बाद 1950 में दोनों देशों ने व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किया जबकि वर्ष 1951 में भारत के लिये कनाडा का सहायता कार्यक्रम शुरू हुआ और कोलंबो योजना के तहत इसमें काफी वृद्धि हुई। कनाडा ने भारत को खाद्य सहायता, परियोजना वित्तपोषण और तकनीकी सहायता प्रदान की।  

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साइरस के जरिए कनाडा ने की भारत की मदद 
1954 में कनाडा ने भारत को साइरस यानी कनाडा इंडिया रिएक्टर यूटिलिटी सर्विसेज दिया। एक रिएक्टर जो मुंबई के पास ट्रॉम्बे में लगाया गया। ये रिएक्टर भारत के परमाणु कार्यक्रम का एक फंडामेंटल हिस्सा बना। इस दौर में दोनों देशों ने कई अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर साथ काम किया। कोरियाई युद्ध से लेकर स्वेज नहर का संकट हो। भारत और कनाडा एक ही पाले में खड़े नजर आए। 1960 के दशक में दोनों देशों में उच्चायोगों की स्थापना की तो वहीं कनाडा ने कुंडा जल विद्युत परियोजना को बनाने में मदद की। 1973 में कनाडा प्रधानमंत्री भारत दौरे पर भी आये। 
कोल्ड वार के बाद रिश्तों में आया बदलाव 
फिर कोल्ड वार की छाया इन रिश्तों पर पड़ने लगी। कनाडा को लगा कि भारत सोवियत संघ के करीब जा रहा है। 1974 के साल में भारत और कनाडा के रिश्तों को एक बड़ा झटका लगा। भारत ने मई में अपना पहला शांतिपूर्ण परमाणु परिक्षण कर लिया। इस्माइलिंग बुद्धा की बात कनाडा को हजम नहीं हुई और तत्कालीन प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो ने इसे धोखा बताया। कनाडा का मानना था कि भारत ने साइरस रिएक्टर का इस्तेमाल परमाणु हथियार बनाने के लिए कर लिया, जो समझौते का उल्लंघन था। कनाडा ने तुरंत परमाणु क्षेत्र में सारा सहयोग बंद कर दिया। इसके बाद कनाडा ने फैसला किया कि वो केवल उन्हीं देशों के साथ परमाणु सहयोग करेगा जो परमाणु अप्रसार संधि और व्यापक परमाणु परिक्षेपण संधि पर हस्ताक्षर करेंगे। इस घटना के बाद भारत और कनाडा के बीच रिश्तों में ठहराव देखने को मिला। 

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India Canda Relations Part 2 | कनाडा के खालिस्तान प्रेम की कहानी | Teh Tak

कल तक जो ट्रूडो खालिस्तानियों के खैर ख्वाह बने बैठे थे। कल तक जिन ट्रूडो को कनाडा में रह रहे हिंदुओं पर अत्याचार नजर नहीं आ रहे थे। उन जस्टिन ट्रूडो के तेवर अब ढीले पड़ने लगे हैं। उनके तेवर बदलने लगे हैं। कल तक जो ट्रूडो खालिस्तानियों के लिए आंसू बहाते थे वो आज उनके खिलाफ बोल रहे हैं। खालिस्तानियों को लेकर ट्रूडो ने ऐसा कुछ कह दिया, जिससे वहां रह रहे खालिस्तानियों की नींद उड़ गई है। अलगाववादी संगठन सिख फॉर जस्टिस के खालिस्तानी समर्थक गुरवतपंत सिंह पन्नू की नींद ट्रूडो के बयान के बाद से उड़ी हुई है। ट्रूडो के रुख में आए इस बदलाव के पीछे प्रधानमंत्री मोदी के दोस्त को माना जा रहा है। जो ट्रूडो कल तक कनाडा में रह रहे खालिस्तानियों के हितों को लेकर मुखर थे, अब कह रहे हैं कि कनाडा में खालिस्तान का समर्थन करने वाले बहुत से लोग हैं। लेकिन वो पूरे सिख समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते। ये वही कनाडा है जिसने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले को लेकर लगातार भारत के साथ अपने संबंधों को बिगाड़ता गया। लेकिन आखिर अचानक ट्रूडो को क्या हुआ और उनके तेवर नरम क्यों पड़ने लगे हैं। इसकी बड़ी वजह अमेरिका है। वैसे कनाडा का खालिस्तान प्रेम बहुत पुराना रहा है। 

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कनाडाई राजनेता सिख चरमपंथियों को बढ़ावा क्यों देते हैं? 
माइलवस्की ने इस प्रश्न का उत्तर अपनी पुस्तक में दिया है। यह मोटे तौर पर कनाडा में वोट बैंक की राजनीति के जयशंकर के संदर्भ के समान है। यह अक्सर भारतीयों द्वारा पूछा जाने वाला प्रश्न है कि कनाडाई राजनेता सिख चरमपंथियों को बढ़ावा क्यों देते हैं? माइलवस्की ने इसका जवाब देते हुए लिखा कि इन शॉर्ट इसका उत्तर यह है कि वैशाखी दिवस पर कनाडा में 100,000 की भीड़ को देखना आसान नहीं है, यह जानते हुए कि यदि आप अपना मुंह बंद रखेंगे तो वे आपको वोट दे सकते हैं और फिर इसके बजाय इन सब पर बंदिश से वोट गंवाने का डर होता है। 2021 की कनाडाई जनगणना के अनुसार, कनाडा की आबादी में सिखों की हिस्सेदारी 2.1 प्रतिशत है और यह देश का सबसे तेजी से बढ़ने वाला धार्मिक समूह है। भारत के बाद, कनाडा दुनिया में सिखों की सबसे बड़ी आबादी का घर है। आज, सिख सांसद और अधिकारी कनाडा सरकार के सभी स्तरों पर काम करते हैं और उनकी बढ़ती आबादी देश में सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है। 2017 में 39 वर्षीय जगमीत सिंह किसी प्रमुख कनाडाई राजनीतिक दल के पहले सिख नेता बने, जब उन्होंने वामपंथी झुकाव वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) की कमान संभाली। 
जस्टिन के पिता पियरे ने आतंकवादी को सौंपने से किया था मना 
कनाडा को लंबे समय से खालिस्तान समर्थकों और भारत में आतंकवाद के आरोपी उग्रवादी आवाजों के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह माना जाता रहा है। टेरी मिल्वस्की ने अपनी पुस्तक ब्लड फ़ॉर ब्लड: फिफ्टी इयर्स ऑफ़ द में लिखा है कि खालिस्तानी चुनौती के प्रति नरम कनाडाई प्रतिक्रिया 1982 से ही भारतीय राजनेताओं के निशाने पर थी, जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसके बारे में प्रधानमंत्री पियरे ट्रूडो से शिकायत की थी। जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री थे। उन्होंने 1968 से लेकर 1979 तक और फिर 1980 से लेकर 1984 तक कनाडा के प्रधानमंत्री के तौर पर देश की सत्ता संभाली थी। संयोग से इसी दौरान इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री थी। उस दौरान भारत में उमड़ रहे खालिस्तानी आंदोलन के मद्देनजर उन्होंने खालिस्तानी तलविंदर सिंह परमार के भारत प्रत्यर्पण की मांग की थी। लेकिन पियरो ट्रूडो की सरकार ने ये कहते हुए इसे खारिज कर दिया था कि भारत ब्रिटेन की रानी को कॉमनवेल्थ का हेड तो मानता है, लेकिन सदस्य है। इसलिए वो किसी भी तरह का प्रत्यर्पण नहीं करेगा। इसलिए कॉमनवेल्थ प्रत्यर्पण संधि लागू नहीं कर सकते। बाद में 23 जजून 1983 को कनाडा में रहने वाले खालिस्तानी आतंकियों ने एयर इंडिया के विमान में बम रखकर उसे उड़ा दिया था। जिसमें 329 लोगों की मौत हो गई थी। 
कनाडा में खालिस्तान आंदोलन क्यों जारी है? 
यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सभी कनाडाई सिख खालिस्तान समर्थक नहीं हैं और अधिकांश प्रवासी सिखों के लिए खालिस्तान कोई “हॉट ट्रेंडिंग टॉपिक नहीं है। मिलेवस्की ने पिछले साल डीडब्ल्यू को बताया कि कनाडाई नेता सिख वोट खोना नहीं चाहते हैं, लेकिन वे गलत सोचते हैं कि खालिस्तानियों का अल्पसंख्यक समुदाय कनाडा के सभी सिख हैं। मिलेव्स्की ने प्रवासी भारतीयों के भीतर खालिस्तान के लिए समर्थन को पंजाब की जमीनी हकीकतों से जुड़ाव की कमी के कारण पाया। प्रवासी भारतीयों में वे लोग शामिल हैं जो 1980 के दशक के दौरान चले गए थे, जब आंदोलन अपने चरम पर था और भारतीय राज्य खालिस्तानी अलगाववादियों पर बेहद सख्त था। इस दौरान कई अतिरिक्त-न्यायिक गिरफ्तारियां और हत्याएं हुई थीं। 
 

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आतंकी निज्जर की हत्या को लेकर पिछले साल जो विवाद शुरू हुआ था वो अब राजनयिकों के बाहर किए जाने के बाद गहरा गया है। भारत और कनाडा के बीच डिप्लोमेसी वॉर का आगाज हो गया है। कनाडा ने भारत के खिलाफ संभावित प्रतिबंधों का संकेत दिया और दावा किया कि उसके पास इस हत्या में भारतीय सरकारी एजेंटों के शामिल होने के सबूत हैं। कनाडा सरकार ने बिश्नोई गिरोह और भारत सरकार के एजेंटों के बीच संबंधों का आरोप लगाते हुए उन पर कनाडा में गुप्त अभियान और हिंसक गतिविधियों को अंजाम देने का आरोप लगाया। भारत ने सिख नेता की हत्या या देश में किसी भी अन्य आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने से इनकार करते हुए कनाडा के आरोपों को दृढ़ता से खारिज कर दिया। भारत में आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि निज्जर मामले में सबूत साझा करने का कनाडा का दावा झूठा था। 
बेतुके आरोप 
यह काफी हद तक तभी साफ हो गया था जब पिछले साल महज सूचनाओं के आधार पर जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगा दिया था कि वहां हुई एक खालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ है। तब भी भारत ने यही कहा था कि उनके पास अगर कोई ठोस सबूत हैं तो मुहैया कराएं। लेकिन उधर से कोई सबूत नहीं दिए गए। पिछले दिनों खुद ट्रूडो को एक समिति के सामने कबूल करना पड़ा कि उनके पास कोई सबूत नहीं थे। 

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खालिस्तानी तत्वों को बढ़ावा देने और संरक्षण देने में माहिर कनाडा 
कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों का वोट हासिल करने के लिए वो भारत के खिलाफ प्रोपगेंडा फैला रहे। लेकिन उनके आरोपों का कोई ठोस सबूत अब तक सामने नहीं आया। भारत ने इस मामले में साफ कह दिया कि ये आरोप बेबुनियाद है। भारत ने कनाडा से बार बार सबूत मांगे लेकिन ट्रूडो की सरकार ने कोई सबूत पेश नहीं किया। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ट्रूडो कनाडा में भारत विरोधी खालिस्तानी तत्वों को बढ़ावा देने और संरक्षण देने में माहिर हैं। फिर भी, भारत को उनके कूटनीतिक भोलेपन के लिए आभारी होना चाहिए, जिसने कनाडा की धरती पर चल रहे खालिस्तानी आतंक का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने में मदद की है। आख़िरकार, यह भारत-विरोधी नेटवर्क न तो उत्तरी अमेरिकी देश में कोई हालिया घटना है, न ही यह जस्टिन ट्रूडो-केंद्रित डेवलपमेंट है।
 

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 स्वाभाविक ही सवाल उठता है कि आखिर टूडो सरकार इस तरह की हरकतें क्यों कर रही है जो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के तय मानकों में कहीं से फिट नहीं बैठतीं। घटनाओं और हालात के जरिए इसे समझने की कोशिश करें तो यह जाहिर हो जाता है कि वह घरेलू राजनीतिक दबावों और चुनावी फायदों से निर्देशित हो रही है। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के मानक और द्विपक्षीय रिश्तों की बेहतरी कम से कम फिलहाल उसकी प्राथमिकता में नहीं हैं। 
खालिस्तानियों के खिलाफ एक्शन लेने से खौफ खाते ट्रूडो 
एक पत्रकार ने जब जस्टिन ट्रूडो से सवाल किया कि भारत का कहना है कि आप सिख चरमपंथियों पर नरम रुख अपनाते हैं। क्योंकि आप उस समुदाय के वोटों पर निर्भर हैं। इस पर जस्टिन ट्रूडो ने जवाब दिया कि भारत सरकार गलत है। कनाडा ने हमेशा हिंसा और हिंसा की धमकियों को बेहद गंभीरता से लिया है। बयान देते हुए जस्टिन ट्रूडो इतना डरे हुए थे कि वो खालिस्तानी शब्द का इस्तेमाल तक नहीं कर पाए। जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि भारत को ऐसा नहीं कहना चाहिए कि हम खालिस्तानियों के खिलाफ एक्शन नहीं ले रहे। लेकिन आपको जस्टिन ट्रूडो का एक पाखंड बताते हैं। जिस वक्त जस्टिन ट्रूडो भारत को गलत बोल रहे थे। ठीक उसी समय कनाडा में भारतीय दूतावास के बाहर भारतीय राजनयिकों की एक पोस्टर लगी थी। जिसमें उन्हें निशाना बनाए जाने की बात कही गई थी। यानी खालिस्तानी समर्थक कनाडा में खुलेआम भारतीय राजनयिकों पर हमले की बात कर रहे हैं। लेकिन जस्टिन ट्रूडो की माने तो कनाडा में ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। 

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कुर्सी बचाने के लिए खालिस्तान समर्थक को खुश रखना मजबूरी 
साल 2019 में कनाडा में आम चुनाव हुए थे। ट्रूडो ने चुनाव में जीत तो दर्ज कर ली थी लेकिन वो सरकार नहीं बना सकते थे। उनकी लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा को 157 सीटें मिली थी। विपक्ष की कंजरवेटिव पार्टी को 121 सीटें हासिल हुई थीं। ट्रूडो के पास सरकार बनाने के लिए बहुमत नहीं था। सरकार बनाने के लिए उन्हें 170 सीटों की दरकार थी। जिसकी वजह से ट्रूडो की पार्टी ने कनाडा के चुनाव में 24 सीटें हासिल करने वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) का समर्थन लिया। इस पार्टी के मुखिया जगमीत सिंह है जो खालिस्तान आंदोलन के बड़े समर्थक हैं। ट्रूडो के लिए सत्ता में रहने का मतलब जगमीत को खुश रखना है। बहुमत के आंकड़ों के लिहाज से उनके लिए जगमीत की पार्टी का समर्थन बेहद जरूरी है। चुनाव के बाद सिंह और ट्रूडो ने कॉन्फिडेंस एंड सप्लाई एग्रीमेंट को साइन किया था। हालांकि हालिया घटनाक्रम में समझौते की समाप्ति के साथ, कनाडा पारंपरिक अल्पसंख्यक संसद की राजनीति में लौट आया है। 

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